चन्दा मामा दूर के पूए पकाये बूर केआप खाये थाली में मुन्नी को दे प्याली मेंप्याली गयी टूट मामा गये रूठ, लायेगे नई प्यालियांबजा बजा के तालियां मामा को मनायेगे दूध मलाई खायेंगे
ये पंक्तियां उस लोरी की ही हैं जो शायद हमारे माता-पिता ने सुनी थी, उन्होंने हमें सुनायी, हमने अपने बच्चों को और हमारे बच्चे आने वाले दिनों में अपने बच्चों को सुनायेंगे। लोरी शिशु को मोहने वाली वो ध्वनि है जो बच्चे को मंत्रमुग्ध करके सोने पर मजबूर कर देती है। लोरी का प्रयोग प्राय: मां तब ही करती हैं जब बच्चा सो नहीं पा रहा हो या उसे बच्चे के ऊपर स्नेह आ रहा हो। तब दुनिया की हर मां प्राय: बच्चे को सुलाने के लिए सुन्दर शब्दों व मधुर ध्वनि वाली लोरी गाती है। गीत-संगीत में पिरोए शब्द ही लोरी की रचना करते हैं।
लोरी बच्चे के कान में जाते ही बच्चे के रोते हुए चेहरे को शान्ति से भर देती है। कितनी बार जब छोटा शिशु सो नहीं पाता है तब मां प्राय: परेशान व चिन्तित हो जाती हैं और उसको सुलाने के लिए स्वप्न लोक से बच्चे की निंदिया रानी को बुलाती है। और गाती है-
आजा री निदिंया रानी आजाजल्दी से आके मेरी गुड़िया की नयनों में घुल जा
और जब बच्चे को नींद नहीं आती तो मां का वात्सल्य देखो वो निंदिया रानी को लालच देकर बुलाती है और गाती है –
लल्ला-लल्ला लोरी धिऊ मां कटोरीकटोरी मां बताशा मुन्नी करे तमाशानिंदिया आवै के आसा खाया बताशा मुन्नी करे तमाशालल्ला लल्ला लोरी धिऊ मां कटोरी।
नींद बुलाने के लिए मां न जाने कितने जतन करती है। और बच्चों के लिए लोरी मात्र सुलाने का उपक्रम ही नही बल्कि बच्चे को मानसिक व शारीरिक रूप से भी मजबूती देता है। हर मां अपने शब्दों में लोरी को एक नए रंग-रूप में ढालती है। इंसान ही क्या पक्षी और जानवर भी बच्चों को लोरी सुनाते हैं। पशु-पक्षियों को चीं चीं, चूं चूं, टिं टिं जानवरों को हिस-हिस में भी लोरी का भाव होता है जो उनके बच्चों को अपने अनूठे रूप में दुलारता है।
ऐसे हुई थी लोरी की शुरुआत
भारत और लोरी का संबंध सदियों पुराना कहा जाएगा। मार्कण्डेय पुराण में मदालसा का एक प्रसिद्ध प्रसंग है जिसमें मदालसा अपने बच्चों को सुलाने के लिए सुंदर लोरियां गाती है। मदालसा को ही लोरी की जननी कहां जाता है। कहते हैं कि सर्वप्रथम मदालसा ने ही अपने पुत्र अलर्क को सुलाने के लिए लोरी गाई थी। इसका विवरण मार्कण्डेय पुराण के 18-24वें अध्याय में मिलता है। रामायण युग में भी माता कौशल्या बालक श्री राम को सुलाने के लिए लोरी गाती हैं। तुलसीदास ने गीतावली में लिखा है –
पौढ़िये लालन पालने हौं झुलावौंकद पद सुखं चक कमल लसत लखिलौचन भंवर बुलावौ
तो दूसरी और माता यशोदा भी अपने नन्दलाल यानी कृष्ण को पालने में लोरी गाकर सुलाया करती थीं। सूरदास जी ने लिखा भी है –
यशोदा हरि पालने में झुलावेहलरावै दुलरावे मल्हरावै, जोई जोई कुछ गावैमेरे लाल को आऊ निदरिया, काहौ न आये निदरिया
सच्चाई यही है कि सृष्टि के विकास से लेकर आज तक हर मां अपने बच्चे को लोरी गाकर थपकी देकर सुलाती है। सुलाते समय वो न जाने कितनी बार अपने बच्चे को गोद में लेकर प्यार करती है। उस समय उसके मुंह से अनायास ही ऐसी ध्वनियां निकलती हैं जिनका कोई अर्थ नहीं होता बस वो अपनी मधुरता से बच्चे को सुलाने में सक्षम होती हैं। जिनको सुनकर रोता हुआ बच्चा भी सोने लगता है। गांव की वो श्रमिक महिलाएं जो खलिहानों में काम करती हैं वो प्राय: अपने बच्चों को पेड़ की डालों पर कपड़े में टांगकर लटका देती हैं और दूर तक डोरी पकड़कर हिला हिलाकर लोरी गाती है और काम-करते करते ही अपने बच्चों को सुलाने का प्रयास करती हैं।
बच्चे को भी लोरी सुनकर ये लगता है कि उसकी मां उसके पास ही है और वो निश्चित होकर सो जाता है और मां अपना कार्य करती रहती है। कुछ ज्यादा ही व्यस्त महिलाएं बच्चे को पालने में सुलाकर पालने में घंटी, घुंघरू लगा देती है। मधुर ध्वनि भी बच्चे के कानों में लोरी का काम करती है जिससे बच्चा सो जाता है। देश हो या विदेश, अनपढ़ हो या पढ़ी लिखी प्राय: सभी माताएं अपने बच्चों को सुलाने के लिए लोरी का प्रयोग करती हैं और लोरी के माध्यम से बड़े प्यार व सम्मान से लोरी को बुलाती है –
आजा री निंदियामेरी मुनिया की आंखों में घुल जा
बच्चे के लिए संजीवनी होती है लोरी
लोरी के साथ-साथ मां के मुंह से अनायास ही निकलने वाले शब्द, हाथों की ताली, चुटकी, थपथपाहट भी बच्चे को सुख भरी नींद देती है। लोरी के शब्दों में बच्चे की लिए मां की ओर से शुभकामनाएं भी होती हैं साथ ही बच्चे के भविष्य से जुड़ी आशाएं व उम्मीदें भी होती हैं हास-परिहास होता हैं लोरी मां व बच्चे के बीच आनंद, प्रेम, विश्वास के भाव खोलती है। लोरी मां का आशीर्वाद है जिसे सुन नन्हा शिशु प्रसन्न होता है। यद्यपि लोरी के रचनाकार का कोई निश्चित नाम नहीं होता है ये एक मां के हृदय की रचना होती है। लोरी के द्वारा संसार की हर मां बच्चे के चेहरे पर सुकून के भाव देती है जो मां को भी प्रसन्न करता है। लोरी अबोध कोमल बच्चे के लिए संजीवनी है।
(साभार- साधनापथ)
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