हरिया के घर से रोने की आवाज़े आ रही है, रात के सन्नाटे को चिरते हुई उसके चार बच्चो को चीख सभी की नींद उड़ा चुकी कि थी,लोगो ने अंदाज़ लगा लिया शायद हरिया की पत्नी मीना जो कई दिनों से बीमार थी वो चल बसी थी।
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सेकंड चांस – गृहलक्ष्मी कहानियां
सेकंड चांस – रीमा जी के आँखों में बेटे से बिछुड़ने के आँशु थे… तो विजय जी की आँखों में गर्व की चमक था | उनका देखा सपना आज उनका बेटा जो पूरा करने जा रहा था | एक मद्यमवर्गी परिवार जिसके मुखिया विजय जी एक प्राइवेट नौकरी में थे | उनकी पत्नी रीमा जी […]
एक लड़की भीगी भागी सी’
सुनसान सड़क पर तीस वर्षीय मीनाक्षी हल्की बारिश में भीगते हुए चली जा रही थी। भीगने से उसके सारे कपड़े तर हो चुके थे और उसके बदन से चिपके जा रहे थे। उसने अपना दुपट्टा थोड़ा और फैला कर डाल लिया और सि मटी सहमी सी आगे बढ़ती रही।
मिलियन डालर स्माइल – गृहलक्ष्मी कहानियां
हैपी बर्थडे टू यू मां, मे गॉड ब्लेस यू…’
पार्श्व में बजते संगीत के मध्य आभा अपनी अस्सी वर्षीय वयोवृद्धा मां को सहारा देते हुए लंदन के फाइव स्टार होटल में लाल गुलाबों, जलती हुई सुगंधित मोमबत्तियों और मां-पापा के बड़े-बड़े पोस्टरों से सजे डाइनिंग हाल में ले जा रही थीं।
मृत्यु गीत
“मम्मी ,काकी अभी तक नहीं आईं?”अकुलाकर द्वार की ओर
देखते हुये मुदिता ने कहा.
वह कबसे सजी संवरी सहेलियों के साथ बैठी थी.पड़ोस की औरतें साड़ियों
जानिए हिंदी भाषा पर महान व्यक्तियों के विचार – गृहलक्ष्मी कहानियां
हिंदी ना सिर्फ एक भाषा है बल्कि ये हमारी राष्ट्रीयता की पहचान भी है, ऐसे में हिंदी की महत्ता को लेकर देश के महान शख्सियतों ने काफी कुछ कहा है, जिसे जानना हम सबके लिए काफी उपयोगी है।
दीप -पर्व मनाएँ पारम्परिक अंदाज में
आज की भागदौड़ और रफ्तार से भागती जिंदगी में हमारी खुशियां और रिश्ते सब पीछे छूटते जा रहे हैं। व्यस्त दिनचर्या के चलते चाहते हुए भी हम अपने और अपनों के लिए वक्त नहीं निकाल पाते। ऐसे में त्योहारों का आना एक बहाना बन जाता है। खुशियों के पल जीने का।
गृहलक्ष्मी की कहानियां : दंगे वाली दुल्हन
मेरे दर्द से आपा का दर्द कुछ कम नहीं था, मगर मैं क्या करूं…? जिस दर्द को मैं भूलना चाहती थी, उसे कोई मुझे भूलने ही नहीं देता।
घर की लक्ष्मी – गृहलक्ष्मी कहानियां
माया को उसके सास-ससुर बात-बात पर ताने मारते। उसका पति तो उसे अधिक दहेज न लाने के कारण रोज तानों के साथ-साथ थप्पड़-मुक्के भी मारने लगा। माया की सुबह गलियों से शुरू होती और शाम लात-घूसे लेकर आती। ये सब सहना तो माया की अब नियति बन गया था। रोज-रोज की दरिंदगी को सहते-सहते माया के आंसू सूख चुके थे…
पतझड़ – एक मां ऐसी भी – गृहलक्ष्मी कहानियां
पेड़ का आखिरी पत्ता भी गिर गया था कल। ठूंठ रह गया था आज ,जिसका सूखना तय है। सूखने के बाद लड़की का इस्तेमाल लोग चाहे जिस रूप मे कर सकते हैं। जब तक हरा – भरा था अनगिनत पक्षियों का बसेरा बना, उनके तथा मोहल्ले के बच्चों का क्रीड़ास्थल बना। सावन मे स्त्रियों का झूला लगता था, शाम मे पुरुषों का चर्चा स्थल बनता था।
