शेरवानी की गाड़ी जैसे ही उसकी कोठी के फाटक पर रुकी, उसके संप्रदाय के लोगों की एक जबरदस्त भीड़ वहां मौजूद थी।
शेरवानी ने नीचे उतरते हुए ऊंची आवाज में पूछा‒“आप लोगों को मुझसे कोई काम है।”
अन्दर से एक डी॰ एस॰ पी॰ निकला और बोला‒“शेरवानी साहब ! आपकी कोठी से नासिर की लाश बरामद हो चुकी है और आपकी गिरफ्तारी का वारंट मौजूद है। एस॰ पी॰ साहब ने वायरलैस पर खबर दी है, वह भी आ रहे हैं।”
उसने जैसे ही शेरवानी के हाथों में हथकड़ियां डालीं, एक आदमी ने चिल्लाकर कहा‒“यह सिर्फ नासिर का ही कातिल नहीं, दर्जनों बेगुनाहों का भी खूनी है।”
दूसरा चिल्लाया‒“एक तरफ यह खुद को हमारी नजरों में फरिश्ता साबित करता रहा। दूसरी तरफ इसने नासिर जैसे गुन्डों का गिरोह आम पब्लिक को परेशान करने के लिए बना रखा था।”
“इसके दोनों चेहरे हमारे सामने आ चुके हैं। इसने हमें धर्म के नाम पर बहकाकर हमारे वोटों का गलत इस्तेमाल कराया है।”
“इसे सिर्फ इतनी सी सजा कम नहीं।”
“यह कानून का नहीं, हमारा मुजरिम है।”
“इसे सजा हम देंगे।”
“मारो…मारो…!”
फिर अचानक सैकड़ों लोगों ने शेरवानी को पुलिस से छीन लिया। पुलिस वालों ने पहले लाठी चार्ज किया। फिर हवाई फायरिंग की। फिर जब जमीन पर फायरिंग करने लगे लगे तो जन…समूह तितर-बितर हो गया और बीच में शेरवानी नजर आया।
मगर वह शेरवानी के बजाए मांस और हड्डियों का ढेर नजर आ रहा था। उसके शरीर के कपड़ों की धज्जियों बिखरी पड़ीं थीं। और उसे सिर्फ उन हथकड़ियों से पहचाना जा सकता था, जो उसके हाथों में पुलिस ने डाल दी थीं।
अमर ने मोटरसाइकिल फार्म से काफी दूर छोड़ दी। वह फार्म-हाऊस की बाड़ फलांगकर अन्दर पहुंच गया। वह चौहान का फार्म-हाऊस था।
एक कॉटेज सरीखे कमरे में दस बदमाश बैठे थे। जिनके आगे शराब की बोतलें रखी थीं। कबाब और चिकन तन्दूरी थे और वे बड़ी मस्ती में बातें कर रहे थे।
“अरे ! मैंने जिस औरत को नंगा किया था, वह बड़ी मजेदार थी।”
“अरे मैंने जिस मर्द का गला काटा, उसकी गर्दन से खून बकरे की तरह निकला था…हा…हा…हा…।”
“मैंने पूरी पांच दुकानें जलाई थीं।”
“अबे, यही तो तूने नहीं देखा। उनमें राधा और बुद्धा की दुकानें न होतीं तो यह बलवा सांप्रदायिक दंगा बन गया होता और चौहान साहब से डबल इनाम मिलता।”
“अकरोली का सबसे भयानक सांप्रदायिक दंगा।”
अचानक अमर ने अपने कंधे पर लटके बैग से एक दस्ती बम निकाला और उसकी सेफ्टी पिन खींचकर सामने वाली दीवार से मार दिया।
जोरदार धमाके से बम फटते ही उनमें से चार बुरी तरह घायल होकर चिल्लाने लगे। बाकी छः को साधारण घाव आए, अमर ने सामने आकर एक हाथ में दस्ती बम और दूसरे हाथ में रिवाल्वर लेकर गुर्राते हुए कहा‒“जो बयान तुम लोगों ने एक-दूसरे को दिए हैं, वही पुलिस को दोगे…नहीं…अगर कोई भी हरकत करेगा तो मैं बेहिचक गोली मार दूंगा। मेरे पास हैंड-ग्रेनेडेस भी हैं।”
“ब…ब…ब्लैक टाइगर ?”
“हां, तुम्हारा बाप…ब्लैक टाइगर।”
सब के हाथ अनायास उठ गए। ठीक उसी समय पुलिस की गाड़ियों के सायरन गूंजने लगे और उनके चेहरे और ज्यादा विवर्ण हो गए।

अमर आई॰ जी॰ के सामने पहुंचकर अटेंशन हो गया और बोला‒“सर ! आज मेरा काम पूरा हो गया है।”
आई॰ जी॰ ने मुस्कराकर प्रशंसा भरे स्वर में कहा‒“तुमने एक साधारण सिपाही होकर भी जिस प्रकार जुर्म की तलवार से कानून के दुश्मनों की रंगे काटी हैं, वह प्रशंसनीय है। आज हरिनगर से लगे सारे जिलों के बच्चे-बच्चे की जुबान पर ब्लैक टाइगर का नाम है।”
“क्योंकि तुमने इस पूरे इलाके से ही अराजकता नहीं मिटाई, बल्कि स्वार्थी नेताओं, नेता बनाने वालों और पूंजीपतियों के चेहरे भी बेनकाब किए हैं, जो एक तरफ अपने इन फ्लूएंस से पुलिस के हाथ काट देते हैं, दूसरी ओर गुन्डों और बदमाशों की फौज से काम लेकर जनता के जीवन की शांति छीन लेते हैं।

“हम तुम्हारे लिए किसी बड़े पद की सिफारिश करने के बारे में सोच रहे हैं।”
“नहीं सर ! मुझे कोई पद नहीं चाहिए। एक साधारण सिपाही जो कर सकता है, वह करना किसी ऊंचे पदाधिकारी के वश में नहीं होता।”
“मैंने पदाधिकारियों की भी लाचारी देखी है। जो कर्तव्य निभाता चाहते हैं। मगर विवश हैं। मुझे सिर्फ अपनी बहाली का हुक्म चाहिए। मैं नहीं चाहता कि आपके सिवा किसी को भी यह भेद मालूम हो कि मैं ही ब्लैक टाइगर था। और हां, मेरे होने वाले बहनोई के विरुद्ध जो झूठा केस बनाया गया था, वह समाप्त कर दिया जाये।”
“उसकी तुम चिन्ता नहीं करो।”
“शुक्रिया, सर !”
अमर एक बार फिर से अटेंशन हो गया और आई॰ जी॰ उसके बहाली के आदेश पर दस्तखत करने लगा।