Acharya Prashant Lessons: एक महिला ने आचार्य प्रशांत से सवाल किया— “आचार्य जी, मैं एक हाउसवाइफ हूं। मेरे परिवार में मेरे पति, एक चार साल का बेटा और बुजुर्ग माता-पिता हैं। पूरा दिन उनके कामों में ही निकल जाता है। लेकिन मैं अपनी लाइफ में कुछ बड़ा करना चाहती हूं – एक सरकारी नौकरी की तैयारी। जब भी पढ़ने बैठती हूं, घर के काम मुझे घेर लेते हैं, और मैं फिर पढ़ाई छोड़कर उनकी तरफ लग जाती हूं। क्या मुझे पढ़ाई पर ही पूरा फोकस करना चाहिए?”
आचार्य प्रशांत ने बड़े सरल शब्दों में उत्तर दिया, “तुम खुद को प्राथमिकता देना सीखो। अगर तुम कमजोर रहोगी, तो परिवार कैसे मजबूत होगा? घर के काम हमेशा रहेंगे, लेकिन मौके बार-बार नहीं आते।”
स्त्री का कर्तव्य केवल सेवा नहीं है
हमारे समाज में स्त्रियों को बचपन से ही यह सिखाया जाता है कि उनकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी परिवार और घर संभालना है। मां, पत्नी, बहू के रूप में उनकी पहचान तय कर दी जाती है, और वे अक्सर अपनी महत्वाकांक्षाओं को पीछे छोड़ देती हैं।
लेकिन क्या यह सही है? क्या घर और परिवार के प्रति समर्पण का अर्थ यह होना चाहिए कि स्त्री अपने सपनों से समझौता करे? बिल्कुल नहीं।
अगर आप सरकारी नौकरी की तैयारी कर रही हैं, तो इसे सिर्फ अपनी नहीं, बल्कि पूरे परिवार की प्रगति के रूप में देखिए। जब आप आत्मनिर्भर होंगी, तब ही अपने बच्चे को एक बेहतर भविष्य दे पाएंगी।
घर की सीमा से बाहर निकलने की जरूरत
बहुत-सी महिलाएं शादी के बाद पढ़ाई और करियर छोड़ देती हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि परिवार और बच्चे की देखभाल ही उनकी पहली जिम्मेदारी है। लेकिन अगर पुरुष नौकरी कर सकता है और घर-परिवार भी संभल सकता है, तो स्त्री क्यों नहीं?
आपका चार साल का बच्चा तभी आपसे प्रेरित होगा जब वह देखेगा कि उसकी मां संघर्ष करके आगे बढ़ रही है। अगर आप आज हार मान लेंगी, तो जब वह बड़ा होगा और किसी कठिन परिस्थिति में पड़ेगा, तो किस तरह का उदाहरण उसके सामने होगा?
समाज की पुरुष प्रधान मानसिकता का परिणाम
ऐसा नहीं है कि यह स्थिति संयोग से बनी है। सदियों से पुरुष प्रधान समाज ने स्त्रियों को घर तक सीमित रखने की कोशिश की है। उनके सपनों को छोटा करने की कोशिश की गई, ताकि वे कभी भी आत्मनिर्भर न बन सकें।
लेकिन अब समय बदल चुका है। आज हर क्षेत्र में महिलाएं आगे बढ़ रही हैं। वे डॉक्टर, इंजीनियर, पायलट, आईएएस, बिजनेस लीडर बन रही हैं। अगर वे घर की ज़िम्मेदारी संभाल सकती हैं, तो दुनिया भी संभाल सकती हैं।
व्रिद्रोह ज़रूरी है- अपने भीतर!
असली सशक्तिकरण तब होगा जब महिलाएं आर्थिक, मानसिक और सामाजिक रूप से आत्मनिर्भर बनेंगी। कोई भी नौकरी-चाहे छोटी हो या बड़ी, स्वावलंबन की ओर एक कदम होती है। यह केवल महिला के लिए ही नहीं, बल्कि उसके पूरे परिवार, बच्चों, और समाज के लिए भी फायदेमंद है।
महिलाओं का आत्मनिर्भर होना न सिर्फ उनके आत्मसम्मान को बढ़ाएगा, बल्कि उनके बच्चों को भी यह सिखाएगा कि एक व्यक्ति को अपनी मेहनत से खुद के लिए खड़ा होना चाहिए। यह रिश्तों को भी अधिक सम्मानजनक और बराबरी का बना देगा।
इसलिए, विद्रोह जरूरी है लेकिन यह विद्रोह बाहरी दुनिया से अधिक, अपने भीतर की उन धारणाओं के खिलाफ होना चाहिए जो हमें सीमित रखती हैं। अपनी पहचान खुद गढ़िए, क्योंकि आत्मनिर्भरता ही असली शक्ति है।
आपके पास दो विकल्प हैं, या तो हालात से समझौता करके अपने सपनों को छोड़ दें, या फिर हर चुनौती को पार करते हुए अपनी मंज़िल तक पहुंचें।
आचार्य प्रशांत ने सही कहा, “स्त्री को खुद को प्राथमिकता देना सीखना होगा। जब वह मजबूत होगी, तभी उसका परिवार भी मजबूत होगा।”
