Spiritual Teachings: ऐसी बातें जो हमारे पूर्वज, अध्यापक और माता-पिता सिखाते आये हैं ‘अच्छा कर्म करोगे तो अच्छा फल मिलेगा और बुरा करोगे तो बुरा मिलेगा। मेरे माता-पिता ने यह भी बताया कि सफलता न मिले तो उदास नहीं होना चाहिए, क्योंकि समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कुछ नहीं मिलता।
ये दोनों ही बड़ी विचित्र बातें हैं और अगर कोई ध्यान से सोचे कि मुझे अपने कर्मों पर ध्यान देना है या फिर मेरा भाग्य मुझे क्या देता है, इसका इंतजार करना है, ये भी एक बड़ी मुश्किल पहेली है, क्योंकि समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कुछ नहीं मिलता।
मेरी भी एक दिन एक विद्वान महापुरुष से मुलाकात हुई जो आध्यात्म में काफी जाने माने और ज्योतिष में भी विख्यात महापुरुष हैं। मेरी बहुत इच्छा थी की मैं उनसे ज्योतिष सीख सकूं। एक दिन मैं उनके आश्रम पहुंच गया जहां वह अपने अनुयायियों के साथ कुछ वार्तालाप कर रहे थे।
उन्होंने मुझे देखा और पुछा ‘आप बड़े ही उत्सुक से प्रतीत होते हो, क्या पहली बार यहां आये हो?
मैं-जी हां आचार्य जी (सभी उन्हें आचार्य जी कह कर बुला रहे थे)
आचार्य जी– आपको मुझसे कोई काम था?
मैं-जी, मैं आपसे ज्योतिष सीखने की इच्छा से आया हूं।
वह मुस्कुराये और उन्होंने मुझे मुस्कुराते हुए ही कहा, अच्छा है, की इस काल में कोई तुम्हारी उम्र का नौजवान ज्योतिष सीखने की इच्छा रखता है। मगर ज्योतिष सीखना, समझना केवल काफी नहीं है। इसके लिए और भी बहुत कुछ सीखना पड़ता है।
मैं उनकी बात सुन रहा था और साथ ही यह भी सोच रहा था की अगर मुझे ज्योतिष ही सीखनी है तो और कुछ सीखने की क्या जरूरत है, पर उनसे कुछ कह न सका।
आचार्य जी ने मुझे रविवार वाले दिन, एकांत में आने को कहा और ध्यान के लिए चले गए। मैं उनसे समय तक पूछ नहीं पाया, पर उनके एक अनुयायी ने मुझे सुबह जल्दी आने के लिए सुझाव दिया।
रविवार:
मैं बिना वक्त जाया किये, सुबह 8 बजे आचार्य जी के आश्रम आ गया और प्रार्थना स्थल में जाकर बैठ गया। आज के दिन इस समय केवल 4-5 शिष्य ही वहां बैठे थे और आचार्य जी की प्रतीक्षा कर रहे थे।
आचार्य जी पहुंचे और सबसे मिलने लगे, उन्होंने मुझे देखा, मुस्कुराये और सभी से थोड़ी देर बाद मिलने को कहा।
आचार्य जी– आप बहुत ही उत्सुक लगते हो, मैंने तो आपको कोई समय नहीं दिया, फिर भी आप सुबह-सुबह जल्दी चले आये।
मैंने सर हिलाते हुए सोचा की आचार्य जी जानते थे की उन्होंने मुझे कोई समय नहीं दिया, इसका मतलब यह कोई परीक्षा थी और अगर उनके शिष्य ने मुझे समय नहीं बताया होता, तो शायद मैं इस परीक्षा में फेल हो गया होता
आचार्य जी– क्या आप कर्म में विश्वास रखते हैं?
मैं-जी हां, मैं विश्वास रखता हूं।
आचार्य जी-ये तो बहुत ही अच्छी बात है।
मैं-जी हां, गीता में भी लिखा है कि जो जैसा करता है, उसे वैसा ही मिलता है।
आचार्य जी-बहुत अच्छे, मुझे यह जानकार खुशी हुई की आप गीता में भी विश्वास रखते हैं।
और क्या कहना चाहते हैं कर्मों के बारे में?
मैं-आचार्य जी, आप तो यह सब जानते ही हैं कि अच्छे कर्मों को पुण्य कर्म कहते हैं और बुरे कर्मों को पाप कर्म कहते हैं। इसमें तो कोई संदेह ही नहीं की हमें कौन से कर्म चुनने चाहिए।
आचार्य जी-अच्छा तो ये बताओ की बुरे कर्म करने से क्या बुरा होता है?
मैं-बुरे कर्मों से आपका आने वाला कल बुरा हो जाता है।
आचार्य जी-अच्छा फिर…
मैं-फिर आप कुछ भी कर लें, आपको उसका फल भुगतना ही पड़ता है।
आचार्य जी-चाहे कुछ भी कर लें।
मैं-हां आचार्य जी, तभी तो कहते हैं कि अगर बुरा हो रहा है तो उसको कोई टाल नहीं सकता, क्योंकि वह किस्मत में लिखा भुगत रहा है।
आचार्य जी-तो फिर आप ज्योतिष सीख कर क्या करना चाहते हो?
मैं थोड़ा सोच में पड़ गया, पर फिर हिम्मत कर के बोला मैं लोगों की उनके अच्छे वक्त में मदद करना चाहता हूं।
आचार्य जी-अरे वो आप कैसे कर सकते हैं, वह तो अपने भाग्य का लिखा भुगत रहे हैं, उनकी आप कैसे मदद कर सकते हैं?
(मुझे लगा जैसे मैं अपने ही बनाये हुए जाल में फंस रहा था)
मैं-आचार्य जी, मैं लोगों को सही राह दिखाना चाहता हूं, जिससे वह अच्छे कर्म करें और आने वाले समय में अच्छा समय जियें ।
आचार्य जी-अरे यह सब तो मां-बाप, अध्यापक, घर के बुजुर्ग और हम जैसे लोग सिखाते ही रहते हैं की जीवन कैसे जीना चाहिए और कैसे कर्म करने चाहिए, फिर ये आप ज्योतिष सीख कर, अपना वक्त लगाकर ही क्यों करना चाहते हैं?
मैं बड़े ही असमंजस में पढ़ गया और कुछ और हिम्मत जुटा कर बोला।
आचार्य जी, मैं समझ रहा हूं की आप क्या कहना चाहते हैं पर ये आप भी भली-भांति जानते हैं कि ज्योतिषाचार्य ग्रह नक्षत्र देखकर बता सकते हैं की अच्छा और बुरा वक्त कब आना वाला है और हमें किस तरह की बातों पर ध्यान देना है कि उस समय को हम अच्छी तरह निकाल सकें।
आचार्य जी– हां मैं ये सब जानता हूं, पर मैं तो आपसे वही पूछ रहा हो जो मेरे मन में आपकी बातों से सवाल बन रहे हैं। अच्छा आप खुद ही बताएं कि अगर हम भाग्य को बदल नहीं सकते और समय से पहले हमें कुछ नहीं मिल सकता, तो हम ज्योतिषाचार्य के पास जाकर भी क्या पा लेंगे?
ज्योतिष तो समय और कर्म की ही बात करता है। ज्योतिष कहता है कि इस समय में ऐसे कर्म करो और भाग्य बदल जाएगा, मगर मैं तुम्हें लिखकर दे सकता हूं कि भाग्य नहीं बदल सकता।
मैं-तो फिर आचार्य जी आपने ज्योतिष क्यों सीखी? क्या आप इसे अपनी गलती मानते हैं कि आपने ज्योतिष सीखकर अपना समय बर्बाद किया, या जो भी आपसे ज्योतिष सीख रहे हैं वह अपना समय बर्बाद कर रहे हैं?
आचार्य जी-नहीं, न ज्योतिष सीखना समय की बर्बादी है और न ही उसका लाभ उठाना। मगर हमें यह जानना अति आवश्यक है कि हम कर्म और भाग्य दोनों के महत्त्व को समझें और जान सकें, वरना ज्योतिष सीख कर भी तुम ऐसे सवालों का जवाब किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं दे पाओगे जो इसमें फर्क समझना चाहता है।
मैं-मैं समझ गया, ज्योतिष जैसे दुर्लभ और विराट विज्ञान को समझने के लिए आचार्य जी मुझे तैयार कर रहे थे। मैं शांत मन से उनके पास बैठ गया और फिर उनसे इस गंभीर विषय को समझना शुरू किया।
आचार्य जी ने सभी शिष्यों को बुलाया और समझाया:
‘भाग्य और कर्म दोनों का ही महत्त्व है और अपनी अपनी विशेषतायें, मगर हमें समझना चाहिए की हम भाग्य के सहारे नहीं बैठ सकते। अगर हम भाग्य पर सब कुछ छोड़ दें तो कर्म का कोई महत्त्व ही नहीं रह जाएगा ।
अपने किया हुए कर्मों का इन्साऌफ और इन्साफ उसी का होता है जब कुछ किया हो वरना किस चीज का इन्साफ कुछ नहीं करना भी तुम्हारा ही एक कर्म है जिसका असर भी तुम्हारे आने वाले समय पर पड़ता है। ज्योतिष भाग्य को समझते हुए और कर्मों के द्वारा उस भाग्य को निखारने का एक जरिया मात्र है।
अगर अच्छे कर्म न किये हो तो अच्छा ज्योतिष मिलना भी मुश्किल होता है। हम कहते हैं कि ज्योतिष से क्या होगा अगर मेरे भाग्य में ही, यह सब लिखा हुआ है। मैं कहता हूं की तुम्हारे बहुत बुरे कर्म होंगे जिसकी वजह से तुम्हें आज बुरा वक्त काटना पड़ रहा है पर तुमने जरूर कुछ न कुछ अच्छे कर्म भी किये होंगे जिसकी वजह से आज तुम ज्योतिषी के पास पहुंच पाये हो या किसी सही ज्योतिष का ज्ञान रखने वाले के पास कुछ जानने आ पाये हो।
ज्योतिष कर्मशास्त्र का ही एक हिस्सा है भाग्य को कोई काट नहीं सकता, भाग्य ने जो लिख दिया समझो लिख दिया। इस बात से डरने की कोई वजह नहीं, क्योंकि भाग्य भी हम ही बनाते हैं।
श्रीकृष्ण ने भी कहा और गीता में भी यही लिखा है की तुम अपना कर्म करते जाओ और उसका फल मुझ पर छोड़ दो!
यह कलियुग नहीं कर्मयुग है। इसका मतलब भाग्य भी कर्म के आधीन है पर कर्म भाग्य के नहीं।
हर चीज एक कर्म है, कुछ करना एक कर्म है और कुछ न करना भी एक तरह का कर्म है।
ध्यान भी एक कर्म है, कुछ देखना, सुनना, बोलना, सोचना, ये सब क्रियाएं कर्म ही तो हैं। हम क्या देखते हैं और फिर वह देख के क्या सोचते हैं, यह कर्म ही तो हैं।
बस मैं आज आप सबको यही कहना चाहता हूं की कर्म करते हुए भाग्य की तरफ मत सोचो और बस यह ध्यान रखो की क्या कर्म कर रहे हो। हमेशा बीज वह बोना शुरू करो की आम जैसा फल ही मिले बाकी आप सब समझदार हैं। यह कहकर आचार्य जी अपने ध्यान के लिए चले गए और जाते-जाते जब मैंने उन्हें प्रणाम किया तो उन्होंने कहा अगर तुम्हें समझ आ गया हो की क्या सीखने की जरूरत थी और अगर तुम वह सीख चुके हो तो कल सुबह 8 बजे से ज्योतिष सीखने आ सकते हो।
मुझे एक ऐसे ही आचार्य की जरूरत थी जो किसी भी चीज को गहराई से देखते हों और उनके साथ अध्ययन कर के उनसे पूर्ण ज्ञान प्राप्ति कर सकें। कर्म करो और फल की चिंता ईश्वर पर छोड़ दो!! जय श्री कृष्णा!!
