Guru Nanak Dev Ji
Guru Nanak Dev Ji

श्री गुरु नानक देव जी सिखों के प्रथम गुरु हैं। बचपन में कई चमत्कारिक घटनाएं घटने के चलते आस पास के लोग इन्हें दिव्य व्यक्तित्व का मनुष्य मानने लगे थे। उनका विवाह सोलह साल की आयु में माता सुलखनी जी के साथ हुआ। आगे चलकर इनके दो पुत्र हुए। बड़े पुत्र का नाम श्रीचंद और छोटे का नाम लख्मी चंद था। समाज को एक नई दिशा प्रदान करने वाले गुरु नानक देव जी ने लोगों को लोभ, मोह और अहंकार से दूर रहने की शिक्षा दी।

उन्होंने लोगों को न सिर्फ धन से मोह न करने की शिक्षा दी, बल्कि अपनी कमाई के दसवें भाग को नेक कार्यों को ईश्वर की भक्ति में लगाने की भी शिक्षा दी। इसके अलावा उन्होंने जीवन में किसी भी चीज से मोह न करने पर भी जोर दिया। साथ ही उन्होंने अहंकार को मानव जीवन का सबसे बड़ा दुश्मन भी बताया है।

गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को एक बताया है। जो चारों दिशाओं में हर वक्त विद्यमान है। जो हमेशा सबके साथ है और हर मनुष्य के अंदर मौजूद है। उन्होंने परमपिता परमात्मा के एक स्वरूप की बात को लोगों तक पहुंचाना और उन्हें अंधविश्वास से बाहर आने के लिए प्रेरित किया।

उन्होंने कीरत करो यानी काम करो, नाम जपो सानि ईश्वर का सुमिरन भजन करो और वांड शको यानी बांटकर खाओ के संदेश को लोगों तक पहुंचाया। ताकि समाज में फैली बुराइयों को रोका जा सके और इसी माध्यम से गरीबों और जरूरतमंदों की मदद हो पाए। गुरु नानक देव ने हमेशा मेहनत की कमाई को ही सर्वश्रेष्ठ बताया है।  

गुरु नानक देव ने जहां कीरत करने यानी की काम करने की बात कही, तो वहीं उन्होंने अपनी कमाई के दसवें भाग को समाज की सेवा या ईश्वर की भक्ति में लगाने पर भी जोर दिया। उनका मकसद था कि इस प्रकार से आप अपनी कमाई का कुछ हिस्सा नेकियों के लिए भी निकाल पाएं। परोपकार के लिए और अपने समय का 10वां हिस्सा प्रभु सिमरन या ईश्वर भक्ति में लगाना चाहिए।

उन्होंने महिलाओं को पुरूषों के बराबर स्थान देने की बात कही। उन्होंने महिलाओं को आदर सम्मान देने की समाज को सीख दी, ताकि महिलाओं को कुरीतियों के चंगुल से आज़ाद करवाया जा सके। उन्होंने अपने प्रयासों के जरिए महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा दिलवाया और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित भी किया।

गुरु नानक देव जी ने लोगों को सदैव नेक राह पर चलकर आगे बढ़ने की शिक्षा प्रदान की है। उन्होंने ईश्वरीय भक्ति को परमपिता परमात्मा से मिलने का एकमात्र रास्ता बताया है। उन्होंने साधुओं की संगत करने और गुरबाणी के सहारे जीवन को आगे ले जाने की बात पर जोर दिया। उन्होंने परमपिता के नाम को हृदय में बसाने की बात कही, ताकि मनुष्य जीवन में भटक कर गलत राह पर न चल सके।

गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं ने मानव जीवन को प्रेरित किया और उन शिक्षाओं पर चलकर लोगों ने न सिर्फ अपना जीवन संवारा बल्कि ईश्वर के एक रूप की आराधना से अपने जीवन को सार्थक बनाया। उनका कहना है कि चिंता मुक्त रहकर अपने कर्म करते रहना चाहिए। संसार को जीतने से पहले स्वयं अपने विकारों पर विजय पाना अत्यंत आवश्यक है।

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