कौन थे श्री गुरु नानक देव, जानें इनकी 5 शिक्षाओं के बारे में: Guru Nanak Dev Teachings
Guru Nanak Dev Teachings

Guru Nanak Dev Teachings: गुरु नानक देव जी का जन्म पाकिस्तान के तलवंडी में 1469 में हुआ था। यह सिखों के 10 गुरु हैं, जिनमें से पहला नाम श्री गुरु नानक जी का है। श्री गुरु नानक देव जी ने ही सिख धर्म की स्थापना की थी। इन्होंने ही “इक ओंकार” के संदेश को लोगों तक पहुंचाने का काम किया था।

इक ओंकार का अर्थ 

“इक ओंकार” को सिख धर्म में मूल मंत्र माना जाता है। पवित्र श्री गुरु ग्रंथ साहिब के शुरुआती पन्ने पर “इक ओंकार” ही लिखा हुआ है। यह पूरा मंत्र है “इक ओंकार, सत्नाम, करता पुरख, निरभौ, निर्वैर, अकाल मूरत, अजूनी सै भम, गुरु प्रसाद”। इस मूल मंत्र का मतलब है – “ईश्वर एक ही है, उसका नाम ही सत्य है, वही स्रष्टा है, वह निर्भय है, वह द्वेष रहित है, वह अमर है, वह जन्म-मरण से परे है, और केवल उसकी कृपा से ही उसके नाम का जाप किया जा सकता है”। गुरु नानक देव जी के उपदेश श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में लिखे हुए हैं। 

कौन थे श्री गुरु नानक देव 

Guru Nanak Dev Teachings
Guru Nanak Dev Teachings

श्री गुरु नानक देव जी का जन्म एक हिन्दू परिवार में हुआ था, इनके पिता जी का नाम मेहता कालू जी और माता जी का नाम तृप्ति देवी था। इनका विवाह मात्र 16 वर्ष की आयु में गुरदासपुर जिला के लखौकी नामक जगह पर रहने वाली सुलक्खनी देवी से हुआ था। गुरु नानक देव जी के दो बेटे हुए, जिनका नाम श्रीचंद और लक्ष्मी चंद था। अपने बेटों के जन्म के बाद गुरु नानक जी अपने साथियों के साथ तीर्थ यात्रा पर निकल पड़े और चारों ओर घूम घूमकर उपदेश देने लगे। इस दौरान इन सब ने मिलकर भारत, अफगानिस्तान, पारस और अरब में उपदेश देने का काम किया। पंजाबी में ही इन्हीं यात्राओं को “उदासियां” कहा जाता है। गुरु नानक देव जी ने हमेशा मूर्ति पूजा की भर्त्सना की है और रूढ़ियों के खिलाफ खड़े रहे हैं। उन्होंने हमेशा लोगों को यह कहा है कि ईश्वर कहीं बाहर नहीं, किसी मूर्ति में नहीं है बल्कि हमारे अंदर विराजमान है। उस समय इब्राहिम लोदी ने गुरु नानक देव जी को कैद कर लिया था और जब पानीपत की आखिरी लड़ाई हुई तो इब्राहिम के हारने के बाद बाबर का राज आ गया और तब गुरु नानक देव जी को कैद से रिहाई मिली। गुरु नानक देव जी ने करतारपुर में एक शहर भी बसाया। गुरु नानक देव जी की मृत्यु 22 सितंबर 1539 को हो गई इसके बाद इन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी बनाया। इन्हें ही बाद में गुरु अंगद देव के नाम से जाना गया। 

गुरु नानक देव जी की शिक्षा

गुरु नानक देव जी के उपदेश श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में लिखे हुए हैं। यहां श्री गुरु नानक देव की 5 शिक्षाओं के बारे में बताया जा रहा है, जो हमारे जीवन जीने के तरीके को बदल सकते हैं।

वंद चखो 

हम सब जानते हैं कि हम जितना बाटेंगे उतना ही दूसरों का ध्यान रख पाएंगे।  गुरु नानक देव जी ने भी यही बताया है कि हमें जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए। गुरु नानक देव जी ने अपने पूरे जीवन दूसरों को यही सिखाया है और यही सिख धर्म का मूल भाव है। उन्होंने आम लोगों को यही शिक्षा दी है कि “ईश्वर की कृपा से हमें जो कुछ भी मिलता है, हमें उसे जरूरतमंदों के साथ बांटना चाहिए और उसके बाद खुद उपभोग करना चाहिए।”    

कीरत करो 

कीरत करो का मतलब है कि हमें ईमानदार जीवन जीना चाहिए। यानी कि हमें बिना किसी को धोखा दिए और किसी का फायदा उठाए अपना जीवनयापन ईमानदारी से करना चाहिए। गुरु नानक देव जी ने अपने पूरे जीवन में इसी मंत्र का पालन किया है और दूसरों को भी यही सिखाया है। सच तो यही है कि यदि जीवन में हम सब कुछ ईमानदारी और नेक दिल से करते हैं तो हमारा जीवन सही राह पर चलता रहता है और हमें दुख मिलने की आशंका कम हो जाती है।   

नाम जपो 

गुरु नानक देव जी ने अपनी शिक्षा में यह भी कहा है कि हमें सच्चे ईश्वर का नाम जपते रहना चाहिए। ईश्वर का नाम जपने से व्यक्ति ध्यान भी करता है, जिससे उसे अपने पांचों दुश्मनों को नियंत्रित करने में मदद मिलती है और वह संतुष्टि भरा जीवन जीने में सफल होता है। ईश्वर का नाम जपते समय हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार जैसे 5 दुश्मनों से पार पाने की कोशिश करनी चाहिए। 

नि:स्वार्थ सेवा 

सिख धर्म का एक अन्य मोलभाव है बिना स्वार्थ के दूसरों की सेवा करना। यह आज भी गुरुद्वारे में देखने को मिल जाता है कि जब सिख धर्म के लोग बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की सेवा में लगे रहते हैं। सिख लोग किसी भी काम को छोटा या बड़ा नहीं मानते हुए निस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं। आपको पहले इस बात का एहसास ना हो लेकिन जब आप एक बार नि:स्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा करते हैं तो आप अपने अंतर्मन में जिस शांति का अहसास करेंगे, वह एहसास आपको किसी और काम को करने से नहीं मिलता है। 

सरबत दा भला 

गुरु नानक देव जी का मानना है कि हम सब भाई भाई हैं। हमें सिर्फ अपने बारे में नहीं बल्कि सब की खुशियों के बारे में सोचना चाहिए। फिर चाहे व्यक्ति किसी भी धर्म, जाति या लिंग का क्यों ना हो, हमें दूसरों की खुशियों के बारे में सोचना चाहिए, तभी हमें अपनी जिंदगी में भी खुशहाली और संतुष्टि मिल सकती है। 

स्पर्धा रानी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कॉलेज ने हिन्दी में एमए और वाईएमसीए से जर्नलिज़्म की पढ़ाई की है। बीते 20 वर्षों से वे लाइफस्टाइल और एंटरटेनमेंट लेखन में सक्रिय हैं। अपने करियर में कई प्रमुख सेलिब्रिटीज़ के इंटरव्यू...