Spiritual Teachings: जो व्यक्ति पहले स्वयं को देखता है, अपनी कमियों को देखता है। वह दूसरों पर दोषारोपण नहीं करता। अहिंसक जीवनशैली ऐसी सुख देने वाली, शांति देने वाली जीवनशैली है, जिसमें आदमी दूसरे को बाद में देखता है, पहले अपने आप को देखता है। हर व्यक्ति के पास दो तरह की आंखें हैं। एक है बाहर की आंख, जो सदा दूसरों को देखती है। एक है भीतर की आंख, जो अपने आपको देखती है। जिस व्यक्ति को यह भीतर की आंख नहीं मिली है, वह हमेशा बाहर को ही देखेगा और जो बाहर को देखेगा, उसके सामने दो स्थितियां आएंगी। अगर सामने कोई बड़ा आदमी दिखाई दिया तो हीनभावना आएगी और कोई छोटा दिखाई दिया तो अहंकार जागेगा। केवल दूसरे को देखने से अथवा केवल बाहर को देखने से दो तरह की मनोवृत्तियां पनपती हैं-इन्फिरियोरिटी कॉम्पलेक्स और सुपीरियोरिटी कॉम्पलेक्स- हीनता की ग्रंथि या अहं की ग्रंथि।
शांत सहवास का पहला सूत्र है- अपने आपको देखना। अपने आपको देखोगे तो अपनी कमियों का पता चलेगा। इस दुनिया में कोई भी आदमी संपूर्ण नहीं है। हर किसी में कोई न कोई कमी या न्यूनता होती है। जो अपने आपको नहीं देखता, वह कभी भी दूसरों की विशेषता पर दृष्टिïपात नहीं करेगा। उसे अच्छे भले व्यक्ति में भी कमी दिखाई दे जाएगी। उसकी आंख मक्खी की आंख जैसी हो जाएगी जो सदा व्रण या विकारग्रस्त अंग को ही देखेगी। शरीर में कहीं कोई फोड़ा-फुंसी होते ही मक्खियां उस पर बैठनी शुरू हो जाएंगी। जो व्यक्ति पहले स्वयं को देखता है, अपनी कमियों को देखता है। वह दूसरों पर दोषारोपण नहीं करता।

आदमी दूसरों की समस्या को गौण कर एकमात्र अपनी स्वार्थसिद्धि में ही लग जाता है। दूसरों के दु:ख या समस्या से उसे कोई लेना-देना नहीं रह जाता। एक दो मंजिली इमारत और उसमें रहने वाले दो परिवार। दोनों ही परिवार स्वार्थी मनोवृत्ति के थे। दोनों को ही एक दूसरे से कोई लेना-देना नहीं था। सहकारिता और परस्परता की दोनों में ही कोई भावना नहीं थी। दूसरे शब्दों में कहें तो उनकी जीवनशैली अहिंसक नहीं थी। ऊपर की मंजिल पर रहने वाले ने एक दिन शिकायत की- ‘तुम सिगड़ी जलाते हो, उसका सारा धुआं ऊपर मेरे फ्लैट तक पहुंचता है। कोई उपाय करो, यह स्थिति अब बर्दाश्त के बाहर है। नीचे की मंजिल पर रहने वाले ने लापरवाही से कहा- ‘धुआं रोकने का मेरे पास कोई उपाय नहीं है। खाना बनाते समय धुआं तो होगा ही और धुएं का स्वभाव है ऊपर उठना। इसमें मैं क्या कर सकता हूं? यह सरासर ढिठाई भरा उत्तर था। ऊपर की मंजिल वाला परिवार उसकी बात समझ गया। उसके लिए ‘जैसे को तैसे वाला फार्मूला अपनाना जरूरी हो गया। उसके बाथरूम और रसोई का पाइप नीचे की ओर जाता था। उसने जान-बूझकर पाइप में छेद कर दिया। अब उस पाइप से गुजरने वाला सारा गंदा पानी एक साथ नीचे वाली मंजिल के दरवाजे पर गिरने लगा। अब चिल्लाने की बारी नीचे वाली मंजिल के व्यक्ति की थी। उसने नीचे से ही आवेश में आवाज लगाई-‘आदमी हो तो आदमी की तरह रहना सीखो। यह ध्यान में रखो कि नीचे भी आदमी रहते हैं, पशु नहीं। ऊपर की मंजिल पर रहने वाले ने नाराजगी का कारण पूछा तो उसने कहा-‘तुम्हारे घर का सारा गंदा पानी मेरे दरवाजे पर गिर रहा है, उसकी निकासी का इंतजाम करो। उसने कहा-‘तुम्हारी तरह मेरी भी मजबूरी है भाई। जैसे धुएं का स्वभाव ऊपर उठना है, वैसे ही पानी का स्वभाव नीचे की ओर बहना है। क्या किया जाए?
