Hindi Kahani: रात के सन्नाटे में घड़ी की टिक टिक साफ सुनाई दे रही थी। रह-रहकर गली के मुहाने पर कुत्तों के भौंकने की आवाजें आ रही थी या फिर विशाल के खर्राटों की। नम्रता धीरे-धीरे अलमारी से सामान निकाल कर नीचे रखती जा रही थी और बीच-बीच में मुड़कर विशाल को देख लेती कि उसकी नींद तो नहीं खुल गई।
अजीब सी बेचैनी उस की पेशानी पर लकीरें बना रही थीं। अलमारी करीब आधी खाली हो चुकी थी तो उसकी बेचैनी और बढ़ गई। वो और जल्दी-जल्दी घबरा कर सामान निकालने लगी। उसी घबराहट में उसके हाथ से फिसल कर लकड़ी की नक्काशी वाला कश्मीरी डिब्बा जमीन पर आ गिरा। डिब्बे में सहेजी बचपन की यादें बिखर गईं। यादों को सहेजने में छोटे-छोटे सामान भी कितनी अहम भूमिका निभाते हैं।
वो लकड़ी की फिरंगी ,ट्रेन के इंजन वाला शार्पनर ,उसकी पहली गुड़िया, शीशे वाला छोटा सा स्टार जिसमें रेनबो कलर दिखता था, जिसे उसने स्कूल के पास वाली दुकान से खरीदा था वह तो गिरते ही टूट गया और साथ ही विशाल की नींद भी…..क्या कर रही हो इतनी रात को और यह सब सामान क्यों बिखेर रखा है, घड़ी देखो तो बज रहे हैं अभी तक सोई क्यों नहीं…..
वो मैं अपनी कुंदन वाली ज्वेलरी खोज रही हूं उस दिन शादी में पहन कर गई थी रात ज्यादा हो गई थी तो कपड़ों की अलमारी में ही रख दी थी लेकिन अब मिल नहीं रही है कई बार देख चुकी हूं इसलिए आज सारा सामान निकाल कर देख रही हूं…कहीं और रख दिया होगा तुमने,तुम्हें याद ही कहां रहता है और देखना ही था तो सुबह देख लेती इस तरह रात को खुद की भी नींद खराब कर रही हो और मेरी भी…….
सुबह कब देख लेती, आंख खुलते ही तो काम शुरू हो जाता है, घर ,ऑफिस ,मीटिंग का प्रेशर सब तो देखना होता है।
तुम सो जाओ अब कोई आवाज नहीं होगी कहते हुए नम्रता बिखरी यादों को डिब्बे में सहेजने लगी। टूटे स्टार का कांच उंगली में चुभ गया लेकिन उससे ज्यादा चुभ गये विशाल के शब्द “तुम्हें याद ही कहां रहता है”। वो फिर आलमारी में ज्वेलरी खोजने लगी और सोचने लगी तुम भूल गई होगी ,तुम्हें याद नहीं ,याददाश्त कमजोर हो गई है ऐसे वाक्य उसकी जिंदगी से ऐसे जुड़ गए थे जैसे फेविकोल का मजबूत जोड़।
कभी विशाल तो कभी बेटा रोहन उसकी दिमागी हालत का एहसास करा ही देते। दिन-रात इन्हीं बातों से घिरी नम्रता को भी अब यही लगने लगा था कि शायद यही हकीकत है। भूलने की आदत है मुझे यही एक बात कोई मुझे भूलने नहीं देता।
भावनाओं में डूबी उसकी तलाश सफेद रुमाल में लपेट कर रखी उसकी ज्वेलरी पर आकर रुकी, खोल कर देखा वही कुंदन का सेट।
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सुकून पाने की दो वजह मिल गई ,एक ज्वेलरी मिल गई दूसरा उसे अपनी स्मरण शक्ति पर भरोसा। वो बहुत खुश थी कि उसे याद था कि उसने ज्वेलरी वहीं रखी थी। जल्दी-जल्दी उसने सारा सामान अलमारी में रखा और सोने चली गई। लेकिन आंखों में नींद न थी। आंखों में पिछले दिनों की तस्वीर उभर रही थी। पिछले छह-सात महीनों से अक्सर वह छोटी-छोटी बातें भूल जाया करती।सात महीने पहले प्रमोशन के साथ ही भूलने की बीमारी ने भी उसके घर में कदम रखा।
आसान नहीं था घर ऑफिस सब मैनेज करना, शरीर से ज्यादा दिमाग थका महसूस करता।उस दिन दोपहर में विशाल ने फोन पर बताया ,शाम को टाइम पर घर आ जाना मिस्टर पारिख के घर पार्टी में जाना है। उसे भी अच्छा लगा ,मिसेज पारिख अच्छी लेडी हैं, कहीं नौकरी नहीं करतीं विशुद्ध भारतीय महिला, लेकिन पढ़ने का शौक खूब है उन्हें|
बच्चों की परवरिश में जीवन समर्पित कर दिया। उनसे मिलना, उनके साथ बातें करना नम्रता को अच्छा लगता था। लेकिन शाम तक उसकी स्मरण शक्ति ने धोखा दे दिया और उसने खुद ही मीटिंग बुला ली। घर पहुंची तो बेटे रोहन ने तल्ख स्वर में बताया पापा को बहुत बुरा लगा है , वह अकेले ही पार्टी में गए| आपको जाना नहीं था तो पहले ही मना कर देतीं।
वो चुपचाप उसका मुंह देखती रही। उसने जानकर तो ऐसा नहीं किया।अगर वो भूल गई तो विशाल उसे याद भी तो दिला सकता था। छोटी-छोटी बातें तो होती ही रहती थीं, कभी कुछ रख कर भूल जाना, कभी आते वक्त सामान लाना और उसके साथ स्टीकर की तरह चिपका वाक्य….. तुम फिर भूल गई होगी ,आज फिर भूल गई, बादाम खाया करो, किसी डॉक्टर को दिखाओ।
रोहन का व्यवहार भी दिन पर दिन खराब होता जा रहा था। गलती उसकी भी नहीं थी जैसा देख रहा था वैसा ही कर रहा था।पहली बार जब रोहन ने ऐसे बात की थी अगर उस वक्त ही विशाल ने उसे रोका होता तो शायद आज उसकी बातें इतनी पीड़ादायी ना होतीं।
उस रात की बात च्वींगम की तरह कुछ ज्यादा ही लंबी खिंच गई। दूसरे दिन बाप बेटे ने तय किया न्यूरोलॉजिस्ट को दिखाया जाए। शाम 6:00 बजे का अपॉइंटमेंट है ,ऑफिस से सीधे वही पहुंच जाना भूलना मत, विशाल ने बताया तो पीछे से रोहन बोला… आप अलार्म लगा लीजिए अपने फोन में वरना भूल जाएंगी।नम्रता ने रोहन का टिफिन बैग में रखते हुए बेमन से हाॖं में सिर हिलाया तो रोहन बोला… अलार्म मैं ही लगा देता हूं नहीं तो आप वो भी भूल जाएंगी, कहते हुए फोन उसके हाथ से ले लिया। दिल करता है कभी पूछूं… मुझे जो तकलीफ हर दिन होती है ,तुझे क्या महसूस भी नहीं होती।
शाम को नियत समय से पहले ही वह डॉक्टर के पास पहुंच गई। डॉक्टर ने कुछ सवाल किए ,कुछ टेस्ट कराएं और बड़ी संजीदगी से रोहिणी का तमगा लगाते हुए डिमेंशिया के शुरुआती लक्षण बताएं।
सुनकर विशाल और रोहन भविष्य की कल्पना में डूब गए। डर तो नम्रता भी गई थी पर वह चिंतित नहीं थी। अब घर का माहौल और बदल गया। अब जो कुछ वो ना भूली हो, या किसी और की भी गलती हो उसके लिए भी वही जिम्मेदार होती। अब तो काम वाली बाई भी उसे बड़े प्यार से समझा देती,…. भाभी आप भूल गई होगी। अब उसको कहे जाने वाले स्लोगन बदल गए। अब उसे प्यार से समझाया जाता…. हो सकता है तुम भूल गई हो, तुम्हें याद ना हो ऐसा होता है। सुनकर उसका दिल आहत हो जाता लेकिन वो ये मानने को तैयार नहीं थी कि उसे कोई बीमारी है।
डॉक्टर ने रात में खाने की एक दवा दी थी जिसे वो चुपके से फेंक देती। वह अक्सर सोचती, घर में ही क्यों सब कुछ भूलती है, ऑफिस में क्यों नहीं। और आज जब उसे आलमारी से उसकी ज्वेलरी मिल गई तो उसे विश्वास हो गया कि उसकी याददाश्त बिल्कुल ठीक है। उसे कोई बीमारी नहीं। लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो वह कुछ चीजें भूलती क्यों है।
दूसरे दिन सुबह उसने गूगल सर्च करके साइकेट्रिस्ट का नंबर निकाला और अपॉइंटमेंट फिक्स किया। ऑफिस से आधे दिन की छुट्टी लेकर तीन बजे पहुंच गई। डॉ अचला ने बहुत ध्यान से उसकी बातें सुनीं और फिर हंस दीं, बोलीं……. आप बिल्कुल ठीक हैं आपको कोई बीमारी नहीं है।जब किसी भी व्यक्ति के ऊपर काम का प्रेशर ज्यादा होता है तो भूलने की समस्या होना स्वाभाविक है।
लेकिन डॉक्टर मेरे पति मुझसे ज्यादा ऊंचे पद पर हैं, उन पर भी तो काम का प्रेशर होता है लेकिन वह तो नहीं भूलते……..सही कहा आपने लेकिन जिम्मेदारियां अगर एक ही तरह की हो तो उसे संभालना आसान होता है, आप दोहरी जिम्मेदारी निभा रही हैैं।
आपके लिए जितना महत्व ऑफिस के काम का है उतना ही महत्व घर का भी है। एक वर्किंग वुमन को घर परिवार ,रिश्तेदार सब को खुश रखना पड़ता है और ऑफिस में बॉस को।आप ऑफिस में इसलिए कुछ नहीं भूलतीं क्योंकि वहां आपके अंडर में बहुत सारे कर्मचारी हैं जिनका सहयोग आपको प्राप्त है, घर में इसी सहयोग का अभाव है और अपेक्षाएं बहुत ज्यादा। सब को खुश रखने की चाहत में आप इतनी ज्यादा भावनात्मक दबाव में है जिसकी वजह से आप कभी-कभी कुछ भूल जाती है और आपसे सब की अपेक्षाएं इतनी ज्यादा है कि उन्हें लगता है कि आपको गलती करने का हक है ही नहीं।
इसीलिए एक छोटी सी भूल भी बहुत बड़ी गलती लगती है, आपकी भूल को गिनाया जाता है।आप ध्यान दीजिए तो आप से ज्यादा बार आपके पति या आपका बेटा बहुत सी बातों को भूल जाते होंगे, डॉक्टर अचला ने बहुत प्रेम से समझाया तो नम्रता की आंखें नम हो गईं।
डॉक्टर ने पानी का गिलास उसकी ओर बढ़ा दिया। पानी पीकर कुछ रिलैक्स होकर नम्रता ने पीठ कुर्सी पर टिका दी।कुछ पल बाद सिकुड़ी भावों के साथ चेहरे पर चिंता के भाव उभर आए बोली…… डॉक्टर मैं तो समझ गई पर घर वालों को कैसे समझाऊं उन्हें तो पूरा विश्वास हो गया है कि मुझे डिमेंशिया है। उन्हें अगर मैं आपसे मिलवाती हूं और जो बातें आपने मुझसे कहीं उन्हें कहने पर लगेगा कि मैंने शिकायत की क्योंकि उन्हें तो लगता ही नहीं कि वो कुछ गलत कर रहे हैं।
कुछ देर सोचकर डॉ अचला बोलीं…….. आप सबसे पहले घर में कैमरे लगवाइये और बातों को मोबाइल में रिकॉर्ड करने की कोशिश कीजिए। नम्रता आश्वस्त हो चेहरे पर खुशी के भाव लिए घर वापस आ गई। दूसरे ही दिन घर में कैमरे लगे। पहले विशाल ने विरोध किया फिर कमलाबाई रोहन के आने तक घर में अकेली क्या करती है उसकी निगरानी के लिए सहमत हो गए। डॉक्टर की सलाह काम कर गई। अब अकेले नम्रता से गलती न होती। अब सब की गलतियां उजागर होने लगीं। अब नम्रता की याददाश्त पर कोई बादाम खाने की सलाह नहीं देता। धीरे-धीरे नम्रता भावनात्मक दबाव से बाहर निकलने लगी। विशाल को लगता दवाइयों का असर है जो नम्रता बहुत कम भूलती है लेकिन ये उसका आत्मविश्वास था।
