स्वाभिमान-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Stories in Hindi
Swabhiman

Stories in Hindi: बहुत देर कमरे में बंद होकर घुटती कमला देवी की आंखों से आंसू बह रहे थे और सिसकियां गले में घुट रही थी।

अपने जज्बात वह प्रकट भी नहीं कर पा रही थी और न ही उनके तीनों बेटे उनकी बात सुन भी रहे थे।

उन्हें पता था कि कोई उन्हें मनाने नहीं आएगा और न ही उनसे कुछ पूछने।

आज उनका यह घर बिक जाएगा और फिर वह दर दर की ठोकर खाने को मजबूर हो जाएंगी।

उनके तीन बेटे …तीन .. दरवाजे …!साल के बारह महीने..चार-चार महीने एक.. एक दरवाजे… यही उनकी जिंदगी का आखिरी पड़ाव होगा।

उनके पति कमल कांत जी को गुजरे हुए दो साल होने जा रहे थे, उनकी कमी तो कोई भी नहीं पूरी कर सकता था लेकिन उनका बनाया हुआ यह छत उनके लिए एक छत्रछाया की तरह था जिसके नीचे वह शान से जी रही थीं।

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कमला जी बहुत देरी दरवाजे की तरफ टकटकी लगाकर देखती रही कोई भी नहीं आया।

मायूस होकर वह बिस्तर पर लेट गई। लेटते ही उनके दिमाग में कई ख्यालात झंझावात की तरह उधम मचाने लगे।

आज सुबह फिर से तीनों बेटों के साथ उनके बहस -बाजी हो गई थी।
तीनों की एक जुबान थी ।तीनों ही इस घर को बेचना चाहते थे।

कमला देवी का कहना था कि उनके जीते जी इस घर को वैसे ही छोड़ दें ।

वैसे भी उनके पिता ने तीनों के हिस्से तो दे दिए हैं।
यह घर उनके लिए एक छत की तरह है उनके लिए छोड़ दो… लेकिन बेटे थे कि उनकी बात सुनने के लिए तैयार है नहीं थे।

उन तीनों का कहना था कि मां तीनों बेटों के घर रहे। उनकी जिंदगी आराम से कट जाएगी।

कमलादेवी अब कैसे समझाएं कि अपना घर अपना होता है ,दूसरे का घर दूसरा।

वह घर बेटे बहू का है वहां वह कैसे रहेगी, किस तरह रहेगी! आखिर उम्र के इस पड़ाव में वह कितना सामंजस्य बिठा पाएगी!

कमला देवी एक ठंडी सांस ली। उनका मन पीछे की ओर भागने लगा।

उनके पति कमल कांत बैंक में एक कैशियर की नौकरी करते थे ।

कहने को कैशियर थे लेकिन उनके पास पैसे का हमेशा ही अभाव रहता था।

बड़ी मुश्किल से उन्होंने तीनों बेटों को पढ़ाया लिखाया और उसके साथ ही एक जमीन का छोटा सा प्लॉट खरीद लिया था।

जिसकी दीवारें खड़ी करने में कमला देवी ने अपने गले का हार हाथों के सोने की चूड़ियां सब कुछ गिरवी रख दिया था।

आज उनकी हाथ में कुछ भी नहीं था… वह कैसे इस घर की सौदेबाजी देख सकती हैं !

बंद आंखों से फिर से उनकी आंखों से आंसू बहने लगे ।

काफी देर तक विचार मंथन करने के बाद कमला जी काफी रिलैक्स फील करने लगी ।

दरवाजे पर दस्तक लगातार होने लगी ।
“माँ…, दरवाजा खोलिए !”

कमला देवी उठकर बाहर आईं।
” क्या हुआ बाबू ?”

“मां,आप का साइन चाहिए। बाहर बैंक के कर्मचारी और प्रॉपर्टी डीलर बैठे हुए हैं। आपके साइन के बगैर कोई काम नहीं हो सकता।”

कमलादेवी बहुत सोचविचार कर लिया था।बाहर बैंक और प्रॉपर्टी डीलर बैठे हुए थे।

कमला देवी ने अच्छे से कागज पढ़ा फिर उन्होंने उन लोगों से कहा

” सुनो इस घर में तीन नहीं चार हिस्से होंगे। जो पैसा मिलेगा उसे चार हिस्से होंगे, जिसमें एक मेरा भी होगा।

तीनों बेटों को सांप सूंघ गया। उन्होंने कहा
” मां, आप ऐसी बातें क्यों कर रही है !”

“क्योंकि यह मेरा घर है, मेरी मर्जी !मेरी साइन के बिना जब कुछ भी नहीं हो सकता तो मैं तुम लोगों को सारा क्यों दे दूं।

तुम लोगों के हिस्से तुम लोगों को मिल चुके हैं।अब तुम लोगों की नियत खराब हो गई है। मुझे जीते जी घर से बेदखल नहीं कर सकते। यह मेरी जिंदगी है मेरी मर्जी।”

उन्होंने प्रॉपर्टी डीलर और कर्मचारी से कहा
” इस घर को बनाने में मैंने अपने खून पसीने यहां तक कि अपने सोने के सारे गहने तक बेच दिया ।अब मेरे पास कुछ भी नहीं है।
यह मेरा घर मेरे लिए छत है। मेरे बच्चे मुझसे यह आशियाना भी छीन लेना चाहते हैं।

मैं यह कभी भी नहीं होने दूंगी …मेरे जीते जी यह संभव नहीं है।
अगर यह घर बिका तो उसके चार हिस्से होंगे एक हिस्से का पैसा मुझे भी मिलेगा।”

बैंक के अधिकारी और प्रॉपर्टी डीलर दोनों ने तालियां बजाते हुए कहा

“यदि महिलाएं आप जैसी सक्षम हो जाएं तो समाज बदल जाएगा माताजी!, बिल्कुल सही बात है।

आपके जीते जी आपका यह घर आपसे नहीं छिन सकता!

मैं चलता हूं नमस्ते!”

कमला देवी के तीनों बेटे सिर झुकाए खड़े थे।

कमला देवी ने उनसे कहा
“जैसे इतने दिनों तक झेल लिए वैसे ही कुछ दिन और…पता नहीं कब ये साँस थम जाए …लेकिन तबतक मुझे मेरे इस घर से मत निकालो।

यहां कई यादें हैं जो मुझे जिंदा रखतीं हैं…तुम्हारे पापा हर कोने में नजर आते हैं.. बेटा.. कहीं गए नहीं…!”आगे के शब्द सिसकियों में दब गईं।कमला देवी फूटफूटकर रो पड़ीं।

उनके तीनों बेटों ने उनसे माफी मांगी और कहा
“माँ,हम गलत थे, हमें क्षमा कर दीजिए।”