फोन की घंटी बजती है शेखर बाबू   देखते हैं  कि पड़ोस के गिरधारीलाल जी का फोन है तो फोन  काट देते हैं । दोपहर की मीठी नींद में व्यवधान उन्हें कतई पसंद नहीं है । उनके साथ उनका चार वर्षीया उदित भी सो रहा था इतने में फोन की घंटी फिर बज उठी।अब तो उन्हें बहुत ही झुंझलाहट हो गयी और तपाक से फ़ोन उठा कर बोले अरे भाई कोन है क्या काम है? । तभी दूसरी तरफ से उनके परम मित्र सुधीर जी की आवाज़ आई अरे भई सो रहे थे क्या? क्यूँ  इतने परेशान लग रहे हो?। अरे नहीं -नहीं , बस यह उदित जरा परेशान कर रहा था , बोलो  कैसे याद  किया और फिर क्या था दोनों में बातचीत का दौर शुरू हो गया और समय कैसे बीत  गया पता ही नहीं चला। शाम के करीब पांच बज चुके थे जब आखिर दोनों ने  कह कर फोन रख दिया।

फोन रखते ही फिर फोन बज उठा। इस बार फोन उनके बेटे धीरज ने उठाया ।दूसरी तरफ गिरधारीलालजी थे। उसने च्नमस्ते अंकलज् पापा को अभी बुलाता हूं, कह फोन क्रैडल पर रख दिया और आकर पिताजी से बोला पिताजी ताउजी-गिरधारी लाल जी को वह सब  ताउजी कह बुलाते थे – का फोन है ,आपसे बात करना चाहते हैं। पिताजी ने हाथ का इशारा करते हुए कहा कह दे मैं सो रहा हूँ। पास बैठा उदित यह सब बड़े कौतुहल से देख रहा था। बड़े ही भोलेपन से बोला दादू आप तो बैठे हो।
तभी सुधीर भी उनके पास आ कर बैठ गया और पूछा पापा क्या हुआ आप ताऊजी से बात क्यूँ नहीं कर रहे हो ?। अरे बेटा क्या बताऊँ बार बार पैसे मांग रहे हैं । मैंने कहा की अगले महीने दे देंगे, पर कहते हैं उन्हें अपने गाँव पैसे भेजने हैं अभी चाहिए। हमसे भी तो खुद  कई बार पैसे ले चुके हैं फिर तो देने का नाम ही नहीं लेते और अब देखो  दस दिन भी नहीं हुए कि  रोज किसी न किसी बहाने से पैसे मांगने चले आते हैं, और तो और अब तो फोन पर भी शुरू हो गए हैं। पर पापा आप बात तो कर लेते, हो सकता है उन्हें सच में ही कोई जरुरत आन पड़ी हो -धीरज ने कहा पर शेखर बाबु ने  कह कर उसे टाल दिया ।
पिछले महीने धीरज ने  एक फ्लैट बुक किया था जिसके लिए कुछ पैसे कम पड़ गए थे । उस समय गिरधारीलालजी भी पास में ही बैठे थे । वह बैंक से आये थे। उनके कुछ फिक्स्ड डिपाजिट की अवधि समाप्त होने वाली थी । जब उन्होंने कुछ पैसे कम पड़ने की  बात सुनी तो तुरंत ही वह पैसा देने का प्रस्ताव कर दिया । आखिर अपने होते किस लिए है  बड़ी ही आत्मीयता से उन्होंने कहा था। अगले दिन धीरज के साथ बैंक जा कर उन्होंने पैसों का इंतजाम कर दिया था।
धीरज बहुत ही सुलझा हुआ सा इंसान था। वह एक निजी कंपनी में कार्यरत था। अच्छी खासी आमदनी थी और घर में सब सुख के साधन उपलब्ध थे। पत्नी निशा भी एक अच्छे परिवार से थी । वह भी एक बैंक में नोकरी करती थी उनका एक प्यारा सा बेटा था जो अपने दादू और गिरधारी लाल जी से बहुत ही हिलामिला था । वह उन्हें भी दादू ही कहता था। वह सोच ही रहा था कि दरवाजे पर घंटी बजी। दरवाजे पर गिरधारी लाल जी खड़े थे । वे बहुत ही परेशान दिख रहे थे । धीरज ने उन्हें देख अन्दर आने को कहा और पानी पिलाने के बाद परेशानी की वजह पूछी । इतने में उदित भागता हुआ कमरे में आ गया और उनकी गोदी में बैठ बोला दादू आप पैसे  लेने आये हो। धीरज के पांव तले से ज़मीन  निकल गयी। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या कहे, बात बदलते हुए उसने उदित से कहा  जाओ माँ बुला रही है ।

अब तक शेखर बाबु भी कमरे में पहुँच चुके थे और उनकी नज़रे ज़मीन   में गढ़ ही गयी थी। चेहरे पर मुस्कराहट लाते  हुए बोले अरे यार आज तो हमारा फोन ही ख़राब हो गया , कहो कैसे हो? गिरधरी लाल जी रोने लगे और बोले आज गाँव से फोन आया है कि माँ बहुत बीमार है किसी भी समय वह शरीर छोड़ सकती है, इसलिए मुझे तुरंत ही गाँव के लिए निकलना होगा। अगर हो सके तो धीरज बेटा मुझे जरा बस स्टॉप तक छोड़ आये ताकि में जल्दी से जल्दी गाँव पहुँच जाऊ। क्यूं नहीं झट से धीरज बोला मैं आपको गाँव तक ही छोड़ आता हूँ । दो घंटे की तो बात ही है.अरे नहीं- नहीं बेटा, बस मुझे यहीं बस स्टैंड तक ही छोड़ दो। हर पांच  मिनट में बस मिल जाती है इतना कह कर वह उठ खड़े हुए और धीरज के साथ चले गए।