भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
नीना बिस्तर पर लेटी अपने सोच में गुम थी, उसके मन में एक नहीं बल्कि ढेरों शिकायत थी। घर के हर सदस्य से थी, किसी से कम और किसी से ज़्यादा। सबसे पहली शिकायत तो ये थी कि अब कोई उससे पहले जैसा प्यार नहीं करता। कोई उसकी बातों पर ध्यान नहीं देता। सब उपदेश देते हैं, तरीका सिखाने लगते हैं, जैसे वह अब भी छोटी-सी बच्ची हो। किसी को भी उसके पास बैठने का समय नहीं है, सभी बहुत व्यस्त रहते हैं, जबकि मीना दी के आते ही घर में चहल-पहल हो जाती है, सब उसके आगे पीछे घूमते नजर आते हैं, खाने-पीने से लेकर उठने-बैठने में सब उसका ध्यान रखते हैं। भाई भाभी और माँ की मिलकर खूब महफिल जमती है, हँसी मज़ाक होता है। तब सबके पास समय ही समय होता है, ये बात माँ को याद दिलाया तो उन्होंने झिड़क दिया कि वो दो दिन के लिए आती है, वो भी तुझे अच्छा नहीं लगता, कैसी बहन है तू।
अब तो भाई और भाभी की भी सुनिए, भाई ऑफिस से देर से घर आते हैं, और भाभी पहले से ही कोई न कोई काम ढूँढ कर रखती हैं, भाई के आते ही वो कभी डॉक्टर के पास जाना है तो कभी उनकी माँ बीमार होती हैं, कह कर चली जाती हैं, तो कभी कोई मिलने वाला ही चला आता है, तो कभी दोनों सैर सपाटे पर ही चले जाते हैं, रह जाती हूँ तो बस मैं, घर में अकेले। पर मेरे बारे में कोई नहीं सोचता और मैं बस इसी तरह जलती-कुढ़ती रहती हूँ।
भाई शादी के बाद बहुत बदल गये हैं न, उसने अपने से दो साल छोटी लीना से अपनी चभन बाँटने की कोशिश की। तो उसने तरन्त कहा कि हाँ वो डैसिंग और स्मार्ट भी हो गये हैं, वो अपनी पढ़ाई करती हुई बोली। उसने भाई के बदलने का अलग ही मतलब लगाया।
वह तो हो गये हैं लेकिन मेरा मतलब कुछ और था। नीना बदमजा हो कर बोली थी, लीना ने सर उठा कर देखा, वो समझ न पाई कि बहन को कौन-सी बात अच्छी नहीं लगी। फिर बोली, मैं समझी नहीं तो लीना ने कहा कि भाई हमें इग्नोर कर रहे है, कभी अपने साथ नहीं ले जाते, जब कि रोज़ ही कहीं न कहीं जाते हैं।
तब लीना ने कहा, कैसी बातें कर रही हो, भाई अपने दोस्त की वेडिंग एनिवर्सरी पर गये थे, तो तुम्हें अपने साथ कैसे ले जाते, बुरा मत मानना, तुम्हारी सोच किस तरफ जा रही है कभी इस पर विचार करना, परसों मीना दी से भी तुमने कुछ इसी तरह की बातें की, माँ से भी यही बात कह रही थीं, कह कर वह दुबारा अपनी किताबों में खो गई।
बहन की सोच पर लीना को दुख हो रहा था, उसने उसे समझाने की बहुत कोशिश की पर वो कुछ समझने को तैयार नहीं थी, मन में न जाने कैसी गाँठ पड़ रही थी, जो खुलने वाली नहीं लग रही थी।
हर व्यक्ति में खूबियों के साथ-साथ कुछ न कुछ कमी भी होती है, लीना ने नीना से कहा हो सकता है भाभी में भी कुछ अच्छाई है तो कुछ कमी भी होगी, समय आने पर पता चलेगी ही, लेकिन उनके बारे में ऐसी सोच रखना अच्छी बात नहीं है, जो बातें तुम सोच रही हो वह गलत भी हो सकती है, इसीलिए अपना मन खराब मत करो, और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो। आदर्श भाभी, आदर्श बह बस किताबों में होती हैं और अभी तक उन्होंने ऐसा कछ किया भी नहीं है, जो तुम उन्हें बुरा साबित करने पर तुली हो और अपने मन को परेशान कर रही हो। मैं आदर्श बहू और आदर्श भाभी बन कर दिखाऊँगी, नीना ने तपाक से कहा और सब मेरी मिसाल देंगे कि बहू हो तो ऐसी, भाभी हो तो ऐसी। “ईश्वर तुम्हारी इच्छा जल्दी पूरी करे, लीना ने मुस्कुरा कर कहा, ताकि अपनी बारी भी आए और इस पढ़ाई से जान छूटे, कह कर हँसने लगी।”
बहुत जल्दी ही वह समय भी आ गया जब नीना की शादी तय हो गई। घर में सभी बहुत खुश थे, अच्छा रिश्ता मिलने पर, नियत तिथि पर नीना की शादी और विदाई हो गई, भरा-पूरा ससुराल था, नीना बड़ी बहू बनकर गई थी, वह अपने बात व्यवहार से सबके दिलों में जगह बनाना चाहती थी, इसीलिए वह ननद-देवर, सास-ससुर सभी का ध्यान रखती, लेकिन पति जब माँ, भाई-बहन के साथ होते तो वह उनके बीच कभी नही बैठती थी कि पति का अपने परिवार से पहले जैसा रिश्ता ही रहे मेरी वजह से दूरी न बने, जबकि उसके पति चाहते थे कि नीना भी सबके साथ उठे-बैठे।
शादी के बाद का समय पति-पत्नी को एक-दूसरे को समझने का समय होता है. उसे नीना ने आदर्श बह और भाभी बनने के चक्कर में गँवा दिया। अपने ऊपर असमय ही घर की सारी जिम्मेदारी ओढ़ ली, सास गठिया की मरीज़ थीं, ननद-देवर अपनी पढ़ाई में व्यस्त, कभी ननद किचेन में मदद के लिए जाती भी तो वह वापस भेज देती थी कि जाओ एक्जाम की तैयारी करो, प्रतिदिन के कामों से नीना अब थकने लगी थी, पर उसे थकावट और परेशानी की कोई फिक्र नहीं थी, वह पेन किलर ले लेती थी। उसके ससुराल वालों को उससे कोई शिकायत नहीं थी, तो वह समझती थी कि सब उससे बहुत खुश हैं और आदर करते है लेकिन एक दिन उसकी ये गलतफहमी दूर हो गई जब बुआ सास का घर में आगमन हुआ। नीना ने बहुत अच्छे तरीके से उनका स्वागत सत्कार किया, खाना पीना होने के बाद बुआ जी आराम करने के लिए भाभी और भतीजी के पास बैठी आपस में बातें करने लगीं। कुछ देर बाद नीना तीनों के लिए चाय बना कर ले गई, साथ में कुछ स्नेक्स भी रख लिया, जब दरवाजे पर पहुँची तो अपना जिक्र सुन कर रुक गई, बुआ जी कह रही थीं कि बहू ने आते ही किचेन संभाल लिया। लगता है घर में इसकी भाभी कोई काम नही करती होगी, सारा काम इससे ही कराती रही होगी, इस पर भतीजी रिया ने कहा, सही कह रही हैं आप बुआ जी, हम सब तो अपने ही घर में अजनबी बन कर रह गये हैं, किचेन पर तो भाभी का एक छत्र राज है, हम अपने मन से कुछ बना खा भी नही सकते, वो हमारा किचेन में जाना बर्दास्त नही करतीं, तुरन्त भगा देती हैं। रिया ने बुआजी को अपने दिल के छाले दिखलाए। बुआ भी यह बात सुनकर सोच में पड़ गईं। तब रिया ने कहा बुआ जी इतना ही नही मामाजी की बड़ी बेटी विभा दी आई थी, उसे मेरे हाथ का हलवा बहुत पसंद है, आते ही उन्होंने कहा, “रिया तुम्हारे हाथ का हलवा मुझे यहाँ खींच लाया है, जल्दी से बना कर खिला दो”, मैं किचेन में गई, उनसे निवेदन किया कि चाय नाश्ते में उनकी मदद करूँ, पर उन्होंने मना कर दिया, चाय नाश्ते में हलवा न देख कर उन्हें बहुत बुरा लगा और मैं अपनी सफाई में कुछ कह भी नहीं पाई। बहुत चालाक हैं भाभी मेरी पढ़ाई को ढाल बना कर हर बार मना कर देती हैं, कोई मनोवैज्ञानिक समस्या है उनके साथ शायद, वो चाहती हैं कि सब उनके आश्रित रहें, उनकी वाह-वाह करें, हर काम का क्रेडिट केवल उनको ही मिले, किसी और को नहीं।
बुआ जी ने कहा, “लेकिन ऐसी लगती तो नहीं, पर क्या कहा जा सकता है किसी के बारे में, साथ रहने पर ही पता चल सकता है।”
यह सब सुनकर लीना का कलेजा छलनी-छलनी हो गया, वह अपनी जगह ठिठक कर खामोश खड़ी रह गई।
रिया ने कहा बुआ जी और क्या-क्या बताऊँ, मैंने तो अपने को बहुत कन्ट्रोल कर रखा है ताकि घर में शान्ति-व्यवस्था बनी रहे और भैया को लगता है कि हमें अपने आराम तलबी से मतलब है, फिर भी भूले-भटके कभी पास बैठ भी गये तो भाभी बेडरूम में जाकर कुछ उठा-पटक करने लगती हैं और भाई का ध्यान बार-बार उधर चला जाता है। तंग आकर कहना पड़ जाता है कि भैया जा कर आप आराम करें और वो भी तुरन्त उठ जाते हैं। भाई की शादी से पहले सोचा था, भाभी से दोस्ती और सम्मान का रिश्ता रखंगी। लीना होठों पर मुस्कान ओढ़ कर अन्दर चाय दे आई और उसके मन ने सोचा शायद हर ननद को अपनी भाभी से शिकायत होती ही है।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
