उसकी पत्नी ने उत्तर दिया और गुनगुनाने लगी। धर्मेंद्र को पत्नी का गुनगुनाना पसंद न आया। पिछले कुछ दिनों से उसकी पत्नी ऐसा ही कर रही थी। उसने अक्सर अपनी पत्नी को गुनगुनाते हुए देखा। उसे अपनी पत्नी के चरित्र पर शक होने लगा। दिल ही दिल सोचने लगा कि अगर घर पर कोई नहीं आया तो फिर मुख्य द्वार के बाहर मिट्टी से सने पदचिन्हों के निशान किस के थे? इसी बात को लेकर झगड़ा इतना बढ़ गया कि बात तलाक पर जाकर समाप्त हुई। दोनों को अलग हुए कई वर्ष बीत गए। एक दिन धर्मेंद्र मार्किट में शॉपिंग कर रहा था कि उसे अपना पुराना मित्र मिल गया। मित्र ने उसे बताया कि कई वर्ष पूर्व वह विदेश चला गया था। कुछ दिन पहले ही वह विदेश से लौटा है। धर्मेंद्र ने अपने मित्र से कहा, ‘यार, विदेश जाने से पहले एक बार मुझ से मिल कर तो जाते।’ उसके मित्र ने कहा, ‘विदेश जाने से पहले एक दिन मैं तुम्हारे घर गया था। उस दिन बहुत तेज वर्षा हो रही थी। कई बार डोरबेल बजाने के बाद भी किसी ने दरवाजा न खोला। शायद बिजली सप्लाई बंद होगी। मैंने कई बार तुम्हारा नाम लेकर आवाज भी लगाई थी। शायद मेरी आवाज बादलों की तेज गर्जना के नीचे दब गई थी। मैं बाहर से ही लौट गया। अगले दिन मेरी फ्लाइट थी।’

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