Sach: सुरभि महिला उद्धार समिति की अध्यक्षा थी। आए दिन महिलाओं के कल्याण के लिए उसकी संस्था के आयोजन होते रहते। वह भरसक महिलाओं की मदद करने के लिए सदैव तत्पर रहती । उसके पास आने वाले अधिकतर केसो को सुलझाने में महिलाओं को कानूनी मदद भी दिला कर उनकी सहायता करती ।
एक दिन एक महिला और उसकी मां सुरभि से कानूनी सहायता मांगने आ पहुंची । उन्होंने अपनी बात बताई और बताया कि उनका पति उनसे तलाक चाहता है। सुरभि ने सारी बातें सुनने के पश्चात यह निर्णय लिया कि वह उस दोषी अत्याचारी पति को सबक सिखाएं बिना कतई नहीं मानेगी । और उस से भेंट करके उसकी लानत मलामत करने के उद्देश्य से महिलाओं द्वारा दिए गए पते पर पहुंच गई।
लेकिन वह वहां पर क्या देखती है ! उस महिला का पति अपने वृद्ध मां-बाप के लिए भोजन तैयार करके उन्हें खिला रहा है । साथ ही साथ अपनी ड्यूटी पर जाने की तैयारी भी करता जा रहा है और सुरभि के सवालों का जवाब भी देता जा रहा था।
अंत में उस महिला के पति ने बस इतना ही कहा— मैडम जरूरी नहीं है कि हर पति दोषी और अत्याचारी ही हो कुछ लाचार भी होते हैं। अगर मैं अपनी पत्नी का कहना मानु तो मुझे अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम भेजना पड़ेगा ताकि वह चैन से रह सके ।
और मैं अपने अशक्त माता-पिता को पल-पल अकेले घुट-घुटकर मरता नहीं देख सकता.. आजकल की लड़कियां रील वाली जिंदगी खोजती हैं जिनमें सिर्फ पति होता है लेकिन मैडम रियल में एक पुरुष के कई फर्ज होते हैं पति के अलावे …जो लड़कियों को नागवार गुजरता है।
सुरभि के मस्तिष्क का धुंध छट चुका था। वह सच को समझकर एक सटीक निर्णय ले चुकी थी ।क्योंकि उसको भी अपने माता-पिता से बहुत प्यार था और वह भी अपने माता- पिता को वृद्धा आश्रम मे भेजने की कल्पना नहीं कर सकती। उसके सामने सच आईने की तरह साफ हो चुका था ।
अतः सभी को नमस्कार कर उसने विदा मांगी।
