‘रुक जाओ रश्मि! इतनी तेज मत भागो, गिर जाओगी।’

‘गिरती हूँ तो गिर जाऊँ, तुम्हें क्या? मैं न भी रहूँगी तो तुम्हें क्या फर्क पड़ेगा? तुम्हें कौन-सा मुझसे प्यार है?’

‘मुझे न सही, तुम्हें तो मुझसे प्यार है। उसी के लिए रुक जाओ।’ लड़के ने रश्मि के पास पहुँच उसका हाथ पकड़ते हुए कहा।

‘तुम्हें मुझसे बिलकुल प्यार नहीं है।’ लड़की ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा।

‘ऐसा क्यों कहती हो रश्मि, तुम्हें ऐसा क्यों लगता है?’ लड़के ने उसका चेहरा अपने हाथों के प्याले में भरते हुए कहा।

लड़की अपने चेहरे को लड़के के हाथों से आजाद करवाते हुए बोली, ‘तुमने कभी मेरी तारीफ की है? कभी कहा कि तुम बहुत सुंदर हो, चाँद जैसी लगती हो। कभी कहा कि तुम्हारी नीली आँखें झील-सी गहरी हैं। प्यार होता तो कहते न कि तुम्हारे होंठ गुलाब की पंखुड़ियों-से नाजुक हैं।

‘रश्मि ऐसी बात नहीं है, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ।’ लड़के ने अपनी बात कहनी चाही।

‘मैं तुम्हें अच्छी नहीं लगती हूँ…या फिर कोई और बात है?’ कह कर रश्मि लड़के की आँखों को पढ़ने की कोशिश करने लगी।

लड़के ने इधऱ-उधऱ देखा। फिर लड़की को अपने पास खींचा और उसके चेहरे को हाथों में भरकर निहारने लगा। लड़की जैसे ही कुछ बोलने को हुई उसने अपने होठ उसके होठों पर रख दिये। लड़की कसमसाई। खुद को अलग करती हुई बोली, ‘मुझे बहलाओ मत।’

लड़की के दोनों हाथों को अपने हाथ में लेते हुए लड़का बोला, ‘मुझे नहीं पता, किन्हें चाँद में महबूब दिखता है या फिर महबूब में चाँद, मुझे तो तुम्हारे सिवाय कहीं कुछ नजर ही नहीं आता… तुम्हारे जैसा कोई नहीं दिखता। जब भी तुम्हें देखता हूँ रश्मि, मेरी साँसे रुकने लगती हैं। शब्द खो जाते हैं। इसीलिए तुमसे कभी कुछ कह नहीं पाता। बस इतना जानता हूँ कि तुम हो तो मैं हूँ, तुम्हारे बिन मैं कुछ नहीं हूँ…!’ लड़के की आँखों से खारा पानी बह चला था।

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