प्रेम—वह दफ्तर से सीधी आ गयी थी, इसलिए कुछ थकी-थकी-सी थी और उसकी काली गर्दन पर पसीने से मैल नम हो गयी थी। मेरे पहलू में बैठकर उसने पर्स से रूमाल निकाल और मुंह साफ करने लगी । मुझे यों ही बैठे देखकर उसे शायद हैरानी हुई । बोली, ‘आप मेरे आने पर खुश नहीं हुए। लगता है, नहीं हुए ।”
मैं वाकई खुश हुआ था । मैंने कहा, ‘खुश तो हुआ हूं लेकिन खुशी जाहिर कैसे की जाती है?”
“खुशी अपने आप जाहिर हो जाती है ।” उसने कहा,”पहले आप मुझे देखते ही सीटी बजाया करते थे या दूर से ही देखकर रूमाल हिलाया करते थे ।” उसने शायद कल का ब्लाउज पहना हुआ था । वह जूड़ा ठीक करने लगी तो हल्की-सी बू आई।
“मैं आज रूमाल घर भूल आया हूं ।” मैंने कहा, ‘अब परांठे कब खिला रही हो?”
“परांठे?” वह हंसी । उसके दांत बहुत सफेद हैं । बोली, ‘सैकेंड सैटरडे को कुतुब चलेंगे ।”
उसने मेरी गोद में से किताब उठा ली और अस्तर पर लिखे मेरे नाम को पढ़कर बोली, ‘आपका नाम आदमियों जैसा है। मेरा मतलब बूढ़ों जैसा। मेरा नाम डब्ल्यू. दास है । वैसे उसका अपना नाम निहायत भोंडा है ।”
“अपने लिए कोई अच्छा-सा नाम बताइए ।”
“अच्छे-अच्छे नाम कुत्तों के रखे जाते हैं ।” मैंने कहा ।
“आज मेरा अपने बॉस से झगड़ा होते-होते रह गया ।” उसने कहा ।
“तुम्हें अपना बॉस क्यों याद आ गया?” मैंने पूछा ।
“उसका नाम कुत्तों जैसा है ।” उसने कहा ।
वह दांत निपोर रही थी और उंगलियों के बड़े-बड़े नाखूनों से गर्दन की मैल खुरच रही थी । मैंने कहा,”अच्छा नहीं लगता ।”
“क्या?” उसने अपने नाखून की तरफ देखा और बोली, ‘लगता है, जल्दी हमारा झगड़ा हो जाएगा ।”
“तुम बेवकूफ हो । हमारा झगड़ा नहीं हो सकता । झगड़ा बच्चे करते हैं।”
“कॉफी नहीं पिएंगे?” उसने पूछा ।
“पीएंगे।”
“मुझे भूख लगी है ।” उसने कहा ।
“मुझे भी लगी है ।”
“हम लोग रोज रोटी खाते हैं । मैं अट्ठारह साल से रोटियां खा रही हूं ।” वह बतियाने के मूड में है ।
“तुम अपनी उमर कम क्यों बताना चाहती हो?” मैंने पूछा ।
“पैदा होते ही रोटी शुरू नहीं कर दी थी ।” उसने कहा ।
वह अपने तर्क से खुश हो गई । मैं भी हुआ ।
“लड़कियों को नौकरी नहीं करनी चाहिए ।”
“क्या करना चाहिए?” मैंने पूछा ।
“आपका ध्यान मेरी तरफ नहीं ।” उसने मुझे आकाश की तरफ देखते हुए पकड़ लिया था ।
“किसकी तरफ है?” मैंने कहा, ‘पार्क में चने बेचने वाला भी नहीं ।”
“आप आफिस से सीधा यहां आ गए थे?”
“बिल्कुल सीधा ।”मैंने कहा ।
“हम दोनों कॉफी पिएंगे ।”
वह उठी, इधर-उधर देखकर उसने अंगड़ाई ली और हम दोनों एक सस्ते रेस्तरां में चले गए । कॉफी का पहला सिप लेकर उसने कहा, ‘मुझे पहले पानी पीना चाहिए था ।”
“बैरे को टिप नहीं करेंगे । उसे पहले पानी लाना चाहिए था ।”
दरअसल मेरे पास पैसे कम थे ।
“लोग टिप क्यों करते हैं?” उसने पूछा ।
“लोग कॉफी से पहले पानी नहीं पीते होंगे ।”
“खैर, कॉफी अच्छी है ।” उसने एक लम्बा घूंट लिया और सड़प आवाज़ की ।
मैंने कहना चाहा; सड़प की ‘आवाज नहीं किया करते, फिर मैंने सोचा, कई बातें शादी के बाद समझाऊंगा ।
“अब तो आपका मकान मालिक बोर नहीं करता?” उसने पूछा ।
“नहीं, वह दूर पर गया है।” मैंने कहा।
“बच्चे-अच्छे साथ गए हैं?”
“बच्चे लेकर टूर पर कौन माता है? – मैं उसकी बात समझ रहा था । मैंने कहा, ‘उसका एक ही बच्चा है और वह मुझे बाजार से सिगरेट ला देता है।”
“कितना बड़ा है?” उसने पूछा।
“तुमसे आधी उमर का होगा ।” मैंने कहा।
“उसकी बीवी अकेली बोर होती होगी?”
“शायद होती होगी।”
“हम मकान नजदीक लेंगे।”
“नहीं उसी में रहेंगे। मकान में न मुर्गियां हैं और न रेडियो ।”
वह मुस्कराती है। वह मुस्कराती रहती है। मेरा खयाल है, उजले दांतों वाली काली लड़कियां ज्यादा मुस्कराती हैं। उसने कॉफी का अन्तिम घूंट भरा और प्याला परे सरका दिया ।
“कॉफी और लोगी।” मैंने तुरन्त पूछा ।
“थोड़ी देर बाद पानी पीऊंगी । आज मैं दफ्तर से पानी पीकर नहीं चली थी।” ‘हमने आज के.बी. की कोई बात नहीं की। अब बह तुम्हारा पीछा तो नहीं करता?”
“नहीं, हम उसकी बात किया ही नहीं करेंगे । कल वह पिताजी को करोल बाग में मिल गया था। पिताजी पूछ रहे थे, डब्ल्यू दास कौन है?”
“यह तो दो हफ्ते पहले भी पूछा था ।”
“वह जानते हैं। मेस खयाल है अभी कई बार पूछेंगे।”
“के.बी. को क्या कष्ट है?”
“पिताजी से कहता था, उसकी तनख्वाह भी डब्ल्यू दास के बराबर है।”
बैरे को देखकर उसने पानी मंगवाया । एक ही घूंट में पानी पीकर उसने कहा, – ‘हम के.बी. की बातें क्यों करते हैं?”
“के.बी. सेचक व्यक्ति है। मैंने कहा।
मैंने कॉफी खत्म की तो उसने कहा, ‘अब न जाने कितनी देर क्यू में खड़ा रहना पड़ेगा। हम स्कूटर खरीदेंगे।”
“स्कूटर न लिया गया तो एक ही बस में पर बाबा करेंगे।” मैंने कहा। ‘घर हम किस के नजदीक ही कहीं लेंगे और टहलते हुए जाया करेंगे। छुट्टी के बाद दोनो इसी पार्क में आ जाया करेंगे। उसने सुझाव दिया।
हमने बिल चुकाया और रेस्तरां से बाहर आ गए।
मैं उसे उसके बस स्टॉप तक छोड़ आने के इरादे से उसके साथ-साथ चल पड़ा ।
“पिक्चर देखे मुद्दत हो गयी है । सैकेंड सैटरडे को पिक्चर चलेंगे ।”
वह थकी हुई थी । लेकिन फिर भी बोले जा रही थी । क्यू में जुड़कर उसने कहा,”कल यहीं मिलेंगे ।”
“ओ.के.” मैंने कहा और अपने बस स्टॉप पर चला गया । मेरे घर की तरफ जाने वाली बस तुरन्त आ गयी, लेकिन मैं क्यू में पीछे खड़ा था । मैं बस से उतरने वाली सवारियां गिनने लगा ।