पवित्र रिश्ता- शोभा को मायके आए हुए आज दो दिन हो गए। शाम के समय टहलते- टहलते वह पार्क के तरफ चली गई ,जहां उसकी दादी अपनी सहेलियों के साथ बैठकर गप लड़ा रही थी उसने सब को नमस्ते किया और वह भी वहीं पर बैठ गई।
दादी की सहेली सुनंदा दादी ने शोभा से पूछा —” बिटिया ससुराल के हाल-चाल बताओ ” तो वह उन्हें अपने परिवार वालों के बारे में बताने लगी तभी सामने से पारो दीदी गुजरती हुई दिखाई दी तो उसने चिल्लाकर पारो दीदी से “नमस्ते ” कहा जब पारो ने उसे देखा तो मुस्कुरा कर उसे भी “नमस्ते “कहा… वह पास आना चाहती थी पर पता नहीं क्या सोच कर मुस्कुरा कर चली गई,
उसके चले जाने के बाद
सुमति दादी ने मुंह बिचकाया और बोली —-” शोभा बेटी तुझे क्या जरूरत है उस के जैसे लोगों से संपर्क रखने की”,
शोभा समझ नही पाई उसने सुमति दादी से कहा–” दादी आप ऐसा क्यों कह रही हो पारो दीदी इतनी तो अच्छी है”
तो सुमति दादी ने कहा -“क्या तुझे पता नहीं है इसका राजू के साथ अवैध संबंध है पति जब था तब तो थोड़ी गनीमत थी अब तो खुलेआम उसके घर में रहता है और आता जाता है एक नंबर की चरित्रहीन है पारो अपने बच्चों से भी शर्म नहीं करती “
शोभा ने बात को बीच में काटते हुए कहा —“दादी आप उन्हें चरित्रहीन कैसे कह सकती हैं क्या जिंदगी में एक बार गलत आदमी मांग भर दे तो उसके बाद लड़की की जिंदगी खत्म हो जाती है क्या उसे जीने का अधिकार नहीं रह जाता और रही बात पारो दीदी के पति मंगल की तो उस शराबी की पत्नी होने से अच्छा है विधवा या अविवाहित रहना अरे कौन सा सुख उसने पारो दीदी को दिया था बस एक ही सुख दिया था तीन-तीन बच्चे उसकी गोद में कम उम्र में थमा दिया और खुद होटल में काम करता था शराब पीकर पड़ा रहता था हफ्ते में एक बार उनसे मारपीट करने और पैसे छीनने के लिए चला आता था, कितने बार मोहल्ले वालों ने देखा कि वह सरेआम मारपीट कर पारो दीदी से रुपए छीन ले जाता है वह यह भी नहीं सोचता था कि खुद तो वह पैसे उन्हें नहीं देता है फिर वह बच्चों को क्या खिलाएगी वह तो राजू चाचा के डर से थोड़ा बाद में मारना पीटना कम कर दिया और अपने शराब की लत से ही मर गया तब इसी राजू चाचा ने पारो दीदी को सहारा दिया जहां खुद काम करते हैं वहां पर उनको काम दिलवाया और अब पूरी जिम्मेदारी से पारो दीदी का साथ निभा रहे हैं साथ ही अपने परिवार को भी संभालते हैं… जिस राजू चाचा के साथ संबंध के चलते आप चरित्रहीन कह रही हैं उसी राजू चाचा की देन है कि पारो दीदी की दोनों बेटियां ब्याह करके अच्छे घरों में सुखी ससुराल जा चुकी हैं और बेटा भी काम करके अब अपनी मां का सहारा बन रहा है अगर उस समय राजू चाचा ना होते तो शायद पारो दीदी अपने बच्चों के साथ भुखमरी से खुदकुशी कर लेती या किसी गलत धंधे में पहुंच जाती क्योंकि एक जवान खूबसूरत औरत सबको मौके की तरह लगती है जिम्मेदारी की तरह नहीं!!!
पूरे समाज में यदि किसी ने यह जिम्मेदारी उठाई तो राजू चाचा थे और अब भी वह जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभाते हैं पारो दीदी की भी तथा अपने परिवार को भी.. आज जब मैं खुद बाल बच्चे दार हु तब मुझे यह बात समझ में आती है कितना मुश्किल होता है सारी जिम्मेदारियों को इस महंगाई के जमाने में निभाना जबकि हम दोनों मियां बीवी दोनों ही कमाते हैं फिर भी कुछ ना कुछ कमी रह जाती है तो सोचिए वह अकेली तीन तीन बच्चों के साथ किस प्रकार गुजर-बसर करती अगर उन्होंने किसी का हाथ ईमानदारी से थाम लिया तो मेरे लिए उस शराबी और जलील के रिश्ते से ज्यादा ” पवित्र रिश्ता ” राजू चाचा और पारो दीदी का लगता है आपके लिए बेशक वह गलत होगा पर मेरे लिए रत्ती भर भी नहीं है “
दादी शोभा की बातें सुनकर कुछ भी प्रतिउत्तर में नहीं बोल सकी…।