नारीमन की कहानियां
Nariman Ki Kahaniyan

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

हरियाणा के गांव में एक महिला गंगा अपने बेटे दीपक के साथ रहती थी। अक्सर वो अपनी पुरानी ज़िन्दगी को याद कर उदास हो जाती थी कि शादी के बाद उसका पति धर्मपाल उसको भला-बुरा कहने लगा था। हर समय उसे अनपढ़ होने का ताना मारता था। धर्मपाल हमेशा गंगा को कहता था कि वह किसी काबिल नहीं। गंगा हमेशा चुपचाप सहती रहती थी। सोचती थी किसी दिन उसका पति उस के मोल को समझेगा। वह एक अच्छी गहणी थी। उनके यहां शादी के तीन साल बाद बड़ी मन्नतों के साथ दीपक का जन्म हुआ। फिर भी पति-पत्नी की नहीं बनी। पाँच वर्ष के बाद गंगा के पति धर्मपाल उसे अनपढ़ और गँवार समझ कर छोड़ कर चला गया। तब गंगा का बेटा मात्र दो वर्ष का था। ससुराल वालों ने भी उसके पति धर्मपाल का साथ दिया। मायके वाले भी छोटी सोच के निकले। वह कहते कि लड़की के विवाह के बाद मायके वाले उसके अच्छे-बुरे के लिए ज़िम्मेदार नहीं है। विवाह के बाद बेटी पराई हो जाती है। वाह री अबला नारी, “आँचल में है दूध, आँखों में पानी।” ससुराल व मायका उसके लिए बेगाना हो गया था। कोई भी उसकी सहायता के लिए नहीं आया। भाई, जिसको राखी बांधती रही, उसने भी राखी का कोई मोल नहीं रखा। राखी के कच्चे धागे टूट गए। भाभी और सब बहनें दूर हो गई।

इन सब के बाद भी गंगा ने हिम्मत नहीं हारी। गंगा ने असम्भव को सम्भव बनाने की प्रेरणा अपनी स्वर्गीय दादी से पाई थी। गंगा के पास अपने बेटे दीपक के अलावा कुछ नहीं था। अपना और अपने बेटे दीपक का पालन-पोषण करना था, हाँ हौसला बहुत था। हिम्मत व सहनशक्ति भरपूर थी। पर भावनाओं से काम नहीं चलता। धर्मपाल इतना निकम्मा निकला था कि उसने कभी काम पर ध्यान नहीं दिया। खेत-खलिहान भी गिरवी रख दिए। घर बैठ कर खाता रहा और पत्नी और बेटे को भूखा मरने के लिए छोड़ कर चला गया।

एक साहूकार के पास उनके खेत-खलिहान गिरवी पड़े थे। साहूकार कहता काम करो, पैसा कमाओ और अपने खेत-खलिहान छुड़वा लो। गंगा के पास अब कोई विकल्प नहीं रह गया था। खेत-खलिहान तो हर कीमत पर साहूकार से छुड़वाने थे। गंगा पूरी तरह धन कमाने में जुट गई। उस साहूकार के खेतों में मजदूरी करने लगी। मशीन पर सिलाई जानने का हुनर आज रंग लाया। दिन में खेतों में काम करती और रात को गांव वालों के कपड़े सी धन अर्जित करती। गांव वालों ने भी साथ दिया। बहुत लोग गंगा से कपड़े सिलवाने लगे।

गंगा अच्छे व्यवहार व कड़ी मेहनत के कारण अपने खेत-खलिहान को साहूकार से छुड़ाने में सफल हो गई। गंगा ने खेत खलिहान को अपनी जीविका का साधन बना लिया। खेतों की जमीनें बंजर हो गई थीं। एक छोटा-सा टयूबवेल लगवाया और खेत जोतने के लिए गंगा ने एक जोड़ी बैल खरीद लिए। अकेले वह यह सब नहीं कर पा रही थी। भोलाराम किसान की मदद लेती रही। गांव वाले गंगा की बहुत प्रशंसा करने लगे और इस तरह गंगा के जीवन में अमृतधारा बह निकली। गंगा का बेटा दीपक अब चार साल का हो गया था। गंगा को उसको पढ़ाने की चिंता सताने लगी। सोचा वो तो आज अनपढ़ होने की इतनी सजा व कष्ट सह रही है। पढ़ाई की कीमत उसे आज समझ में आ गयी थी। जो गलती कर आज वह पछता रही थी और अपने माता-पिता की भूल को भी वह दोहराना नहीं चाहती थी। गंगा ने दीपक को स्कूल भेजने का निर्णय लिया और दीपक को गांव के सरकारी स्कूल में भर्ती करवा दिया। उसे रोज़ स्कूल छोड़ने जाती। खाने-पीने और किताबों का पूरा ध्यान रखती और उसे स्कूल का काम पूरा करने के लिए बार-बार कहती।

गंगा दीपक को अच्छे संस्कार देती कि स्कूल में पूरी निष्ठा से पढ़ाई करना तथा अपने अध्यापकों का भी सम्मान करना सिखाया। अच्छी आदतें डालती, सफाई व सच्चाई से चलना सिखाती। गंगा के अच्छे संस्कारों और मेहनत के कारण दीपक स्कूल में हर वर्ष परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीण िहोता। स्कूल में दीपक सब का चहेता बन गया। सभी गांव वाले व स्कूल वाले गंगा को बधाई देते कि होनहार सपूत को जन्म दिया है। कहते हैं कि ‘होनहार बिर्वान् के होत चीकने पात।’ बचपन से दीपक उम्मीद से बढ़ कर निकला। दीपक पढ़ाई के साथ खेल-कूद में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता।

दीपक ने बाहरवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। गंगा ने दीपक को निकट के शहर में कॉलेज में दाखिल करवा दिया। कॉलेज में भी पढ़ाई के साथ खेल-कूद भी जारी रखे। बहुत मेहनत और अच्छी लगन के कारण दीपक ने कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्रथम श्रेणी में हासिल की।

स्कूल और कॉलेज की फीस व अन्य खर्च के लिए गंगा को खेत-खलिहान में बहुत मेहनत करनी पड़ी थी। कई मजदूरों, किसानों को भी काम पर रखा। अपने खेत के कुछ हिस्सों में गंगा ने फूलों की खेती भी की, जिससे उसे अधिक धन प्राप्त होता था। इन सब से वह दीपक को उच्च शिक्षा दिलाने में सफल हो पायी। दीपक अपनी माँ गंगा को हर पल देखता था कि उसकी माँ कितनी मेहनत करती थी व कुछ भी बड़ा कर गुज़रने की भावना व प्रेरणा उसे अपनी माँ से मिली। देश के प्रति सम्मान के कारण दीपक ने सेना में जाने का निर्णय लिया और सेना में भर्ती हो गया। अपनी मेहनत और लगन से दीपक बहुत जल्दी मेजर बन गया। भारत माँ के प्रेम से ओत-प्रोत दीपक हमेशा इसकी रक्षा के लिए तत्पर रहता। भारतीय सेना ने दीपक को उसके दृढ़ संकल्प, निष्ठा के कारण श्रीनगर क्षेत्र में आतंकवादियो से कड़ा मुकाबला करने के लिए जिम्मेदारी सौंपी। अपनी बहादुरी, निपुणता और साहस के कारण आतंकवादियों को ढेर करने में सफल हुआ पर वह इस लड़ाई में घायल हो गया था। श्रीनगर के अस्पताल में भर्ती करवाया गया। स्वस्थ्य हो कर गाँव में माँ को मिलने आया। गांव वालों ने पूरा आदर व सम्मान किया।

गंगा अपने होनहार लाल दीपक को देख कर गर्व व खुशी से फूली नही समाई और अश्रुधारा बह निकली। सेना ने दीपक का नाम 26 जनवरी पर राष्ट्रपति से मिलने वाले सम्मान के लिए मनोनीत किया। इस 26 जनवरी 2021 पर दीपक को परमवीर चक्र मिलना तय हो गया। दीपक अपनी माँ गंगा को लेकर राजधानी दिल्ली गया ।

दीपक ने यह महान पुरस्कार लेते हुए स्टेज पर अपनी माँ गंगा को अपने साथ बुलाने की अनुमति मांगी। गंगा की तपस्या व लग्न आज रंग लाई और वह अपने बेटे दीपक के पास स्टेज पर खड़ी थी। गंगा ने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा सार्थक कर दिखाया। किसान माँ का बेटा आज बहादुर जवान बन गया था। गंगा माँ ने प्यार व गर्व से अपने बेटे का माथा चूम लिया। पति व रिश्तेदारों के दिए दुखों व तिरस्कार को भूल गई। उसकी खुशी चरम सीमा पर थी। वो जब गांव वापिस आएं तो गांव वालों ने उनको आंखों पर बैठाया व सम्मानित किया। गांव ने दीपक को ‘कुलदीपक’ कह कर बुलाया। दीपक गांव के नौजवानों के लिए आदर्श बन गया। गांव में माँ और बेटे की मिसालें दी जाने लगीं।

परमवीर चक्र का पुरस्कार लेते हुए दीपक और गंगा की यह खबर अखबार में फोटो सहित छपी। दीपक के पिता धर्मपाल ने यह खबर पढ़ी तो वह अपनी छोटी सोच और गंगा को अनपढ़ और गंवार समझने की गलती पर बहुत पछताया और अपनी करनी पर अत्यंत शर्मिंदा हुआ। जिस महिला को अनपढ़ और कमजोर समझ कर गाँव में छोड़ गया था, उस महिला ने अपने अच्छे संस्कारों व अच्छी परवरिश कर, माता-पिता दोनों के कर्तव्य को निभाते हुए दीपक को पढ़ाया-लिखाया और होनहार व काबिल बनाया। भारत माँ के लिए सर्मपण, प्रेम व आदर की भावना जगाई। तभी दीपक आज माँ गंगा के पदचिन्हों पर चल कर अपने गांव व अपनी भारत माता का नाम रोशन किया। धर्मपाल ने अपनी गलती को स्वीकार किया।

एक दिन अचानक सुबह दीपक को अपने पिता धर्मपाल का फोन आया। उसे बधाई दी और कहा कि वह गंगा व उसे मिलना चाहता है और अपनी गलती की माफी मांगना चाहता है, कहा कि उसे एहसास हो गया है कि उसने गंगा और बेटे के साथ कितना गलत किया था। गंगा ने बेटे से बस इतना कहा कि अपने पिता से कहो कि सब कुछ भूल कर अपने घर वापस आ जाए। दीपक अपनी माँ के बड़े हृदय व उच्च सोच के आगे नतमस्तक हो गया।

पिता के आने की खबर सुन कर खुशी से दीपक के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। दीपक बचपन से अपने पिता को देखने के लिए तरसता था। अब वह अपने पिता से मिल पायेगा, यह सोच उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसे याद आया कि कैसे बचपन में माँ और उसे लोगों के ताने सुनने पड़े थे। दीपक को बिना बाप के कहते और माँ को पति द्व रा छोड़ी हुई पत्नी। गंगा ने अपने पति और दीपक ने अपने पिता धर्मपाल को वापिस पा लिया। धर्मपाल अपनी पत्नी गंगा व बेटे दीपक से मिलकर बहुत खुश हुआ। अपनी गलती के लिए गंगा व दीपक से माफी मांगी व गले से लगाया। गंगा ने भी अपने पति को माफ कर दिया। गाँव वाले भी उनके परिवार-मिलन पर अत्यंत खुश हुए।

धर्मपाल अपनी पत्नी व बेटे के संग प्रसन्न मन से रहने लगा और गंगा को खेत-खलिहान में भी पूर्ण सहयोग देने लगा। परिवार की खुशी के साथ खेत-खलिहान भी लहलहाने लगे। गांव वाले भी उनकी खुशी में शामिल हो गए और खेतों से अमृतधारा बह निकली। धन्य है भारत की नारी जिसने विकट परिस्थितियों में भी अपने दृढ़ संकल्प व निष्ठा से असम्भव को सम्भव कर दिखाया। उसे कोटि-कोटि प्रणाम।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’

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