Bharat Katha Mala
Bharat Katha Mala

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

जंगल में तालाब के किनारे गंगू कछुए का घर था। वह सालों से अपने परिवार के साथ वहाँ रहता था। उनके घर में एक छोटा बच्चा था। जिसका नाम था लड्ड। गंगू अपनी जवानी की कहानी लड्डू को सुनाता था कि कैसे उसने अपने मित्र नटखट खरगोश को दौड़ में हराया था। गंगू को अपनी धीमी चाल पर नाज था। वह डींगे मारता था कि कोई भी कछुए से दौड़ लगा ले जीतेगा कछुआ ही। यही सच है। क्योंकि उनकी कहानी किताब में छपी है। उसने किताब में अपनी और खरगोश की फोटो भी दिखाई और बताया कि खरगोश को अपनी तेज चाल पर बहत घमण्ड था। इस कारण वह रास्ते में सो गया और गंगू कछुआ बिना रुके चलता रहा। यही उसकी जीत का राज़ है।

बचपन से लड्ड यही बातें सुनकर बड़ा हुआ था। इसलिए उसे यकीन हो गया कि वह कभी किसी दौड़ में हारेगा नहीं। एक बार वह कछुए की रेस में जीत भी गया और उसका विश्वास पक्का हो गया।

जंगल में सावन का मेला लगा और वहाँ अनेक खेलकूद करवाए गए। आखिरी दिन जानवरों की रेस होनी थी। लड्डू ने सबसे पहले उसमें अपना नाम लिखवाया। वह अपने आप को विजयी भी मानने लगा। रेस के लिए गिलहरी, खरगोश, गधे, मुर्गे आदि ने भी नाम लिखवाए। जब रेस हुई तो गिलहरी पहले स्थान पर, खरगोश दूसरे स्थान पर और मुर्गा तीसरे स्थान पर आए। लड कछुए का नाम कहीं नहीं था। इससे उसे गहरा सदमा लगा। वह अपनी हार बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। उसे बहुत शर्म महसूस हो रही थी। उसे लग रहा था कि अब वह किसी को मुँह दिखाने के काबिल नहीं रहा। उसने अपने दादा का नाम मिट्टी में मिला दिया। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। निराशा और उदासी ने उसे घेर लिया। रेस के बाद वह दूर नदी के किनारे चला गया और देर तक वहीं बैठा रहा।

बालमन की कहानियां
Bharat Katha Mala Book

उधर घर में उसके माँ-पापा परेशान थे और उसके दादा गंगू का भी बुरा हाल था। सभी उसे ढूँढ रहे थे। उसके दोस्तों से भी उसके बारे में पूछा पर उसका कहीं पता नहीं था। अचानक गंगू को याद आया कि एक बार वह लड्डू को लेकर नदी किनारे गया था। शायद लड्डू वहीं न चला गया हो। गंगू नदी की ओर चल पड़ा। वह जब वहाँ पहुँचा तो लड्डू को पाकर खुशी के आँसू रोने लगा। उसने लड्ड के सर पर हाथ फेरा। लड्डू ने सवाल किया”आप तो कहते थे कि हम कभी नहीं हार सकते फिर मैं क्यों हार गया?”

इतना कहकर लड्ड ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। वह अपने दादा से लिपट कर बार-बार कह रहा था- “मैं हार गया। मैंने आपका नाम मिट्टी में मिला दिया।”

गंगू बोला- “ग़लती मेरी है। मैंने हमेशा तुम्हें जीतने को कहा। पर हर खेल में कभी हार होती है और कभी जीत। हमें इसे स्वीकार करना चाहिए। मायूस होकर घर से दूर नहीं आना चाहिए। एक बार हार गए तो दूसरी बार जीत सकते हैं। दो बार जीत गए तो अगली बार हार सकते हैं। जीवन में हार-जीत तो लगी रहती है। हमें घबराना नहीं चाहिए बल्कि हर स्थिति का डटकर सामना करना चाहिए।”

दादा जी की बात सुनकर लड्डु का मन शांत हो गया। कुछ देर वहाँ बैठ कर वे बातें करते रहे।

गंगू ने लड्डू से कहा- “घर में सब तुम्हारे लिए परेशान है। चलो! अब घर चले!

लड्डू मुस्कुराता हुआ दादा जी के साथ घर की ओर चल पड़ा।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’

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