भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
खरगोश के साथ दौड़ की प्रतियोगिता में जीतने के बाद कछुआ घमण्ड से सिर उठाकर चलता। दूसरी ओर खरगोश, जो कि बहुत तेज दौड़ने वाला जानवर होकर भी कछुए से हार गया। अगर वह नहीं सोता तो कछुए की क्या बिसात, जो जीत जाता। आज तक वह बीच में सो जाने के कारण पछताता है। अपनी इस लापरवाही के कारण वह शरम से मुँह छिपाता फिर रहा था। उसे कछुए से नफरत थी क्योंकि कछुए को जब भी मौका मिलता, वह खरगोश का मजाक उड़ाता था। अकसर दोनों की नफरत झगड़े का रूप ले लेती थी और दोनों को शांत करने के लिए उनके साथियों को आना पड़ता था।
दोनों के रोज-रोज के झगड़े से परेशान उनके साथी खरगोश और कछुओं ने उनके बीच दोस्ती करने के लिए योजना बनाई। अगले दिन सुबह-सुबह खरगोश हरी-हरी घास में लेटा हल्की धप का आनंद ले रहा था। उसी समय कछुआ धीरे-धीरे रेंगता हुआ वहाँ आया और खरगोश को छेड़ते हुए बोला ओ आलसी! अब तो उठ कर कुछ काम कर ले। जब देखो, तब सोता रहता है। कछुए की बात सुनकर खरगोश चिढ़ गया। वह गुस्से से बोला- ओ रेंगने वाले जीव! बहुत घमंड है तुझे अपनी जीत पर। तू भी जानता है कि अगर उस दिन मैं नहीं सोता तो तू कभी नहीं जीत पाता। “तू जीत जाता पर जीता तो नहीं न। विजेता तो मैं बना,” कछुए ने शान से जबाव दिया।
बस फिर क्या था? दोनों की बहस फिर लड़ाई में बदल गई। दोनों एक-दूसरे को मरने-मारने पर उतारू हो गए। दोनों को लड़ते देख उनके साथी वहाँ आए और समझा-बुझाकर उनको शांत किया। साथियों में से एक ने कहा- तुम लोग कब तक पुरानी बात लेकर झगड़ते रहोगे? क्यों न एक बार फिर से दौड़ की प्रतियोगिता की जाए? यह सुनकर खरगोश बहुत खुश हुआ और वह तैयार हो गया। कछुआ भी जीत के घमण्ड में तैयार हो गया। दोनों को दौड़-प्रतियोगिता के लिए तैयार देखकर उनके साथी खुश हुए और कहा कि प्रतियोगिता का रास्ता वे लोग तय करेंगे। वे दौड़ के आरम्भ और अंत वाले स्थान पर रहेंगे। उनके साथी बीच-बीच में रहेंगे। इस बात पर दोनों सहमत हो गए। अगले दिन की दौड़ की प्रतियोगिता की तैयारी के लिए सब अपने-अपने घर चले गए।
अगले दिन सबमें बहुत उत्साह था। रंग-बिरंगी झंडियों से रास्ते को सजाया गया था। कछुए और खरगोश के साथी तालियाँ बजाकर अपने-अपने साथियों का उत्साह बढ़ा रहे थे। एक साथी ने सीटी बजाई और दौड़ शुरू हो गई। खरगोश इस बार किसी भी कीमत पर दौड़ नहीं हारना चाहता था। दूसरी ओर कछुए को पूरा विश्वास था कि खरगोश हमेशा की तरह कोई न कोई गलती अवश्य करेगा और वह उसका फायदा उठा लेगा। वह लगातार दौड़ रहा था जबकि खरगोश छलाँग लगाते हुए दौड़ रहा था। वह बहुत आगे निकल गया था। थोड़ी दूर दौड़ने के बाद उसे रास्ते में एक तालाब दिखाई दिया। जब वह वहाँ पहुँचा तो देखा कि खरगोश झील के किनारे खड़ा है और बहुत चिंतित है। कछुए को देखकर बोला- मैं दौड़ कैसे पूरी करूँगा? दौड़ के रास्ते में झील, ये कहाँ का न्याय है? अभी तो हमारा आधा रास्ता भी पार नहीं हआ है। न जाने आगे का रास्ता कैसा होगा?
कछुए को खरगोश की बात सही लगी। उसने कहा- खरगोश, मैं पानी में तैर सकता हूँ, पर मेरी एक शर्त है। “कैसी शर्त?” खरगोश के पूछने पर कछुए ने कहा- इस समय मैं तुम्हारी मदद करूँगा पर आगे अगर मुझे जरूरत पड़ेगी तो तुम मेरी सहायता करोगे। खरगोश क्या करता? उसने शर्त मान ली। तब कछुए ने उसे अपनी पीठ पर बिठा लिया और तैरकर झील पार कर ली। झील के किनारे पहुँचने के बाद खरगोश कछुए की पीठ से उतरा और उसने कछुए को धन्यवाद दिया।
दोनों फिर दौड़ने लगे। वे कुछ दूर ही दौड़े होंगे कि उन्हें एक छोटा-सा टीला दिखाई दिया। उसे देखकर कछुए ने कहा- हाय! अब मैं इसे कैसे पार करूँगा? खरगोश तो छलाँग लगा कर इस टीले को आसानी से पार कर जाएगा और मैं तो इस पर चढ़ भी नहीं पा रहा हूँ। कछुए को चढ़ने की कोशिश करते देखकर खरगोश ने कहा- कछुए, तुम चिंता मत करो। शर्त के अनुसार मदद करने की अब मेरी बारी है। तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ। मैं कुछ ही छलाँग में टीला पार कर लूँगा, उसके बाद दौड़ शुरू करेंगे। कछुआ खुशी-खुशी खरगोश की पीठ पर चढ़ गया। जैसे ही दोनों ने टीला पार किया, उनके साथी खड़े होकर तालियाँ बजा रहे थे क्योंकि दोनों एक साथ मंजिल पर पहुँच गए थे। दोनों बहुत खुश थे। उनकी समझ में आ गया कि अगर वे एक-दूसरे की सहायता नहीं करते तो मंजिल तक नहीं पहुँच पाते। उन्होंने दौड़ की प्रतियोगिता करने के लिए अपने साथियों को धन्यवाद दिया। पुरानी बातों को भूलकर अब वे अच्छे दोस्त बन गए।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
