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Hindi Social Story: ऑफिस के हॉल में पार्टी चल रही थी, तम्बाकू के कसैले धुंए और अल्कोहल की मिली जुली दम घोट देने वाली महक से भरा हुआ था विवेक जो कि ऑफिस में है मैनेजर था और बहुत महत्वाकांक्षी था बहुत बड़ा आदमी बनने में रात दिन मेहनत करता था और जल्दी से छलांग मार के बॉस से प्रमोशन चाहता था पैसे का भूत चढ़ गया था उसपर , अभी अभी विवेक की नई नई शादी हुई जो कि बिना मन के गांव में अकेली मां रहती थी जिसने बेटे को बड़ी कठिनता से  पाला था।
मां का सम्मान मान कर मां के ही रिश्तेदार की लड़की से शादी कर दी गई थी आज विवेक पत्नी को लेकर ऑफिस पार्टी में लोगों के साथ मिलाने के लिए ले गया था , विवेक का बॉस विवेक की पत्नी सिमरन को देखकर पागल हो गया बार बार सिमरन के पास ही आने का बहाना बनाने लगा।
एक बार तो हद करके सिमरन का हाथ पकड़ लिया इससे सिमरन ने किसी तरह तबीयत का बहाना करके विवेक को घर लेकर आ गई ,बाद में दूसरे दिन बॉस के बदले व्यवहार से विवेक को परेशानी हो रही थी क्योंकि विवेक जल्दी से अपना प्रमोशन चाहता था बॉस के बताने पर अब सिमरन पर आग बबूला हो गया।
रात के बारह बजने जा रहे थे, सिमरन टेबल पर सर टिकाये विवेक की प्रतीक्षा कर रही थी, तभी दरवाजे पर कुछ आवाज़ सी हुई। तभी विवेक ने अपनी चाबी से दरवाजा खोलकर प्रवेश किया और टेबल पर बैठी सिमरन को देखकर बोला “ओह माई गॉड. तुम अबतक जाग रही हो, तुम से कितनी बार कहा है कि मेरे काम का कोई भरोसा नहीं है तुम खाना खाकर सो जाया करो मगर तुम्हे समझ में ही नहीं आता है कितने लोगों से मिलना पड़ता है फिर मीटिंग कॉफी देर हो जाती है तुम टीवी की बेचारी बहू की तरह बैठी हो कुछ बदलो खुद को”.
” सब कुछ मुझे ही बदलना है विवेक जी एक महीने हो गया हमारी शादी को अगर मैं चार कदम चलूँ तो दो कदम आपको भी चलना चाहिए ना, अपनी भूखी बैठी पत्नी को एक फोन भी नहीं किए आप…..”.तुम्हे नहीं पता था कि तुम शादी करके दिल्ली जैसे भागते शहर में जा रही हो. अगर  यहां के हिसाब से खुद को ढाल नहीं सकती थीं तो ना करने की चॉयस थी तुम्हारे पास” यहां के हिसाब से खुद को ढालों यहां देर रात तक काम करना पार्टी स्त्री पुरुष साथ रहना सब आम बात है।
विवेक बेडरूम के दरवाजे तक गया. अपना कोट उतारकर बैड पर उछाल दिया. मुड़कर दोबारा टेबल पर पहुंचा और एक कुर्सी खींचकर उसपर बैठ गया उसने जग से ग्लास में एक घूँट पानी हलक में उतरा, कुर्सी से पीठ लगाई और आँखे बंद कर लीं. कुछ क्षण बाद ऑंखें खोलीं और एक एक शब्द पर जोर देकर बोला “आज मैं तुम से साफ़ साफ़ बात करना चाहता हूँ सिमरन हमारी शादी को एक महीना हो गया अगर तुम बदलोगी नहीं तो अलग हो सकती हो।
“फिर तुम एडजेस्ट करने का प्रयास क्यों न करती हो सिमरन,
“मैंने प्रयास तो किया है मगर … ”
” कहाँ प्रयास किया है तुम ने सिमरन. उस दिन पार्टी में तुमने मेरे बॉस समीर का अपमान किया. वो शिकायत कर रहा थे”.


“क्या तुम्हारी पार्टी में किसी का सम्मान करने का मतलब ये होता है कि मैं चाहे अनचाहे किसी गैर मर्द के शरीर से चिपकना और वो अपनी मनमानी करे”.
“ओफ्फो … बॉस ऐसे नहीं है बाल बच्चेदार शरीफ इंसान है मैं उन्हें दो साल से जनता हूँ। बड़ी मुश्किल से मैंने उनकी नारजगी दूर करने के लिए कल  डिनर पर बुलाया है, तुम खुद देखोगी कि समीर शरीफ है”.
दिन ढल रहा था और धीरे धीरे अँधेरा हो रहा था पति विवेक मेहमान के साथ आने वाले थे कि तभी डोरबैल बज उठी सिमरन ने दरवाजा खोला मिस्टर समीर खड़े हुए थे।
“हैल्लो भाभी, एक्चुली विवेक शायद कहीं जाम में फंस गया है वैसे भी हमलोगों का आठ बजे मिलने का समय तय हुआ था मगर …… वो मैं किसी काम से इस तरफ ही आया हुआ था तो सोचा … मैं चलता हूं तब तक घर विवेक के,
“जी जरूर मैं आप के लिए पानी लाती हूँ”. सिमरन ने हाथ जोड़कर अभिवादन किया और किचन में पानी लेने चली गई थोड़ी देर में वो पानी लेकर आई और समीर के सामने रख दिया फिर अत्यंत विनम्र भाव से कहा ” क्षमा सर, अगर मेरी किसी बात से आप उस दिन पार्टी में बुरा हुए हों तो दरअसल मैं आप को जानती भी तो नहीं थी “…. भाभी, मैं……. मैं तो एक सरल आदमी हूँ  
भाभी आप बहुत खूबसूरत हैं नजर नहीं हटती आपसे,,,
“मैं आप के लिए चाय बनाकर लाती हूँ “सर”. सिमरन ने वहां से हटने की नियत से कहा”
“चाय … चाय तो मैं पीता ही नहीं और शाम ढलने के बाद तो अगर कुछ पिलाना ही है तो इन होठों का ……..” और समीर ने सिमरन का हाथ पकड़ लिया तभी सिमरन का झन्नाटेदार थप्पड़ समीर के मुँह पर मारा कि टेबल पर रखी हुई ट्रे और फूलदान टूटकर बिखर गए, समीर की ऑंखें क्रोध से अंगारे बरसाने लगीं  “अरे नाराज क्यों होती हो  भाभी हो जान इतना तो हक़ हमारा भी बनता है” और उसने एक बार फिर सिमरन के कंधे की और हाथ बढ़ाया सिमरन ने उसे जोर का धक्का दिया  समीर लड़खड़ाया, पलटा और किसी चोटिल सांप की तरह क्रोध और अपमान से जलता हुआ वहां से चला गया।
ठीक आठ बजे विवेक ने रोज की तरह अपनी चाबी से दरवाजा खोलकर अंदर आया तो रूम का दृश्य देखकर स्तब्ध रह गया, फर्श पर फूलदान टूटा पड़ा था, ग्लास के टुकड़े बिखरे हुए थे और सिमरन का रो रोकर बुरा हाल हो गया था ऑंखें और बिखरे हुए बाल लिए सोफे पर बैठी थी.
“हुआ क्या है सिमरन क्या हुआ है बॉस को फोन किया था तो बहुत देर में फोन उठाए और गंदी सी गली देकर गुस्से में फोन काट दिया हुआ क्या है”.
“मुझे उनको घर से निकालना पड़ा”.
“क्या ……  घर से निकाल दिया, क्यों निकाल दिया आखिर तुम समझती क्या हो अपने आप को तुम्हे इतना भी तमीज नहीं हैं कि मेहमान का स्वागत कैसे किया जाता हैं. यही संस्कार दिए हैं तुम्हारे घर वालों ने कोई आसमान से उतरी हुई परी हो , जो दुनिया तुम्हारे ही पीछे हाथ धोकर पड़ी है  दो साल से जानता हूं उनको हम लोग एक बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे और तुमने बड़े आराम से कह दिया कि मैंने उन्हें निकाल दिया तुम पनौती हो मेरे जीवन की अभिशाप हो मेरे लिए  सबसे बड़ी बाधा हो मेरे कैरियर की , ये घर तुम्हारे बाप ने मुझे दहेज़ में नहीं दिया था कि तुम किसी को भी कान पकड़कर बाहर निकाल दो, तुम गंवार हो विवेक ने चिल्लाकर कहा पता नहीं अपने आप को उर्वशी या रम्भा सझती है। कुछ देर एकदम सन्नाटा सा छाया रहा था फिर सिमरन धीरे से रूद्र स्वर में बोली.
“बहुत अहसान किया तुम ने गवार से शादी की तो, तृप्त हो गई। अग्नि के सामने दोनों के फेरे हुए एक दूसरे के प्रति निष्ठावान, समर्पित और निश्छल रहने का वचन ले रखा था”…..  “तभी कह देना था कि तुम मुझे ‘वैश्या’ बनाने के लिए शहर ले जा रहे हो। बेवफाई करके ये शरीर किसी गैर पुरुष को सौंपना हैं तो मैं इस नश्वर देह को समाप्त करना पसंद करूंगी,
“अपशगुन हूँ न तुम्हारे जीवन का, बाधा हूँ तुम्हारे कैरियर की.. आज ही दूर चली जाउंगी तुम्हारी दुनिया से बस तुमसे अंतिम प्रार्थना हैं कि मुझे रेलवे स्टेशन तक छोड़ आओ एक बात और जान लीजिए
“वो आपके बॉस…… कामुक दरिंदा हैं. मुझे बाँहों में लेकर चूमने को अपना नैतिक अधिकार बता रहा थे वो आपके प्रमोशन बदले मेरे शरीर से खेलना चाहता थे” और वो रोने लगी. विवेक ने अपना हाथ सिमरन के हाथ पर रखा और नम्र भाव से कहा “चलो सिमरन, उस विश्वासघाती दानव के खिलाफ पुलिस में ऍफ़.आई.आर. कराते हैं।वो मेरा भगवान नहीं हैं, कोई किसी का भाग्यविधाता नहीं होता तुम मेरी भाग्यलक्ष्मी  हो। और  दोनों प्रेम पाश में बंध गए ।