Motivational Story Hindi: पंजाब के गांव में मनजीत अपने मां बाप के साथ रहता था। कुछ ही दूरी पर सिमरन का घर था जो अपने दादा-दादी के साथ रहती थी। दोनों जब कभी सड़क पर एक-दूसरे के पास से निकलते तो अंजान होते हुए भी एक अपनेपन का एहसास होता था। दोनों के कॉलेज भी पास थे। कब और कैसे दोनों अनजाने बिना कुछ कहे एक दूसरे से जुड़ने लग गए थे।
एक दिन अचानक से उनके गांव में दूसरे पास के गांव ने कब्ज़ा करने के लिए हमला कर दिया। सब लोग घर में छुप कर बैठ गए। जो बाहर थे वह कहीं ना कहीं छुप गए या मारे गए। खतरा बढ़ता महसूस कर परिवार की सुरक्षा को समझते हुए लोगों ने गांव से पलायन करने का फ़ैसला करा।
सारे गांव के आदमी चुपचाप सरपंच के घर इकट्ठा हुए। एक छोटे से दिए की रोशनी में उन लोगों ने गोष्ठी करी। शंकर बोला, “हम सबके पास कोई ना कोई वाहन हैं। एक काम करेंगे, आधी रात को जब वह सब सो रहे होंगे तो पीछे के जंगल के रास्ते से निकल जाएंगे।”
आधी रात सब लोग सरपंच के घर इकट्ठा होते हैं। वहां से जंगल तक पैदल जाते हैं ताकि कोई शोर ना हो। सारे वाहन मौका देखकर गांव वालों ने पहले ही जंगल में छुपा दिए थे। सब चुपचाप धीरे-धीरे जंगल की तरफ़ जाने लगे। इस भीड़ को चीरते हुए थोड़ी दूर पर मनजीत और सिमरन की नजरें मिल रही थीं। दोनों की आंखों में एक दूसरे के लिए जितना अपनापन झलक रहा था उतना ही दूर हो जाने का डर भी था। उनका डर थोड़ी देर बाद सच साबित होने वाला था…..
दोनों मन में सोच चुके थे कि वह एक ही वाहन में बैठेंगे ताकि थोड़ा और साथ मिल जाए या हो सकता है कि दोनों के परिवार आसपास ही ठिकाना ढूंढें। जंगल के बीच में पहुंचते ही दोनों के माता-पिता को जो वाहन दिखा वह उसमें चढ़ गए। मनजीत को जगह एक बस में मिली तो सिमरन दूसरी बस में थी। दोनों लाचारी से एक दूसरे को देख रहे थे। धीरे-धीरे बस चलने लगी… विरह का डर और दर्द अभी और भी बढ़ना था……
बसें साथ-साथ चल रही थीं कि अचानक से तेज़ बारिश शुरू हो गई। इससे पहले कि वो दोनों कुछ समझ पाते, दोनों बसें अलग-अलग दिशा में आगे बढ़ चुकी थीं। समझ में आते ही मनजीत ने खिड़की से झांक कर देखा तो सिमरन का धुंधला सा चेहरा नज़र आया। तेज़ बारिश की बूंदों ने उन दोनों की आंखों के आगे एक झीना सा पर्दा खड़ा कर दिया था। वह पर्दा बारिश के पानी के साथ उनकी आंखों के पानी का भी था। धुंधलापन बढ़ता जाता है और धीरे-धीरे दोनों एक दूसरे की आंखों से ओझल हो जाते हैं।
थके हुए शरीर और मन से मनजीत और सिमरन अलग शहरों में पहुंचते हैं। दोनों ही नहीं जानते थे कि कौन कहां है। नया शहर और नए घर में अपने मां-बाप के साथ मनजीत घर और कारोबार जमाने में लग गया। उधर सिमरन को दादा दादी के साथ घर और नौकरी दोनों देखनी थीं। यूं तो दोनों ही कुछ वक्त के बाद एक आम सी ज़िंदगी में ढल गए थे पर मन के किसी कोने में विरह की टीस उठ जाती थी।
मनजीत बहुत मेहनती और समझदार था। उसने नए शहर में लोगों के साथ अच्छे ताल्लुकात बनाए। एक सर्राफ़ की दुकान पर दिन रात मेहनत करके उसने काम सीखा। जब उसे काम की पूरी समझ हो गई तो उसने अपने सेठ से कहा, “ सेठ जी मैं अपने घर के पास ही अपनी एक ज़ेवरों की दुकान खोलना चाहता हूं। मां-बाप की उम्र बढ़ती जा रही है जिसकी वजह से अक्सर बीमार रहते हैं। आपकी दुकान दूर पड़ती है। आपके यहां काम करके बहुत कुछ सीखा और कुछ पैसे भी जोड़े हैं।” सेठ ने कहा, “ अच्छी बात है बेटा! लेकिन अगर यही वजह है तो तुम विवाह क्यों नहीं कर लेते। उम्र भी काफ़ी हो गई है तुम्हारी।” सेठ की बातें सुनकर मनजीत के सामने सिमरन का चेहरा और उसकी दर्द से भरी आंखें आ गईं। उसने दबी आवाज़ में कहा, “जी बस कर लूंगा।” सेठ के पैर छूकर वो वहां से चला जाता है। घर के पास दुकान खरीद कर अपना कारोबार बढ़ाने लग जाता है।
उधर सिमरन के दादाजी बीमारी के चलते चल बसे थे। घर में बूढ़ी दादी का, घर का और नौकरी का अकेले ध्यान रखती। सिमरन को और कुछ क्या अपनी ही सुध नहीं थी। दादी अक्सर उसको ज़ोर देकर कहतीं, “बात मान ले सिम्मी। शादी कर ले, मेरे बाद बिल्कुल अकेली हो जाएगी। तेरी शादी होगी तो मैं भी चैन से मर सकूंगी।” सिमरन तब दरवाज़े की तरफ देखती और महसूस करती की वही 19 साल का मनजीत उसको लेने आ रहा है। दादी से बिना कुछ कहे और बात टालने के लिए वह घर से निकल जाती।
एक दिन अचानक से मनजीत का पुराना गांव का दोस्त अजीत मिलने आता है। दोनों दोस्त गले मिलते हैं। उस रात देर तक मनजीत और अजीत ने यादों का पूरा पुलिंदा जैसे खोल दिया था। बचपन से लेकर गांव छोड़ने और खुद को नए सांचे में ढालने तक की हर बात एक दूसरे के साथ बांटी। तभी अजीत मनजीत से पूछता है, “सिमरन कहां है, पता चला?” मनजीत उदास होकर, “ नहीं यार! एक तो यह नहीं पता कि उस रात उनकी बस किस तरफ़ गई थी और फ़िर हालातों में ऐसा उलझता गया कि वक्त ही नहीं मिला।” अजीत बोला, “ मैं समझता हूं यार। हम सब एक ही कश्ती के सवार हैं। अब थोड़ा आराम करते हैं। कल मुझे पास के गांव में एक काम से जाना है, फ़िर शाम को मिलेंगे।”
अगली सुबह अजीत जल्दी अपने काम पर चला जाता है। दोपहर हुई थी कि अजीत उत्साहित सा मनजीत के पास आता है। मनजीत, “अरे तू! इतनी जल्दी, क्या हुआ?” अजीत बोला, “मैं पास के गांव में जिनके घर गया था वो सिमरन और उसकी दादी का घर है। मेरा प्रॉपर्टी का काम है ना उसी सिलसिले में गया था। वह लोग घर बेचकर कहीं दूसरे शहर जा रहे हैं दादी के इलाज के लिए। हमारे गांव के शंकर चाचा ने घर की सारी बातें करीं। वह भी पास में रहते हैं। सिमरन तो घर में नहीं थी लेकिन घर में गांव की पुरानी तस्वीर दीवार पर लगी थी।”
मनजीत उसी वक्त उसके साथ सिमरन के घर जाने की तैयारी करता है। दुकान बढ़ा ही रहा था कि तभी घर से नौकर आकर खबर देता है कि उसकी मां की हालत बहुत खराब हो गई है। मनजीत पहले अपने घर जाता है। दोनों दोस्त मिलकर मां को अस्पताल लेकर जाते हैं। उस हालत में दोनों को सिमरन का ध्यान ही नहीं आता। दो दिन बाद अजीत कहता है, “ मैं जाकर सिमरन को तेरे बारे में खबर देता हूं। शायद अभी निकले ना हों। काश सिमरन को तभी तेरे बारे में सब बता दिया होता।”
अजीत सिमरन के घर पहुंचता है तो वह लोग चंडीगढ़ के लिए निकल चुके थे। वह वापस आकर मनजीत को सारी खबर देता है। मनजीत चुपचाप सब सुनता है और अपनी मां के पास वाले बेड पर लेट जाता है। मां की तबीयत का ध्यान और काम में वह खुद को व्यस्त रखने लगता है। कुछ वक्त बाद उसकी मां गुज़र जाती है।
एक दिन फ़िर उम्मीद की एक लहर आती है….
अजीत उसके घर पर मिलने आता है, “ सिमरन का पता चल गया है। मनजीत, “क्या! कैसे?”
अजीत, “मेरा रिश्तेदार चंडीगढ़ में है। वह बीमार था तो उसको देखने मैं अस्पताल गया। मैं उसके कमरे में बैठा ही था कि सिमरन सामने से डॉक्टर के कमरे से बाहर आती दिखी। हो सकता है अपनी दादी के लिए आई हो। मैं कमरे के बाहर तेज़ी से भागा। वो फ़्लोर के दूसरी तरफ़ लिफ्ट के पास थी। इससे पहले कि मैं आवाज़ लगाता, वह लिफ्ट में चली गई। मैं सीढ़ियों से नीचे भागा पर मेरे पहुंचने से पहले ही वह कार में बैठकर चली गई थी। मैंने डॉक्टर की असिस्टेंट से बहुत रिक्वेस्ट करी तब उसने बताया कि सिमरन की दादी तो गुज़र गई थीं। लेकिन वह अक्सर वहां डॉक्टर के पास आती है। किसी तरह डॉक्टर सिंह का फ़ोन और एड्रेस निकाल पाया हूं। तू अभी जा भाई। डॉक्टर सिंह उसके बारे में ज़रुर जानते होंगें।”
मनजीत अजीत के साथ डॉक्टर सिंह के घर पहुंचता है। वहां का नज़ारा देखकर उसकी आंखों में से आखरी उम्मीद भी खत्म हो जाती है। सिमरन की गोदी में एक नवजात बच्चा था। कुर्सी पर डॉक्टर सिंह बैठे थे और वह किसी बात पर हंस रहे थे।
“सिमरन का एक खुशहाल परिवार हो गया है। अब उसके जीवन में मेरी कोई जगह नहीं है।” यह सोचते सोचते मनजीत वहां से चलने लग जाता है।
घर के अंदर से एक औरत गार्डन में आती है। सिमरन बोलती है, “ मैडम यह लीजिए आप बेबी को संभालिए, मैं आपके और सर के लिए चाय बना लाती हूं।”
तभी उसे लगता है कि कोई दीवार के पीछे था। वह दरवाज़े से झांकती है तो उसे दूर जाते हुए दो आदमी नज़र आते हैं। “मेरा वहम होगा” यह सोचते हुए वह घर के अंदर चाय बनाने चली जाती है।
उनके जीवन में पास होते हुए भी न जाने और कितनी विरह की पीड़ा सहन करनी लिखी थी…….
