Hindi Love Story: बाड़मेर के पास एक छोटा-सा गांव था – बालोतरा। वहां की कच्ची गलियों में धूल से सने पांव लिए दौड़ते दो बच्चे, सूरज और गौरी। दोनों की मांओं की गहरी सखियों जैसी दोस्ती थी, तो इनके दिन भी साथ ही बीतते। कभी खेतों में बकरियां चराते, कभी पीळू के पेड़ के नीचे बैठकर गोबर से खिलौने बनाते।
गौरी जितनी चंचल, सूरज उतना ही गम्भीर। गौरी मिट्टी से घरौंदे बनाती और सूरज उन्हें बचाने के लिए काँटों की बाड़ लगा देता। दोनों की हँसी हवाओं में घुली रहती। गाँव में सब कहते – “ए री! ई दोनो तो राम-सीता जूजो लागे!”
समय बीता, खेल-कूद के दिन बीत गए। सूरज पढ़ाई के लिए जोधपुर चला गया और गौरी घर सँभालने लगी। लेकिन जब भी गाँव में पीळू के फूल खिलते, गौरी को याद आ जाता – “सूरज तो कहतो, जद पीळू आओगो, मैं भी आऊँगो।”
बरसों बाद सूरज गाँव लौटा। लम्बा-चौड़ा कद, आँखों में वही अपनापन। गौरी उससे मिली, पर अजनबी-सी झिझक के साथ। सूरज ने हँसकर कहा, “गौरी, पीळू फेर सूं फूल आ गया! हुवे म्हे फेर सूं आगे!”
गौरी की आँखों में नमी उतर आई। उसे समझ नहीं आया, कब यह दोस्ती एक मीठे अहसास में बदल गई। सूरज की नजरों में वही बचपन की बाती सच्चाई थी। “गौरी, बचपन में घरौंदा बनावतो, सोची नहीं थी के, असल घर भी बनावणा पड़ी?”
गौरी लजा गई। उसके हाथों की चूड़ियां खनक उठीं। “हुकम, बचपन में तो ई सोचो था के बस सँग खेलां, अब सँग जिंदगानी भी काटां क्या?”
सूरज मुस्कुरा दिया। गांव की मिट्टी में पली प्रीत, वक्त के साथ और भी पक्की हो गई थी। पीळू के फूलों की खुशबू अब दोनों के घर की चौखट पर बसी रहने वाली थी।
