सभी लोगो अपने घरों में बैठे बाते कर रहे थे बेचारा हरिया ,अब तो उसके खाने के भी लाले पड़ जायँगे, पहले तो दोनों पति पत्नी मिलकर मजदूरी कर के घर चला लेते थे अब तो अकेला ही मजदूरी भी करेगा एयर बच्चो को भी संभालना पड़ेगा, कोई बात कर रहा था अब तो बच्चो का क्या होगा को देखेगा उनको,बस इन्ही सब बातों में रात गुजर गई,और सुबह होते होते तो हरिया के घर पे लोगो का जमघट लगना शुरू हो गया,चल हरिया उठ अंतिम संस्कार की तैयारी कर यो बैठ कर रोने से कुछ न होगा वो तो चली गई अब जो रीति रिवाज हैं वो तो निभाने ही पड़ी, जल्दी जल्दी सामान ला ओर सब कुछ जल्दी से निपटा दे, गावँ के बिरजू काका ने कहा, है भाई और लोगो ने भी हा में हा मिलाई, जल्दी जा ओर अंदर से पैसे ला कर दे तकि हम लोग सामान ले आये और उधर से आते में पंडित जी को भी कहते  आएंगे हवन पूजन भी तो करवाना होगा और उनको पंडितो को भोजन वगरह भी करवाना होता है अब तो 11 दिन तक काम ही काम है यू हाथ पे हाथ धरने से कुछ न होगा।

हरिया सब की सुने जा रहा था पर किस से कहे कि उसे जितना दुख अपनी पत्नी के जाने का है उससे कही ज्यादा दुख इस बात का है कि ये 11-12 दिन के क्रम कांड करने के लिए उसके पास पैसे नही है उसके पास तो अपने बच्चो को खिलाने के भी पैसे नही है वो ये सब कहा से करेगा। जो कुछ था वो सब दुलारी उसकी पत्नी की बीमारी में खर्च हो गया।

सब लोग बोले जा रहे हैं तभी उसके पड़ोस वाली चुकी काकी ने कहा अरे पैसे नही है तो अपनी पत्नी के कान के कुंडल बेच के पैसे ले पर पर ई सब तो करना ही पड़े इससे बिना मरने वाले कि आत्मा शांत न होई,

वो उठकर अंदर जाता है और  अपनी पत्नी के कुंडल उतारने लगता है इतने में उसके बच्चे बोल पड़ते हैं बाबा बहुत भूख लगी है दो दिन से कुछ नही खाया, वो अपने बच्चो की तरफ देखता है और सोचता है कि अगर ये कुंडल बेच के सारे पैसे क्रिया क्रम में खर्च कर दिए तो बच्चो को क्या खिलाऊँगा,तभी उसे अपनी पत्नी की बात याद आती है कि  उसने कहा था कि यदि उसे कुछ हो जाये तो वो समाज के झूठे देख दिखावे के लिए पैसा खर्च नही करेगा और जैसा एक बार उसने डॉक्टर साहब को कहते सुना था कि अगर कोई अपनी मर्जी सर किसी की देह दान करता है तो उसके बदले उसको पैसा मिलता है और किसी जरूरतमंद की मदद हो जाती हैं वो तो पैसे के अभाव में अपनी पत्नी का इलाज नही करा सका, पर अब अपने बच्चो को जीते जी इस समाज की झूठी रीति रिवाज़ों की बली नही चढ़ा सकता, वो दुलारी की देह को डॉक्टर साहब को दान कर देगा, इससे मुझे पैसे भी मिल जायेगे ओर किसी का जीवन भी बच जायेगा, ओर फिर दुलारी की भी यही इच्छा थी,वो दुलारी की तरफ देखता है उसे लगता है मानो दुलारी भी उसकी बात  से सहमत हैं।वो उसका माथा चूमता है और उसको प्रणाम करता है और बाहर जाकर हाथ जोड़कर कहता है आप सभी लोग यहाँ मेरे दुख में सम्म्लित होने आए आप लोगो का बहुत बहुत शुक्रिया, किन्तु में ये रीति रिवाज पूर्ण करने में असमर्थ हु आप लोग अपने अपने घर चले जाये ओर मुझे मेरे हाल पे छोड़ दे।

गावँ वाले तरह तरह की बाते करने लगे,पागल हो गया लगता है, ऐसा भी कभी होता है, चाहे जो भी हो खुद को गिरवी रखकर भी लोग ये 12 दिन तो करते ही है आखिर में तो पत्नी थी इतना भी नही कर सकता, कैसा मर्द है चलो भी हमे क्या !

लोग तरह तरह की बाते करते हुए चले जाते हैं इतने में डॉक्टर बाबू को भी उसकी पत्नी की मौत के बारे में पता चल जाता है वो भी वहाँ पहुच जाते हैं, हरिया उनको देख कर रोने लगता है और कहता है मुझे इसकी देह के बदले कितना पैसा मिल सकता है?

डॉक्टर साहब सब समझ जाते हैं और ओर उसको उसकी पत्नी की देह के साथ शहर के अस्पताल ले जाते हैं जहाँ उसकी पत्नी की देह अस्पताल में दे दी जाती है और उसके आवश्यक अंग निकाल कर उसको पैसे दे दिए जाते हैं ।उन पैसे से वो उसका अंतिम संस्कार कर ,खाना लेकर अपने बच्चो के पास जाता है।

ओर उनको गले लगा कर कहता है ,” बच्चों खाना खा लो। तुम्हारी माँ ने भेजा है।”

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