परिवर्तन—गृहलक्ष्मी की कहानियां: Life Changing story
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Life Changing Story: तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हॉल गूंज रहा था l वजह थी कॉलेज के सेमिनार हॉल में स्टेट लेवल पर 12वीं की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थी को पुरस्कृत करने का………………..।

और भी विभिन्न संकाय के बच्चे उपस्थित थे।जिनको अपने अपने विषय में पुरस्कार प्राप्त हुआ था उनके माता-पिता भी थे। सिर्फ शिवांशी ही ऐसी थी जिस के माता और पिता दोनों हम ही थे उसके दादू। शिवांशी को आज पुरस्कार लेते देख दादू की आंखों से आंसू छलक पड़े। 1 मिनट के लिए वह अपने अतीत के पन्नों को पलटने लगे। शिवांशी अपने माता-पिता की इकलौती बेटी थी। बहुत प्रयास के बावजूद भी अंबिका और अनंत का दूसरा बाबू नहीं हो पाया था। इसलिए शिवांशी उसकी कमजोरी बन गई थी। वह जो कहती सही बात  तो भी, और गलत भी कहती तो भी, सारा कुछ अनंत उसका पूरा करते रहता था । जिस वजह से वह  बिल्कुल बिगड़ैल स्वभाव की दिनोंदिन होती जा रही थी। उसका पढ़ाई में तो बिल्कुल ही मन नहीं लगता था ।मुझे इसकी चिंता हमेशा होती थी कुछ पढ़ लिख ले तो एक अपनी अलग पहचान बनाएगी । आजकल लड़का क्या लड़की क्या दोनों पढ़ते हैं ।दोनों बड़ी-बड़ी ऊंचाइयों पर पहुंचकर अपना परचम लहरा रहे हैं ।

कुछ बन जाती तो मुझे भी बहुत खुशी होती इसी वजह से मैं उसे एकांत में समझाता लेकिन वह नहीं समझती। क्योंकि मां पापा का समर्थन जो था उसको। एक नंबर की मुंह फट होते जा रही थी दिनों दिन………………।

समय का चक्र सबसे बड़ा होता है और कब किसके व्यवहार में कैसे परिवर्तन ला दे ।कैसे किसी को इतना बदल दे सब ऊपर वाले की कृपा है। लेकिन शिवांशी को बदलने का जो तरीका था ईश्वर का वह बड़ा ही दुखद था ।उन्होंने इस विशाल महामारी कोरोना में मेरे बेटे और बहू अंबिका और अनंत एक एक कर दोनों को ऊपर बुला लिया ।लाख कोशिशों के बावजूद हमने उसे नहीं बचा पाया………………..।

जाते-जाते अनंत ने शिवांशी की जिम्मेदारी मेरे ऊपर पूरे विश्वास के साथ छोड़ दी। मैं नम आंखों से उसे  विदा तो कर दिया ।लेकिन खुद से एक वचन लिया मैं शिवांशी को पढ़ा लिखा कर बहुत ऊंचे पद पर पहुंचाऊंगा। मेरे और भी दो बेटे बहु थे। उनके भी बच्चे थे। लेकिन उन लोगों ने कभी भी शिवांशी के माता-पिता के चले जाने के बाद भी शिवांशी से प्यार नहीं जताया ।लेकिन मैं वचनबद्ध था अपने अंतिम सांस तक मैं इसके व्यवहार में परिवर्तन करूंगा ।और इसे अपने पैरो पर खड़ा करूंगा ।

अपने माता-पिता के गुजर जाने के बाद जब उसे इतना लाड प्यार नहीं मिला। धीरे-धीरे वह खुद बदलने लगी  । उसके व्यवहार में आए इस परिवर्तन से मैं मन ही मन  बहुत खुश होता था । मैं हर संभव कोशिश करता कि मैं इतना लाड नहीं जताऊं। जिससे वह फिर से पहले जैसी हो जाए। दिल में बहुत प्यार था लेकिन ऊपर से मैं हमेशा बहुत ही सख्त बना रहता। यह जरूरी भी था उसके लिए मेरा सख्त बने हुए रहना।

मैं उसको किसी चीज की कमी होने नहीं देता ।जो जरूरत की चीजें थी वह मैं पूरा  करने की पूरी कोशिश करता था। वह भी दिनोंदिन बहुत खुश रहने लगी और अपने व्यवहार में पूरा परिवर्तन ले आई। थोड़ा बहुत अब घर के कामों में भी हाथ बटाने लगी थी। मैं उसको देख देख कर बहुत खुश होता था। चलो ईश्वर की कृपा से मेरी पोती शिवांशी अब बदल रही है।

मैट्रिक परीक्षा में भी वह बहुत ही अच्छे नंबर से पास हुई थी ।और आज उसको देखकर मेरे बेटे और बहू दोनों बहुत खुश हो रहे होंगे। हो भी क्यों नहीं ?????? शिवांशी के व्यवहार में परिवर्तन की वजह से ही तो आज उसे  ये पुरस्कार मिल रहा था।

तभी प्रधानाचार्य जी शिवांशी के पेरेंट्स के रूप में मुझे बुलाया । इस आवाज के साथ मेरा ध्यान टूटा मैं भी अतीत में वापस आकर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा था। उन्होंने कहा कि आपकी बिटिया बहुत ऊंचाइयों पर जाएगी………………।

मैं कुछ बोलता उससे पहले प्रधानाचार्य जी ने माइक थामते हुए कहा कि, शिवांशी के अच्छे परवरिश की वजह उसके दादू हैं।माता-पिता दोनों का फर्ज अदा करते हुए उन्होंने शिवांशी को इस योग्य बनाया है। कि वह कभी भी भविष्य में खुद के बदौलत अपनी एक पहचान बना सकती हैं……………।

शिवांशी के लिए एक बार और तालियां हो जाए। और शिवांशी के दादू उसमें आए इस परिवर्तन को देखकर फुले नहीं समा रहे थे। घर आकर शिवांशी को गले लगाते हुए ।बेटे बहू की तस्वीर को देखते हैं और कहते हैं कि ……..मैं अपना वचन धीरे-धीरे पूरा करने की और हर संभव कदम बढ़ा रहा हूं।

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