छूट और छुट्टन-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Hindi Kahaniya Shorts
Chut or Chutan

Hindi Kahaniya Shorts: “क्या बात है भागवान …. पत्नी को देख श्यामलालजी बोले”मैं बचूँगी नहीँ अब आपको जी भर के देख लूँ छुट्टनदेवी ने कहा।
अरे न..न अभी तो तुम बहुत जियोगी आज ही मैंने सपने में देखा कि तुमने यमराज से उम्र में फिर छूट ली है।
“और जाते-जाते भी तुम किसी न किसी को अपने साथ छूट में दुनिया से लेकर भी जाओगी…जैसे भगवान के घर से हमारे साले को लेकर आईं थीं..

वरना तुम्हारा ये जग-प्रसिद्ध छुट्टन नाम अपना महत्व न खो देगा,”श्यामलालजी ने शरारत से कहा
आप भी न वो क्रोधित होकर बोलीं और श्यामलालजी के कन्धों पर पड़ा शॉल मुट्ठी में भींच लिया।
उनकी ठण्डी पड़ती मुट्ठी में जो अटका तो फिर उनके हाथ से निकला ही नहीं और
छुट्टनदेवी की साँस छूट गयी।
आश्लेषा…. उनका वास्तविक नाम कहकर पहली बार श्यामलाल जी बिलख कर जीवनसंगिनी के जाने पर रो पड़े,और उनकी नज़र उस फ़ोटो पर पड़ी जिसमें दोनों साथ थे ।
वो भरी आँखों से बोले तुझे तो छूट लेने की आदत थी एक्स्ट्रा बिना दिल कहाँ भरता था तेरा आज कैसे अकेली चली गईं।
पैंतालीस
वर्ष का दाम्पत्य था उनका परिचित थे ,बड़ी सुघड़ थी,एक बार के खर्च में चार काम निपटा लेतीं वो उस तसवीर की याद में खो गए ,जब वो खींची गई थी।
उनकी गम्भीर बीमारी के दौरान उनके बेटे ने मोहल्ले के प्रसिद्द फोटोग्राफर से जो खिंचवाई थी।
और फोटोशूट के समय छुट्टन देवी न जाने किधर से उसी समय लपककर आईं और बैठ गईं।
क्या अम्मा… बेटे रणधीर ने मुँह बनाकर कहा लेकिन छूट की मरीज आश्लेषा जी यानि श्यामलालजी की पत्नी अड़कर बैठ गईं।
पैसा तो खर्च हो रहे हैं तो हमहू खिंचा लेन,कभी कभी लोग यह भी कहते कि ये मरते समय भी छूट की आदत न छोड़ेंगी।
और उनके मरते ही पूरा परिवार कमरे में जो इक्कठा हुआ तो हैरान हो गया कि उन्होंने अपने पति की शाल कसकर पकड़ी थी।
बाबू अम्मा को आपकी शॉल चाहिए छूट में बडी बहू ने काँपते हुए कहा और वो शॉल अपनी मृत सास के पास रखी रहने दी।
ये उनका व्यवहार ही था कि सब कहीँ शोर हो गया कि छुट्टन दादी नहीं रहीं।
सबसे अधिक ठण्डक पड़ी रेहड़ी से लेकर बड़े दुकानदारों तक के दिलों में जो आये दिन उनका शिकार बनते थे।
अब मिलाते हैं आपको छुट्टनदेवी जी के छूट के इतिहास से…एक लड़के के इंतज़ार में उनके मायके मे दो बहनें पहले ही थीं और जब आश्लेषा जी अपने जुड़वाँ भाई के साथ पृथ्वीलोक पर पधारीं।
तो उनके बाबा बोले,”यह कन्या श्लिष्ट अर्थात जोड़े में जन्मी है,यह आश्लेषा और इसका भाई श्लेष कहलायेगा।
भगवान के घर से ही छूट लेकर आई है,और उन्होंने बाबा की बात को अक्षरशः सत्य साबित कर के दिखाया।
बचपन मे कोई चीज़ खाने को मिलती तो उन्हें दो ही चाहिए होती।उनकी भोली सूरत और मासूम आँखों को जो देखता तो उन्हें मना ही न कर पाता
,ऊपर से इतनी बातूनी और मीठी बातों की मल्लिका तो सामने वाला न चाहते हुए भी उनके मन की कर ही देता ।
गोलगप्पे के ठेले पर उनके गोलमटोल मुख में कई सूखे गोलगप्पे यूँ ही देखते देखते इतनी सफ़ाई से गायब हो जाते कि सामने वाला आश्चर्यचकित रह जाता।
पर उनकी टोली की सहेलियों से होने वाली आय के चलते वो दो चार पापड़ी नगण्य ही होतीं।
साग सब्ज़ी से शुरू हुई धनिया पुदीना के रूप में मिलने वाली छूट से शुरू हुआ सफ़र आ कर थमा और बड़े ज़बरदस्त तरह से कपडों और सोने चाँदी पर।
अँगूर हो या मूँगफली खरीदने के साथ साथ वो चार छः उदरस्थ भी कर लेतीं बातें करते करते।
यहाँ तक कि मेडिकलस्टोर और अस्पताल से भी वो रुई पट्टी बटोर कर दम करतीं ,पर जरूरमंद को मुक्तहस्त से दे देतीं थी
उनमें गजब की समझ थी बाजार की और न जाने कब कम उम्र में ही वह मोहल्ले की लीडर बन गईं शॉपिंग में चाहे कपड़े हों या सर्राफ़ा।
कोई रिश्तेदार उन्हें कुछ देता तो वो अपने दुलार का लाभ उठा कर अधिक ले ही लेतीं।उन्हें एक को बिना सवाया किये नींद ही न पड़ती।
थोड़ी बड़ी हुईं तो जब भी उनकी माँ बाज़ार से कोई चीज़ मंगवातीं तो हमेशा वो सवाया ही लातीं वह भी वाजिब दामों में।
मोलभाव और चिकचिक झिकझिक में उन्हें परास्त करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी था।जब तक उन्हें छूट न दे दी जाती उनके कलेजे के ऊपर मानो एक टन का बोझ बना ही रहता।
ऊपर से एक पनौती ये भी थी कि जो दुकानदार उन्हें छूट न देता न जाने क्यों उसका उस दिन बड़ा नुकसान हो जाता।
उनके पैर में लक्ष्मी का वास था सूनी दुकान में भी उनके कदम पड़ते ही न जाने कहाँ से भीड़ भर जाती।
पहली बार जिस दुकानदार ने उन्हें छूट न देकर नुकसान उठाया उसने तब तो ध्यान न दिया पर जब कई लोगों ने इस बात पर ध्यान दिया।
कि इन बालिका को छूट न देने पर नुकसान उठाना पड़ता है, उन्हें यह वहम नहीं वास्तविकता लगने लगा,तो उनका नाम ही छुट्टन रख दिया गया ।
कि ये छूट लिये बिना न टरेगीं दुकान से
मोहल्ले के लोग और रिश्तेदार उन्हें छूट के मोह में अपनेसाथ ज़रूर लेकर जाते ।
जिस दुकानदार से उनका युद्ध ठन जाता उनके प्रियजन उस तरफ भूल से भी मुँह करलेते तो वो हाथ घसीटते हुए अपनी तरफ खींच लेतीं।
यह कहकर कि इससे मेरी लड़ाई हुई थी,इससे कुछ मत लेना और लोग उनकी आज्ञा मान भी लेते।
उनका वास्तविक नाम आश्लेषा तो कहीं खो गया था और छूट लेने के कारण उनका नाम छुट्टन ऐसा पड़ा।
जिसने उनका ससुराल में भी पीछा न छोड़ा ,पर उन्हें उस नाम से बड़ी चिढ़ होती।
उनके भाई श्लेषकुमार के मित्र श्यामलाल की माँ ने उनके गुणों पर फिदा होकर ही उन्हें अपने घर की बहू बनाया।
छूट की सनक इतनी थी उन्हें कि प्रथम मिलन की मुँह दिखाई में भी उन्होंने यही माँगा अपने पति से कि उन्हें छूट लेने में रोका न जाये।
श्यामलाल जी ने हँसते हुए कहा,”ठीक है मैं मुँहदिखाई में तुम्हें छूट माँगने की छूट देता हूँ
और कुछ समय मे वो ससुराल में भी सबकी प्यारी बन गईं,।”
एक उत्सव के ख़र्च में वो दो निपटा लेतीं और लोग उनकी इसी बुद्धिमत्ता के प्रशंसक हो जाते। पर छूट की आदत उनके सिर इतना अधिक चढ़कर बोली कि उसने सनक का रूप लिया
एकबार उनके मायके के हालात बड़े ख़राब हो गए , उनके जुड़वाँ भाई श्लेषकुमार ने घर चलाने के लिए बीमे का काम शुरू किया।
पर छुट्टन जी ने अपने नाम और प्रतिष्ठा के लाभ को ध्यान में रखते हुए साफ कह दिया,पूरे घर के लूँगी पर छूट न छोडूँगी।
जीजी ….घर के हालात खराब हैं व्यापार घाटे में हैं अब सोच ले छूट चाहिए या रिश्ता..श्लेष ने सिर झुकाकर कहा।
और बहन के उनके स्थानपर बीमे में छूट के चुनाव के बाद उसने उसके बाद देहरी पर पाँव न दिया बहन की।
रिश्ते की बर्फ़ आज नहीं कल पिघलती ही हैं ये सोच छुट्टन लापरवाही से लेती रहीं ये बात,पर उनके पति अपने भाई जैसे साले और बचपन के मित्र की बेरुखी से टूट गए ।
झिड़कते हुए बोले धिक्कार है तुम्हारी सनक पर …ये कौन सी हठ है जो जन्म के रिश्तों पर भारी पड़ गयी ये रघुकुल की प्रतिज्ञा नहीँ जो तुम न निभातीं तो प्रलय आजाती
नाराजगी में उन्होंने अपनी पत्नी से बात करना बंद कर दिया, गम में बीमार पड़ गए , पर पहली बार ऐसा हुआ कि उनका दोस्त घर न आया।
छुट्टन देवी ने भगवान से प्रार्थना में दिन रात एक कर दिए,निर्जल उपवास भी किये ।
उनकी सेवा रँग लाई और श्यामलाल जी की उम्र को भगवान को छूट देनी पड़ी मगर छुट्टन देवी ने खाट पकड़ ली।
श्लेष कुमार को कई महीनों बाद अपना दिल डूबता सा लग रहा था,बहनोई के बुलाने पर घर आया तो बहन को देख डर गया।
उन्होंने भरे कण्ठ से माफ़ी मांगीं और गले लगकर दोंनो खूब रोये।
आज के बाद कभी छूट का नाम न लूँगी छोटे माफ़ कर दे अपनी इस पाँच मिनट बड़ी जीजी को , तेरी कसम आज त्यागती हूँ इस मरी छूट को।
न जीजी तुम्हें कुछ न होगा मैँ गुस्सा थोड़ी हूँ तुमसे, तुम्हारी पसन्द की बर्फी और भूरे हलवाई की टिक्की लेके आ रहा हूँ तीनों खायेंगे साथ में।
और जब बाजार से लौटा तो छुट्टन देवी के प्राण महाप्रयाण कर चुके थे।श्यामलाल जी सदमें से पथराई आँखें लिए बिस्तर में लेटे थे।
छुट्टन देवी की अंतिम यात्रा की तैयारियों के लिए उन्हें सजाया जाने लगा और जब अन्तिम सिंदूरदान की रीत के लिए श्यामलाल जी को बुलाने उनके बच्चे गए तो वो अपने बिस्तर से उठे ही नहीं।

हालात बड़े अजीबोगरीब हो गए न देखा न सुना एकही साथ दोनोँ का अँतिम सँस्कार सम्पन्न हुआ और सारे कार्यक्रम भी।
शान्तिपाठ के दौरान उन्ही की चर्चा थी,तब तक श्लेष ने कहा,जिज्जी ने छूट की टेक न छोड़ी अपनी, मुझे साथ लेकर आईं थी और जीजाजी को लेकर गयीं।
“मामाजी उस पर उन्होंने सारे खर्चों और फ़ोटो में भी बचत कर ली”,रणवीर ने कहा।
फ़ोटो में पति के साथ छुट्टन जी हँस रही थीं और हॉल हँसी से गूँज रहा था।