किश्तें-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Kishtey
Kishtey

Kishtey: आज विधि का फ़ोन आया या नहीं…. बेचैन रविशंकर जी ने पत्नी से सवाल किया?
नहीँ जी …बड़ी लापरवाह होती जा रही है आपकी लाडली इन दिनों। काफ़ी दिनों से कम बात कर रही है पर आप लेट क्यों हो गए जी सुगन्धा ने उत्तर में सवाल दाग दिया? उसके लिए कार देख रहा था,दुबेजी का बेटा हर तरह से योग्य है आज पापा कह रहे थे थे कि इसबार विधि घर आएगी,तो रोका कर देंगे। पूरा घर दुल्हन की तरह सजवाऊंगा
सुगन्धा- अपने घर मे पहला शुभकाम होगा हमारी बेटी की शादी। बरसों चर्चा होगी इंतज़ाम की।
सपने बुनते हुए अभी लेटे ही थे कि रात के करीब साढ़े दस बजे फोन की घण्टी घनघनाई,मोबाइल पर अपनी लाड़ली बिटिया का नाम डिस्प्ले होते ही उन्होंने सिरहाने रखा फ़ोन लपककर उठाया
” हैलो पापा…”

हाँ लाड़ो रविशंकर जी ने अतिरिक्त दुलार से अपनी बेटी विधि से कहा ,तेरे लिए कुछ सरप्राइज है आज उनकी आवाज़ में पड़ी चहक बता रही थी। पापा मुझे भी कुछ बताना था आपको…विधि की गम्भीरता भरी आवाज़ ने उनको अपनी बात बताने से सहसा रोक दिया। हाँ बोल पहले तू ही कह ले मेरी माँ  क्या बात है.. पर दिल ही दिल में उन्होंने डरते हुए कहा। आप मेरी शादी के लिए परेशान  मत होना मैंने अपने क्लासमेट वरुण से कोर्ट मैरिज  कर  ली है करीब तीन महीने पहले।
क्या …. सदमें की हालत में मोबाइल उनके हाथ से छूट गया और  उनकी चहक पर घड़ों बर्फ़ पड़ गयी शब्द साथ ही न दे रहे थे। वो निढ़ाल से बेड पर लुढ़क गए अचानक उनके इस तरह  गिरने से उनकी पत्नी भी घबराहट से भर गयीं।
क्या हुआ जी….

सुगंधा ने पूछा और उन्होंने बेड पर रखी विधि की तस्वीर को हाथ मारकर गिरा दिया।
अजी ये क्या कर रहे हो उन्होंने रोकर कहा,अब जिन्दगी भर का रोना हो गया है सुगन्ध विधि तीन महीने पहले ही शादी कर चुकी है। अब इस घर में मुझे उसकी तसवीर तो क्या कोई चीज़ भी नहीं चाहिये।
विधि के जन्म से लेकर आज के दिन तक के सारे सपने चूर हो गए कह कर पत्थरदिल समझे जाने वाले रविशंकर रो पड़े। धीरे धीरे वो घर विधि की निशानियों से सूना होने लगा,प्रियांक की कलाई और माथा राखी और दूज को सूना होता और सूनी आँखों मे पानी आ जाता।
धीरे धीरे वो घर विधि की निशानियों से सूना होने लगा,प्रियांक की कलाई और माथा राखी और दूज को सूना होता और सूनी आँखों मे पानी आ जाता। समाज में यह बात  आग की तरह फैलने लगी,और उनकी बरसों से बनाई प्रतिष्ठा बिना कोई गलती मिट्टी में मिल गई।

बड़े अरमानों से बनवाया गया उनका घर जो कभी विधि को इंजीनियरिंग पढ़ाने वाले गर्वित पिता की पहचान  होता था। आज  विधि  के एक फ़ैसले से उन्हें नीचा दिखाने की पहचान बन गया। रविशंकर और सुगन्ध  ने फ़ोन नम्बर बदल दिये। सब कहीं आनाजाना छोड़ दिया,समाज और आसपड़ोस के लोगोँ की विषैली नज़रों से उन्हें कहीं  थोड़ा सा सुकून  अगर मिलता तो वो बस उनका घर ही था।

अपने ही घर में रोज अपराधी की तरह घुसना वो भी बिना किसी अपराध भुक्तभोगी ही जान सकता
विधि की पढ़ाई और शादी के लिए जोड़ते-जोड़ते अपने सारे अरमान मार दिये। बेटा प्रियांक भी विधि के जितना लाड़ला न था। अगर घर कर्ज़ लेकर न बनवाया होता तो शायद बेंचकर कहीँ चले जाते पर निरुपाय थे क्योंकि कर्ज़ लेकर बनवाये गए मकान बिना कर्ज़ चुकाए। बिकते भी नहीं।
अगर घर कर्ज़ लेकर न बनवाया होता तो शायद बेंचकर कहीँ चले जाते पर निरुपाय  थे क्योंकि कर्ज़ लेकर बनवाये गए मकान बिना कर्ज़ चुकाए। बिकते भी नहीं।
सुगन्ध भी मौन हो गयी अब घर में बस काम की ही आवाज़ गूँजती ,या उसके अनबहे  आँसुओं की,छोटी-छोटी बात पर पापा की पुकार करने वाली विधि की मनमर्ज़ी ने उनका विश्वास ऐसा तोड़ा,कि उन्होंने उसका चेहरा न देखने की सौगंध उठाली रविशंकर जिन्दगी नाम का शब्द ही भूल गए,दस साल गुजर गए पर उस  घर की उदासी न गयी,समाज के तानों ने सीना छलनी जो कर रखा था। जिस घर की लड़की अपनी मर्ज़ी से बिना बाबुल के विदा किये घर बसा ले आज भी उसे  अछूत का ही दर्जा दिया जाता है।
लोग मज़ाक बनाते कि सही हुआ ,लड़की को छूट देने का नतीज़ा तो भोगना ही था उन्हें। वो दिनरात सवाल करते ख़ुद से कि आखिर कहाँ गलत हो गए वो। उधर विधि ने भी रिश्तेदारों से यह कहना शुरूकर दिया कि अगर पापा उसे समझते तो वह चुपचाप यह कदम न उठाती।
पापा गलत थे ,उन्हें समझना चाहिये था मुझे ?कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्हें विधि गलत लगती और कुछ को वह।
सदमें में डूबे रविशंकर न जाने कब कैंसर का शिकार हो गए,प्रियांक ने उस समय टूटी हुई सुगन्ध को किसी बड़े की तरह सँभाल लिया। और खबर पाकर विधि ने भी अपने घर जाने का फैसला किया।
दस्तक सुन इत्तिफ़ाक़ से दरवाजा  सुगन्ध ने ही खोला , रविशंकर सामने दीवान पर ही लेटे हुए थे।
विधि ने दहलीज़ पर पैर रखने का प्रयास किया।
एक कड़कती हुई आवाज़ आई ,”वहीँ रुक जाइये मिसेज वरुण” विधि को आशा थी कि इस बार उसे प्रवेश मिल जायेगा,सो उसने सुगन्ध से कहा,”मम्मी समझाइए न पापा को मुझे घर में आने दें।
रविशंकर-न नहीं ये घर तुम्हारा था,अब ये सिर्फ़ मेरा है जो पीड़ा ,धोखा तुमने दिया उसकी जलन से मुझे इसी ने बचाया है।
इसके दरवाजों ने मुझे दर्द देने वालो से दूर रखा है और दर्द की सबसे बड़ी वजह तुम हो।
विधि-क्या मेरी छोटी सी गलती इतनी बड़ी है?
रविशंकर-और हमारी गलती क्या है,हमें जो शर्मिंदगी बर्दाश्त करनी पड़ी,प्रियांक बिना किसी गलती के अपराधी बना जलालत सहता रहा।
निर्णय सिर्फ तुम्हारा अपना था पर उसकी आँच में हम सब जले न कोयला हुए न राख बस सुलग रहे हैं।

समाज भूलने नहीं देता रोज जख्म की पपड़ी नोंचता है,आजकल की पीढ़ी अपने स्वार्थ में अपने से जुड़े लोगों की तो सोचती ही नहीं आप जा सकती हैं।
सबसे ज्यादा हक मैंने सुगन्ध के छीने हैं अब  जो है उसका है।
विधि-मम्मी आप भी माफ़ नहीं करोगी कानूनन तो घर आपका भी है न।
सुगन्धा-हाँ है और मैंने तुम्हारी गलती माफ़ भी कर दी शायद मैं तुम्हें माफ कर देती,पर अपने पति और बेटे की तुम्हारी वजह से हुई बेइज्जती  कैसे भूल जाउँ।
हम वो किश्तें आज तक चुका रहे हैं, लगातार आप जा सकती हैं कहकर सुगन्धा ने घर की बेइज्जती की आखिरी किश्त दरवाजा बन्द कर अदा कर दी।