भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
Hindi Horror Story: सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्रों में स्थायी निवास के साथ-साथ प्रायः एक अस्थाई निवास बनाने का चलन है, जिसे छानी या खेड़ा कहा जाता है। इन छानियों में कभी खेती-बाड़ी करने के लिए तो कभी हवा पानी बदलने के लिए भी लोग निवास करते हैं। गांव यदि ऊंचाई वाले स्थान में होते तो छानियां घाटी में बनाई जाती और गांव घाटी में हो तो छानियां ऊँची जगहों पर, यदि गांव न कम ऊँचाई और न घाटी में हो तो गांव से ही दूर छानियां बनवा ली जाती हैं परन्तु गांव की सीमा के भीतर ही।
सुदूर क्षेत्र में गांव था झणकुला, उसकी छानियां गांव की पूरब दिशा में लगभग तीन मील दूरी पर थी। पहाड़ी पगडंडी से होते हुए जब जाते तो दो पहाड़ियां और तीन-चार गधेरे पार करने होते, इसलिये गांव से छानी वाला इलाका दिखायी नहीं देता था, गांव के आसपास सिंचाई वाले खेत थे और छानियों के आसपास असिंचित भूमि, गांव में उपजाऊ सिंचित भूमि थी परन्तु पर्याप्त नहीं थी, इसलिये गुजर-बसर के लिए असिंचित भूमि में भी फसलें उगानी पड़ती, कोदा, झंगोरा, कौणी, गहथ आदि मोटा अनाज।
गांव सुरक्षा की दृष्टि से कॉलोनी रूप में घना बसा हुआ था परन्तु छानियां दूर-दूर बनाई गई थी, अपनी-अपनी छानियों के आसपास गांव वालों ने खूब पेड़-पौधे लगाये हुए थे, जेठ महिना खत्म होते-होते, जब सिचाई वाले खेतों में धान की रोपाई कर ली तो परिवार के कुछ सदस्यों को छोड़कर बाकी सभी गाय, बैल, भैंस व अनाज आदि लेकर अपनी-अपनी छानियों के लिये प्रस्थान कर गये। अब पूरी बरसात के दिन छानियों में काटने थे, गाँव वाले खाली जगहों पर पेड़-पौधे लगाते, सब्जियां उगाते और मोटा अनाज खेतों में बोते, बारिश यदि ठीक-ठाक हो जाती तो फसलें खेतों में खूब लहलहाती, सभी खुश होकर उत्सव मनाते।
ब्राह्मण को पातड़ा (कुण्डली) दिखाकर, दिन-वार निकालकर हर साल की तरह रैचन्द भी अपनी गाय भैसों को लेकर गांव वालों के साथ ही छानी चला गया, रैचन्द के परिवार में कुल दो ही सदस्य थे, वह और उसकी मां, उसकी मां बताती थी कि औलाद तो सात जनमी थीं पर केवल चार ही जीवित रह पायी, तीन बेटियां और आखरी औलाद रैचन्द, बेटियां बड़ी थी, तीनों की शादी हो गयी।
शादी तो रैचन्द की भी हुई थी परन्तु शादी के दो साल तक कोई सन्तान न होने पर पत्नी नाराज होकर मायके चली गयी, तो फिर लौटकर नहीं आयी, जाने क्या कमी थी और किसमें थी. कई बार खबर भिजवाई परन्त वह नहीं लौटी तो। बीबी को मनाने वह गया नहीं, मर्द जो ठहरा, ‘औरत तो पैर की जूती होती है’ गांव के बड़े बूढों ने उसे यही समझा रखा था, वैसे रैचन्द डील-डौल से तो ठीक-ठाक था किन्तु वह वास्तव में था निपट गवार ही, पिछले साल पिता भी गुजर गए, रैचन्द दिन भर सूखता चला गया। गांव के सभी उसे दुबला-दुबला पुकारने लगे। मां को चिन्ता होनी स्वाभाविक थी। मां ने कारण जानना चाहा तो रैचन्द हर बार टाल जाता, गांव वालों की तर्ज पर मां भी उसे अब दुबला और अति लाड़ में दुबली कहकर पुकारने लगी तो वह गांव में ‘दुबली’ नाम से ही प्रसिद्ध हो गया, एक दिन मां ने अपनी कसम देकर उससे उगलवाया तो सुनकर दंग रह गयी।
दुबली ने मां को बताया कि उसकी छानी में रोज अंधेरा होते ही एक भूत आता है, दुबली जो भी काम करता है, भूत उसकी नकल जरूर उतारता है, वह भैंस दूहता है तो भूत बगल में बैठकर भैंस दुहने का उपक्रम करता है, वह रोटी बेलता है तो भूत भी रोटी बेलने की नकल करता है, रात को शरीर पर जब तेल मालिश करता है तो भूत भी वही करता है, वह भूत से डरता कतई भी नहीं है और न ही भूत उसे कोई नुकसान पहुंचाता है लेकिन वह फिर भी पता नहीं क्यों कमजोर होता जा रहा है, मां ने दुबली को चुपचाप कुछ समझाया और निश्चिंत होकर छानी जाने को कहा।
दुबली अर्थात रैचन्द शाम को छानी लेट आया, हर रोज की तरह वह जो करता रहा भूत भी उसकी नकल करता रहा। खाना खा लेने तथा सारे काम निपटाकर दुबली ने तेल की कटौरी निकाली और पास बैठे भूत के आगे मां की दी हुयी लीसे, चीड़ के गौंद की दूसरी कटौरी खिसका दी, दुबली शरीर पर तेल की मालिश करता रहा और भूत लीसे की, फिर दुबली ने रूई से शरीर को पोछा और भूत के आगे मां द्वारा दी हुई कपास रख दी, भूत कपास से शरीर पौछने लगा तो हाथ में कम आई और लीसे के कारण शरीर पर अधिक चिपकती गयी, फिर दुबली चीड़ के जलते छिलके से अपना शरीर गौर से देखने का नाटक करने लगा कि तेल की मालिश भली भांति हुई या नहीं, भूत ने भी वही किया तो उसके शरीर पर लगा लीसा और कपास आग पकड़ गया, भूत चिल्लाते हुए बाहर की ओर भागा और दहाड़ मार कर रोने लगा कि दुबली ने मुझे जला दिया, दुबली ने मुझे जला दिया, भागते-भागते भूत अपने को बचाने के लिये दो मील नीचे घाटी में बह रही नदी में कूद गया।
घनघोर अंधेरी रातों में घाटियों से टकराती हुई भूत की दहाड़े वर्षों तक लोगों ने सुनी, परन्तु भूत लौटकर छानी में कभी नहीं आया, सैकड़ों साल बीत गये किन्तु आज भी जब कभी झणकुला गांव के लोग अपनी छानियों में जाकर रहते हैं तो भूत का रोना रात को कभी-कभार सुनाई देता है, भूत को दुबली ने मार भगाया था इसलिये लोग आज उस इलाके को दुबली का भूत नाम से जानते हैं।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’