कशिश-गृहलक्ष्मी की लघु कहानी: Girl Story Hindi
Kasish

Girl Story Hindi: पिछली रात बेचैनी से कटी। इस दौरान करवटें बदलती एक बात बार बार मुझे चुभती कि आखिर मधु ने कल मुझे अपने घर बुलाया क्येां? माना कि पहल मैंने की। लेकिन वह भी दोशमुक्त नहीं हो सकती। अगर उसने मौका न दिया होता तो बात यहां तक न पहुंचती। कहीं ऐसा तो नहीं कि किताब में रखा खत उसके परिवार वालों के हाथ अनजाने में लग गया। सोचकर मेरी रूह कांप गयी। ‘‘हे भगवान् तब तो अनर्थ हो जाएगा। मैंने बिना वजह किसी को बदनाम किया। इस आत्मग्लानि का बोेझ लेकर कहां कहां फिरता रहूंगा? कैसे करूंगा प्रायशचित?’’सुबह हुयी। मन पर बोझ पूर्ववत् रहा। आज मधु से मिलना ही होगा क्योंकि उसका दो बार फोन आ चुका कि आज, ”शाम मेरा इंतजार करेगी। शाम हुई। धड़कते दिल से मैंने उसके घर में दाखिला लिया। मगर यह क्या?

उसने तो ऐसे मुस्कुराकर स्वागत किया मानो कुछ हुआ ही न हो? चेहरे पर भय का नमोनिशान तक नहीं। मैं सहमा सकुचाया सोफे में दबा जा रहा हूं और वह सहज कहे जा रही है,‘‘परसों क्येां नहीं आये? दो घंटे इंतजार करते करते मेरी कमर दुख गयी।’’ लहजा शिकायत भरा था। मेरे अनुमान के विपरीत हमदोनेां के बीच तीसरा कोई नहीं था। बंद कमरे में उसकी स्वभाविक खिलखिलाहट के बीच संवादों का प्रवाह मेर कानों में मधुर रस घोलने के साथ असीम आत्मिक सुख प्रदान कर रहा था। कहीं?’’ बाकी “शब्द मेरे गले में अटक गये।”
”कहीं मेरे घर वाले आपकेा भला बुरा न कहें?’’ मेरे अधूरे वाक्य को मधु ने पूरा किया। वह आगे कहने लगी,‘‘जीवन में कोई भी काम आत्मविश्वास से कीजिए। भले ही प्रेम ही क्यों न हो।’’ उसके निर्भीक व्यक्त्वि के सामने मैं स्वंय को बौना महसूस कर रहा था।

यह भी देखे-असमंजस-गृहलक्ष्मी की कहानी