असमंजस-गृहलक्ष्मी की कहानी: Hindi Short Kahani
Asamanjas

Hindi Short Kahani: “आशा मैडम, मै अंदर आ सकती हू क्या?” फुसफुसाकर, रजनी ने कहा तो आशा मैडम ने झाक कर देखा ।,”अरे,,रजनी, आओ ,सबकी छुटटी हो गई है पर तुम घर नही गई अब तक ।”आशा मैडम ने उसे स्नेहिल भाव से यह सब कहा । रजनी हौले से आई, दुखी लग रही थी,फिर वो कुछ पल खामोश रहकर बोली बोलो ,रजनी ?” आशा मैडम उसी को देख रही थी ।,”जी कल से मै स्कूल नही आ सकती मैडम ।”,” पर, क्यो , रजनी,, अरे,,तुम जानती हो ना ,कि तुम  तो खूब होशियार हो । दसवी मे अससी फीसदी अंक लाई ।अब आगे की पढाई भी यही गाव मे आराम से हो रही है तो तुम ये कया बाते कर रही हो । याद है ना आज से पहले कितनी दिककत आती थी ।यहा से बस लेकर जाओ और देर शाम को वापस आओ ।” मैडम एक ही सांस मे बोल गई।,”जी,,आप सही कह रही है ।पर, मेरी मजबूरी हो गई है ।” रजनी काफी दयनीय हालत मे लग रही थी ।,” ऐसी क्या मजबूरी है ।” मैडम अब सच जानना चाहती थी। जी ,,वो मदन है ना  और उसके नशेडी साथी उन सब  दोस्तो ने मुझे  बहुत तंग कर रखा है । जब तब हाथ पकड लेता है ।आज सुबह तो गाल पर हाथ रख दिया । ये मदन जीने नही देगा ।”तो ,, सकूल मत छोडो ,ठंडे दिमाग से काम लो रजनी ,,तुम शिकायत क्यों नही करती ।” मैडम ने गंभीरता से कहा तो रजनी घबराकर बोली  ,”कैसी बाते कर रही है । मरना है क्या मुझे ।”

“अरे,, रजनी , तुमको कोई तंग कर रहा है । तुम्हारा पढना लिखना मुशकिल कर दिया है तो तुम कया चुपचाप सहन करती रहोगी ।”,” जी,, सहन करना पड़ेगा ।

रजनी तनाव मे बोलती गई।,”  तो ,ऐसा करो अपनी माता को बताओ ।” मैडम ने रास्ता बताया तो रजनी बोली मैडम,यही तो रोना है ,मेरा , अगर माता सुनने वाली होती, तो आपसे इतनी विनती करने की मजबूरी न होती ।”,” अरे,,रजनी , वो माता है ।”,”जी है पर ,,बेटी की बात वो ऊपर से सुनती है ।”,” पर, रजनी ,समझो तुम ,माता से बात करो  उनसे ,कहो कि  ,ये तो गंभीर मामला है ।”,” जी ,, मैडम ,माता तो मुझे ही मारने लगेगी ,।”पर कयो? ,” मैडम ,, मदन के पिता तो मेरी माता के खास शुभचितक है । “,”अचछा,, तो ,फिर दिककत कया है ।” मैडम को समझ नही आ रहा था। जी ,मैडम ,यही तो दिककत है ।माता तो सुनेगी ही नही ।मेरा आठ साल का भाई है ना ।वो  मदन के पिता की ही तो औलाद है ।”कहकर ,रजनी एकदम खामोश हो गई मगर मैडम के सर पर बिजली गिरी ,”है,, हा ,,क्या?” , वो कुछ बोल ही नही पा रही थी मगर मैडम की आखें हैरत से फैलती गई । ये कया कह रही हो रजनी?” वो कंपकपाती जुबान से बोली तो रजनी ने एकदम गंभीर होकर कहा ,” जी,,बिलकुल,सच कह रही हू मैडम । मेरी माता मजदूर है मेहनती तो है, वो ,बाकी शौक भी रखती है इसीलिए सरपंच और मदन के पिता की अंतरंग सखी भी मेरी माता है ,वो तो मदन को भी अंधा प्यार करती है ।ये मदन अठारह बरस का है मगर बीडी ,गांजा, हुकका ,मदिरा सबका नशा करता है । उसे तो सब सलाम करते है । इसीलिए वो ,जो चाहे करता है। पिता का रोब जानता है ना,,,अब,आप जान लीजिये कि  इसलिए मुझ पर तो आफत ही आफत है ।,” तो,रजनी तुम घर पर कया करोगी ?”,” मैडम ,मै पत्राचार से पढ लूंगी। “,” पर, रजनी, अब घर से निकलना न होगा ।तो घर पर बंद रहोगी ?” मैडम ने सवाल किया,। अरे,, मैडम ,,ऐसा नही होगा , इसके बाद  बस, , अपने काम से निकला करूगी ।पर, किसी न किसी के साथ ।” कहकर रजनी ठहरी तो ,”उफ,, ये मदन ।”मैडम भी बस इतना ही कह सकी । गाव मे उनको भी रहना था । जल मे रहकर मगर से क्या बैर लेती वो । मन मसोसकर रह गई । पर समय ने करवट बदली । दस साल के भीतर कितना कुछ बदल गया था । मदन तो आवारा ही रहा और समय को बरबाद करता रहा आखिर समय ने भी उसे बरबाद किया । मगर, मेहनती  रजनी पत्राचार की पढाई से कालेज की भी सारी पढाई करके  अध्यापिका का पद पा चुकी थी । रजनी का भाई भी बारहवी पास करके आगे पढने शहर चला गया था । और रजनी की माता की सेहत भी अब ढलने लगी थी । मजदूरी पर हर रोज नही जाती थी । रजनी ने तो आराम करने को कहा पर मन लगाने को सप्ताह मे तीन दिन मजदूरी करती थी । इसी बीच ,कमाल हुआ, अचानक , एक सरकारी आदेश हुआ और इस गाव को शहर की सीमा मे शामिल कर लिया गया । यानि ,नगर पालिका का विस्तार, इसलिए ,अब न मदन के पिता सरपंच रहे और न किसी को  उनका खानदानी डर बचा रहा । मदन तो अब ,जमीन की दलाली आदि करके अपना समय काट रहा था । आशा मैडम भी पचपन बरस  की हो गई थी । पर, वो अब भी , इसी गांव मे थी।

 आशा मैडम से कुछ न छिपा था ,वो साफ-साफ देख रही थी कि धीरज से काम करने वाले को जरा सा इतजार करना होता है पर सब हिसाब बराबर हो ही जाता है । रजनी की माता अब असहाय होती जा रही थी । मदन को तो गाव मे कोई पूछता तक नही था । लेकिन रजनी का नाम सब सममान से लेते थे । उसने अपनी रोटी खुद कमाना सीखी और वो भी हिम्मत करके।

यह भी देखे-इतना फ़र्क़ क्यों?-गृहलक्ष्मी की कहानियां