गिफ्ट-21 श्रेष्ठ युवामन की कहानियां पंजाब: Gift Hindi Story
Gift

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

Gift Hindi Story: शान माथा टेक कर गुरुद्वारे के दरबार हॉल में बिछे गहरे नीले रंग के कार्पोट पर बैठ गया। सामने देखा, सुनहरी रंग की पालकी के पीछे बैठे भाई सिंह गुरबाणी का पाठ कर रहा था। पालकी के बाईं ओर आठ फुट लंबी और चार फुट चौड़ी व डेढ फुट ऊंची स्टेज बनी हुई थी, जिस पर सफेद कपड़ा बिछा हुआ था। स्टेज पर बंद हारमोनियम और तबला पड़े थे। स्टेज के पीछे पॉडियम पड़ा था, जिस पर अग्रेजी में लिखा था, ‘राज करेगा खालसा’। पालकी के सामने गोलक थी, जिसके दाहिनी ओर सफेद दाढ़ी वाला एक बुजुर्ग बैठा था। हॉल में आने वाले गोलक में पैसे डाल माथा टेकते और उस बुजुर्ग से प्रसादि लेकर एक ओर औरतें और दूसरी ओर पुरुष बैठते जाते थे। शान ने दाएं-बाएं निगाह दौड़ाई, बीस फुट ऊंचे हल्के सुनहरी रंग के ऊपरी सिरे से चार फुट और छह इंच चौड़े बार्डर में नीले गहरे रंग से गुरमुखी अक्षरों में गुरबाणी की पंक्तियां अंकित थी, जिन्हें पढ़ने में शान असमर्थ था। वह उन अक्षरों की ओर अभी देख ही रहा था कि दो-ढाई साल का गोलमटोल बच्चा उसके सामने से निकला। शान का जी चाहा कि बच्चे को पकड़ कर अपने पास बिठा ले। बच्चा उसकी ओर देखता रहा परन्तु शान में उसे रोकने का हौसला न हुआ। बच्चा औरतों वाले स्थान की ओर चला गया। शान की निगाह ने उसका पीछा किया। बच्चा फिर एक आदमी के पास चला गया। आदमी ने उसे डपट दिया, ‘टिकता क्यों नहीं।’ बच्चा भाग कर औरतों की ओर चला गया। वहां से गोलक की ओर जा कर उसमें हाथ मारने लगा। एक औरत जो शायद बच्चे की मां थी. उसे कंधे से पकड. आदमी की ओर घणा से देखते हए बाहर चली गई। शान सिर झुका कर बैठ गया। उसकी निगाह अपनी उस अंगुली पर अटक गई, जिसका नाखून दो लोहे के टुकड़ों में आकर काला हो गया था। शान को अपने कंधों में कसक सी महसूस हई।

यह कसक वह तब महसूस करता था, जब उसे वह सपना आता, जिसमें वह पानी के बड़े आकार के पूल में डूब रहा होता। बचाव के लिए हाथ-पैर चलाने की कोशिश करता मगर उसकी बांहें उसका साथ न देती। बाजुओं को दोनों ओर से कोई खींचने लगता। बाजू छुड़ाने की कोशिश में डूबते-डूबते वह डर कर जाग उठता। यह सपना उसे बहुत बरस पहले आना शुरू हुआ था। जब वह वीक एंड डैडी के साथ घर पर बिता कर आता था। उसके डैडी गुरवीर कैलगरी चले गए थे। यह सपना फिर भी उसे आता रहा। अब तो उसे अपने डैडी से मिले भी तीन साल हो गए थे। पिछली बार जब गरवीर वैनकवर आया था, तब शान बारहवीं क्लास पास कर चुका था। शान को उसने डिनर के लिए रेस्टोरेंट जाने के लिए फोन किया। उसे लेने आए गुरवीर ने घर के सामने आ कर कार का हार्न बजाया। शान घर से बाहर निकला। गुरवीर भी कार से बाहर निकल आया। शान ने पास पहुंच कर ‘हाय डैड!’ कहा। जिसमें हाय जोर से और डैड धीमे सुर में कहा।

गुरवीर ने उसे अपनी बांहों में ले लिया। फिर उसे सिर से पैर तक देखते हुए कहा, ‘मेरे पुत्र की तो दाढ़ी आ गई है।’ कह कर उसने धीमे से शान की गाल को प्यार से सहलाया।

कार में बैठ कर गुरवीर ने पूछा, “कौन से रेस्टोरेंट चलोगे…देसी या..?”

“अप टू यू।”

“नहीं, तुम्हारा दिन है, तुम्हारी मर्जी चलेगी।”

“आई डोंट केयर,” कह कर शान ने कंधे उचकाए।

पंजाबी रेस्टोरेंट पहुंच कर गुरवीर ने पूछा, “फिर अब क्या करने का इरादा है?”

“बी.सी.आई.टी. से मशीननिस्ट का कोर्स करूंगा।”

“तुम्हें यूनीवर्सिटी में आगे पढ़ना चाहिए।”

शान ने गुरवीर के चेहरे पर नजरें टिका दी। गुरवीर उसकी नजर झेल नहीं पाया। बात पलट कर कहा, “तुम ड्रिंक लेते हो न?”

“नहीं, मैं नहीं पीता।”

“बीयर भी नहीं? मेरे साथ के लिए?”

“नहीं।”

“चलो अच्छा है…मगर मैं ड्रिंक लूंगा।”

शान कुछ बेचैन लगने लगा। गुरवीर ने महसूस किया, जैसे शान उससे कुछ कहना चाहता हो, परन्तु उसने शान को कुछ भी कहने के लिए उकसाया नहीं। आखिर शान ने हौसला करके पूछ ही लिया, “डैड, आपने मम्म को डॉयवोर्स क्यों दिया?”

“हूं…यह कैसा सवाल है? हम तो आज तुम्हारी ग्रैजुएशन सैलीब्रेट कर रहे है।”

“प्लीज डैड!”

“हमारी आपस में बनी नहीं। इससे अच्छा था, अलग-अलग रहें। अब ठीक नहीं? वह अपनी मर्जी से जी रही है, मैं अपनी जिन्दगी का मजा ले रहा हूं।”

“और मैं…? आई मीन इकट्ठ रहने का कोई चांस नहीं था?”

“नहीं, मैं बहुत टॉलरेट करता रहा, तेरी नानी बात-बात पर कनाडा मंगवाने का ताना देती थी। तुम्हें मालूम है, यहां अपने लोग एक-दूसरे को स्पॉसर करके ही आए हैं। वे लोग दो साल पहले आ गए थे। अगर उन्होंने मुझे स्पॉसर किया, इसका मतलब यह तो नहीं कि मैं अपनी जिन्दगी उनके अनुसार ही जीऊ। घर में उसकी दख्लअंदाजी जरूरत से ज्यादा थी। तुम्हारी मां अपनी मां से पूछे बगैर कुछ नहीं करती थी। उसने तेरे दादा-दादी की बिलकुल ही परवाह नहीं की।”

“मगर मम्म का कहना है, आप उन्हें अपने स्टैंडर्ड का नहीं समझते थे। इसलिए डॉयवोर्स हुआ।”

“तुम ही बताओ, शक्ल-सूरत या पढ़ाई-लिखाई में वह मेरे बराबर की है।”

“फिर आपने उससे विवाह क्यों किया?”

“यह मेरे पेरेंट्स की ओर से एरेंज्ड था।”

“आप यहां कितनी देर तक मम्म के साथ रहे?”

“दस-ग्यारह साल हम आपस में लड़ते ही रहे। उससे निभाने के लिए मैं अपने आप से लड़ता रहा। मैंने बहुत कोशिश की, दिल से उसे अपनाने की।”

“आप कोशिश करते रहे…जब आप को पक्का यकीन नहीं था, फिर मुझे क्यों पैदा किया?”

“यह सब अचानक ही हो गया।”

“ओह…” कह कर शान चुप हो गया।

गुरुद्वारे में बैठे शान ने उस आदमी की ओर देखा, जिसने बच्चे को डपट दिया था। उसे देख शान को गुस्सा आया, ‘हूं, कैसे बैठा है, आंखें मूंद कर…शायद पाठ सुन रहा है। मुझे भी पाठ सुनना चाहिए, बेकार कुछ सोचने की बजाय।’

उसने आंखें भींच कर पाठ सनने की कोशिश की. मगर उसे कछ समझ में नहीं आया। मम्म पर उसे खीझ आई। कहा था, ‘आज तेरा बर्थडे है, चलो कहीं बढ़िया से रेस्तरां में लंच करते हैं। मगर खींच कर यहां ले आई। कह रही थी, ‘तेरा बर्थडे, जहां दिल करे, वहीं चलते हैं। अब मैं क्या करूं यहां? उठ कर बाहर चला जाऊं? बाहर भी क्या करूंगा? बाहर तो सच बलदेव अंकल खड़े हैं। वह मुझे देखते ही लेक्चर देने लगेंगे। ऐसे ही ठीक है। ये लोग बात-बात पर दूसरे की बेइज्जती कर देते हैं। उस दिन कहने लगा, ‘तुम अपनी मां का कहा क्यों नहीं मानते। शादी क्यों नहीं कर लेते? उसने मालूम तुम्हारे लिए अपनी सारी उम्र गवां दी। जी चाहा, कह दूं, ‘माईंड यूअर ओन’ मगर कह नहीं पाया। इसी कारण उसका हौसला और भी बढ़ गया। यह अगर मम्मी का कजिन है तो इसका मतलब यह तो नहीं कि जो कुछ मर्जी कहता रहे। कहने लगा, ‘तुम्हारा कहीं गे-गू वाला चक्कर तो नहीं? मन चाहा, उसे चूंसा मार दूं। जी तो मेरा उन लड़कों को भी मारने का करता था….उसकी आंखों के सामने स्कूल का दृश्य घूमने लगा।

उस दिन पहली बार सोलहवें बर्थडे पर मिली जैकेट पहन कर वह स्कूल गया। स्कूल के ग्राउंड में जाते ही उसके कानों में आवाज पड़ी, “हे अलोनर, नाईस जैकेट।”

शान का मन चाहा, उन्हें बताएं कि उसके डैड ने भेजी है परन्तु वे स्कूल के आवारा लड़के थे। ‘ओ थेंक्स!’ कह कर वह चलने लगा। लेकिन वह चारों लड़के उसके आसपास आ खड़े हुए, “मेरे मां-बाप मुझे इतनी मंहगी जैकेट नहीं दे सकते।” एक लड़के ने कहा। “मेरे भी नहीं” अन्य तीनों लड़कों ने भी ऐसा ही कहा। “फिर यह लड़का इतनी मंहगी जैकेट पहने, यह तो इन्साफ नहीं,” कहते हुए एक लड़के ने शान को बाजुओं से पकड़ लिया। दो ने मुक्के तान लिए। एक ने उसकी जैकेट के पीछे कुछ लिख दिया। सभी हंसने लगे। शान ने जैकेट उतारने की कोशिश की। “अगर तुमने इसे उतारा…’, लड़के ने उसे चूंसा दिखाया। सभी शान के पीछे-पीछे चलने लगे। अन्य लड़के-लड़कियां जैकेट के पीछे लिखे को पढ़ कर हंसने लगे। “अच्छा तो. इसने अपना नाम अलोनर से होमो रख लिया है?” एक ने जोर से कहा और हंसी का फुहारा छूट गया। शान ने एक बार फिर जैकेट उतारने की कोशिश की मगर तना हुआ चूंसा देख कर वह डर गया। वह वाशरूम की ओर भागा। पीछे से बहुत से छात्रों की हंसने की आवाजें आती रहीं। वाशरूम में उसने जैकेट उतार कर पढ़ा, पीछे लिखा था, ‘होमो।’ उसने उस लिखावट को हैंड वाश से धोने की कोशिश की, मगर सफलता नहीं मिली। उसका जी चाहा. जैकेट उतार कर गारबेज केन में फेंक दे. परन्त कुछ सोच कर उसने ऐसा नहीं किया। उसने उसे फिर से मल-मल कर धोने की कोशिश की। “प्रिंसीपल से शिकायत करने से कुछ नहीं होगा। वह इन्हें वार्निंग दे कर छोड़ देगा। अधिक से अधिक इनके पेरेंटस् को बुला कर बता देगा। तुम अपने डैड से जा कर कहो।” उसके पीछे-पीछे आए गुरप्रीत ने उससे हमदर्दी प्रगट करते हुए कहा। शान ने उसकी ओर देखा, मगर कुछ कहा नहीं। गुरप्रीत ने फिर कहा, “मैं जब आठवीं में पढ़ता था, मुझे एक लड़का बहुत तंग करता था। मैंने टीचर, प्रिंसीपल सभी से शिकायत की मगर वह नहीं माना। फिर मैंने अपने डैड को जा कर बताया। वह गैंगस्टर की तरह ड्रैसअप होकर स्कूल के सामने आ कर खड़े हो गए। जब वह लड़का बाहर आया, डैड ने उसे ऐसा धमकाया कि मुझे तंग करना तो दूर, वह मेरा दोस्त बनना चाहने लगा।” इतना बता कर गुरप्रीत चला गया परन्तु शान सोचने लगा, अगर मम्म ने जैकेट देख लिया तो क्या सोचेगी?

याद करके शान की सांस तेज चलने लगी। ‘होमो’ ‘अलोनर’ की मिली-जुली आवाजें उसके कानों में गूंजने लगी। ‘हां..हां…मैं अलोनर ही सही, मेरा कोई दोस्त क्यों नहीं बनता? मैं अधिक बातें नहीं कर पाता तो इसमें मेरा क्या कसूर है? मैं हूं ही ऐसा? यहां भूचाल क्यों नहीं आ जाता? कोई बंब क्यों नहीं गिरता?

अरदास करने के लिए खड़े हुए ‘भाई जी’ के हाथ से माईक गिरने से जोरदार आवाज हुई। शान को लगा, कहीं कोई बंब गिरा हो और उसके सहपाठियों और बलदेव अंकल सहित बहुत सारी लाशें पड़ी हों। अरदास के लिए खड़े होते हुए, उसने पांव से ठोकर लगाई, जैसे बलदेव अंकल की लाश को ठोकर मारी हो। झटका लगते ही वह अपने आप में आ गया। ‘मैं यह क्या ऊंट-पटांग सोच रहा हूं। मुझे अपना ध्यान दूसरी ओर लगाना चाहिए।’ उसने अपना ध्यान केन्द्रित करने की कोशिश की।

हॉल की दूसरी ओर औरतों में बैठी शान की मां राजिन्द्र सोच रही थी, ‘कैसे सिर झुका कर बैठा है। यह नहीं कि बाहर जा कर किसी से बातचीत कर ले। अंदर घुस कर ही बैठा रहता है। कितनी बार कहा. लोगों से मिला-जुला करो। आज भी कहां आ रहा था। बर्थडे का वास्ता देकर यहां लाई हूं। सोचा, जर्बदस्ती गुरुद्वारे ले जाती हूं, शायद किसी लड़की पर ही नजर टिक जाए। मगर यह तो नजर ही ऊपर नहीं करता। विवाह के नाम से भागता क्यों है? कहीं कोई नुक्स तो नहीं। नहीं…नुक्स होता तो, उस दिन उस लड़की के साथ…।

पिछले दिनों राजिन्द्र तबीयत ठीक न होने पर घर जल्दी लौट आई। शान के बेडरूम से किसी लड़की की आवाज सुन कर उसे हैरानी हुई। उसने दरवाजे से कान लगा कर सुनने की कोशिश की। ऐसा करते हुए उसे शर्म के साथ खुशी भी महसूस हुई। वह धीरे से अपने कमरे में चली गई। उसका नाचने का जी चाहा। फिर सोचा, शान को उसके आने की आहट हो गई तो रंग में भंग न पड़ जाए। अपने कमरे में लेट कर भी उसका ध्यान बाहर की आहट की ओर लगा रहा। दरवाजा खुलने की आवाज सुन कर उसने घड़ी की ओर देखा, ग्यारह बज रहे थे। वह मुस्करा दी। ‘बेटा सयाना है। मालूम है, मां पौने बारह बजे तक आ जाएगी। उससे पहले ही लड़की को भेज रहा है।’ उसने पर्दा सरका कर देखा। एक ‘देसी लड़की’ को शान के साथ देख कर उसने हाथ जोड़ कर भगवान का धन्यवाद किया। लड़की को छोड़ कर वापस आते हुए गैरेज में मां की कार उसने देख ली। अगले दिन वह मां से नजरें मिलाने पर कतराने लगा। मगर राजिन्द्र तो किसी और ही दुनिया में मस्त थी। नाश्ता तैयार करते हुए वह गुनगुना रही थी। उस दिन राजिन्द्र ने कोई बात नहीं छेड़ी। दो दिन बाद उसने कहा, “शान, अब तो विवाह के लिए हां कर दो।”

“मम्म! आपसे कितनी बार कहा है, विवाह की बात मत किया करो।”

“तेरी गर्ल फ्रेंड से ही कर देते हैं।”

“मेरी कोई गर्ल फ्रेंड नहीं।”

“उस दिन जो लड़की आई थी, वो कौन थी फिर?”

“अरे वो तो राधिका है। वी आर जस्ट फ्रैंड्स।”

“भला जस्ट फ्रेंड के साथ इस तरह…” कहते हुए वह रुक गई।

‘कहीं उस रात मुझे कोई भ्रम तो नहीं हुआ था। नहीं, मैंने खुद कान लगा कर सुना था। उन्हें ड्राईवे में एक-दूसरे को चूमते और लिपटते हुए…।’ ‘हाय…महाराज की हजूरी में मैं यह उल्टा-सीधा सोच रही हूं। सच्चे पातशाह! मेरी भूल बख्श देना। मेरे पुत्र को सुमति दे। बस विवाह के लिए राजी हो जाए। इसका घर बस जाए। मेरी जिम्मेवारी पूरी हो जाए।’ एक बच्चे को हॉल में भागते देख, उसने सोचा, ‘लोग महाराज की हजूरी में बच्चों को संभालते नहीं। मेरे शान ने कभी कोई शरारत नहीं की। लोग कहते कितना समझदार है। बिलकुल शरारत नहीं करता। हमारे बच्चे तो कहीं टिक कर बैठते ही नहीं।’ उसने फिर से शान की ओर देखा, वह अभी भी नजरें झुकाए बैठा था। ‘कैसा मगन बैठा है। यह शुरू से ही ऐसा है। इसकी कभी कोई शिकायत नहीं आई।’ उसकी नजरों के सामने से सात-आठ साल का शान घूम गया, जो वीक-एंड पर उसे लेने आए, अपने डैडी की कार की ओर भागा था। तब राजिन्द्र के अंदर कछ ट गया। उससे रहा नहीं गया। वापस आने पर उसने शान से पूछ ही लिया, “तुम अपने डैड को ज्यादा लाईक करते हो। कैसा भागा था उसकी ओर।” उसके बाद शान कभी भाग कर अपने डैडी से नहीं मिला। ‘कितना समझदार बेटा दिया है मुझे भगवान ने। लाख-लाख शुक्र तेरा! मेरी शक्ल-सूरत तुम से छिपी नहीं, मेरा शान कितना सुन्दर है, एकदम अपने बाप पर गया है। उसी के समान ऊंचा कद-काठी। इसके बाप को अपने चेहरे का बहुत गरूर था। कहा करता, ‘लड़की वाले मेरे पीछे-पीछे घूमते थे। मगर बेमेल विवाह तो तुम से ही होना था।’

‘ना करते बेमेल विवाह। आप से कुछ छिपा तो नहीं था। अब जैसी भी हूं। कनाडा आते समय तो बहुत डायलॉग मारते थे, ‘अक्ल होनी चाहिए, शक्ल में क्या रखा है।’

“मगर तुम्हारे पास तो अक्ल भी नहीं।”

“तुम कनाडा पहुंच गए। तुम्हारे मां-बाप आ गए, अब तुम मेरी अक्ल की परख करने लगे।”

“अक्ल का पता तो अभी चला है। मैं अकेले ही निभा कर रहा हूं। तुम मेरे मां-बाप की भी इज्जत नहीं करती। मुझे ‘तू’ कह कर पुकारती हो।”

“तुमने ही ऐसा कहना सिखाया है। तुम मेरी मां की कितनी इज्जत करते हो। ‘गंदी’ के बिना तो बात ही नहीं करते।”

“गंदी को गंदी ही कहूंगा। जब वह मेरे घर में आ कर दखल देती है।”

“तुम्हारे मां-बाप दखल नहीं देते? जब वह आती है तो दखल बन जाता है। अगर मैं तुम्हारी मां को गंदा कहूं तो?”

“कह कर देखो तो सही।”

राजिन्द्र की सोचों की लड़ी जुड़ती गई। उसे एक और घटना याद आ गई।

एक दिन काम पर लौटने पर शान उसकी ओर भागते हुए आया। उसने कहा, ‘बेटा मम्म के कपड़े अभी गंदे हैं, नहा-धोकर तुम्हें उठाऊंगी।” कह कर उसने शान का मुंह चूमा और नहाने के लिए चली गई। बाथरूम गीला था। टॉयलेट सीट गंदी थी। उसे अपने ससुर पर गुस्सा आया, ‘तीन महीने हो गए आए हए। पता नहीं कब समझेंगे। इसे भी इंडिया समझते हैं।’ नहा-धो कर शान को उठाते समय उसकी सास ने कहा, “मैं शान को ही संभालती रही। खाना नहीं बन पाया।” यह सुन कर वह जल-भुन कर किचन की ओर चली गई। शान आ कर उसकी टांगों से लिपटने लगा, उसने गुस्से में आ कर शान को परे धकेल दिया, “पहले बाहर जान तोड़ कर आओ, फिर घर आकर यहां का स्यापा करो।’ कहते हुए उसने शान को दो तमाचे जड़ दिए। चीखते हुए शान दादी की ओर भागा। दादी ने उसे गोद में उठा लिया, ‘सभी अपनी हिम्मत के अनुसार काम करते हैं।’ और राजिन्द्र बेडरूम का दरवाजा बंद करके रोने लगी।

‘बड़ी आई, अपनी हिम्मत से काम करने वाली। सारा दिन फोन से ही फुरसत नहीं मिलती इसे। मां ने कितनी बार सुनाया था, बहू के लौटने से पहले ही घर का सारा कामकाज खत्म कर लिया करो। मगर कहां? मां बेकार इनकी नजर में बुरी बनी। उसे एक और घटना याद आने लगी।

गुरवीर के अपने छोटे भाई की बीवी कुछ दिन पहले ही आई थी। उसे देख, गुरवीर चार दिन चुप-चुप रहा। एक दिन खूब शराब पीकर आया और आते ही बोलने लगा, “छोटा ले गया सब कुछ। सुंदर, पढ़ी-लिखी बीवी भी और मां-बाप भी। वो मेरी बीवी की सेवा से बहुत खुश होकर यहां से चले गए…।”

“क्या बकवास कर रहे हो?” मेरी मां ने कहा। “खुद को बहुत पढ़ा-लिखा समझते हो। कहां तुम्हारी एम. ए., मैं दस तक पढ़ी होकर भी, तुम्हारी तरह नहीं बोलती। अब यह तुम्हें बदसूरत लगने लगी। इसी बदसूरत के कारण ही तुम सब यहां पहुंचे हो। तुम्हारा छोटा भाई जो हूर-परी लाया है न, वो इस बदसूरत के कारण ही है। इंडिया में होता तो हो जाता ऐसा रिश्ता…। तब कहते थे, हमें फर्श से उठा कर अर्श तक पहुंचा दिया….। अब हमारी अक्ल को परखने लगे हो।” मां बोलती रही। गुरवीर सुनता रहा। उसके जाने के बाद बोला, “यह गंदी औरत फिर कभी यहां न आए, न ही तुम वहां जाओगी। यही उल्टी-सीधी बातें वो तुम्हें सिखाती है।”

“मैं तो जरूर जाऊंगी और वो भी यहां आएगी। तुम जो चाहे मर्जी कर लो।”

“नहीं मानोगी, तो वहीं जा कर रहो।”

“मैं क्यों जाऊं, तुम दफा हो जाओ।”

“साली, कैसे जबान चलाती है…।”

भाई जी के हाथ से माईक गिरने की जोरदार आवाज से राजिन्द्र अपनी यादों से बाहर आई। उसने मन में अरदास की, ‘मेरे बेटे का विवाह हो जाए। मैं कभी उन दोनों में दखल नहीं दूंगी। बस दोनों आपस में खुश रहें। हे सच्चे पातशाह!’ कविशर कह रहे थे. ‘पत्तर की दात से जग में जड लग जाती है। पुत्र परिवार का नाम आगे ले जाते हैं।’ राजिन्द्र ने फिर मन ही मन अरदास की, ‘हे परमात्मा, मेरा शान कहीं अकेला न रह जाए। अभी तो बस बाईस साल का हुआ है। पता नहीं, अगर वह न माना तो…?’ उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।

अरदास के बाद शान की निगाह फिर से उस बच्चे पर जा पड़ी। उसने डपटने वाले आदमी की बांह पकड़ कर खींचा। जब वह आदमी न उठा, तब वह एक बूढ़ी औरत की गोद में जा बैठा। औरत ने उसे अपने साथ भींच लिया, फिर झटके से गोदी से उतार दिया। उसे तुरन्त नानी की याद आ गई, जो उसे इसी तरह अपने साथ भींच लेती और पूछती, ‘किस का बेटा है?’

नानी का।” यह सुन कर वह उसे और भी अपने साथ लिपटा लेती। वह उससे दादी और डैडी के बारे में पूछती। दादी का ख्याल आते ही उसकी मुट्टियां भींच गई। वह उसकी मां और नानी को कोसती और कहती, ‘मेरे पुत्र को दो घरों में जीना पड़ता है। बेटा, तुम हमारे पास क्यों नहीं रहते?’ शान को अपने कंधे में कसक महसूस होने लगी। ‘दोनों परिवार एक-दूसरे को अपना दुश्मन क्यों समझने लगे हैं। एक साथ नहीं रह सकते तो रेय की तरह क्यों नहीं रह लेते। रेय ने बताया था, वह अभी भी अपनी पहली पत्नी का दोस्त है।’

‘पुत्र, परिवार का नाम आगे चलाते हैं…’ कविशर की आवाज उसके कानों में टकराई, ‘लोग, केवल परिवार का नाम आगे चलाने के लिए बच्चे क्यों पैदा करते हैं, जबकि उन्हें बच्चों को संभालना नहीं आता। मगर मां बार-बार मुझे विवाह के लिए क्यों तंग करती है? इसे डैडी का नाम आगे चलाने की क्या जरूरत है? यह डैडी से नफरत करती है।’ उसने औरतों वाले स्थान की ओर देखा। उसे लगा, मां आंखें पोंछ रही हो। ‘मम्म को क्या हुआ? यह क्यों रो रही है?’ सोचते हुए वह लंगर हॉल की ओर चला गया और वहां से बाहर निकल अपनी सिल्वर हौंडा सिविक गाड़ी में जा बैठा। कार स्टार्ट करते ही मां अगली सीट पर आ बैठी। शान ने कार चला दी मगर उसे समझ में नहीं आ रहा था कि मां से कैसे पूछे? उसे डर था, कहीं मां फिर से रोने न लगे। इसी उलझन में उसकी निगाह आगे जा रही गाड़ी के बंपर स्टिकर पर पड़ी, जिस पर लिखा था, The more people I meet, the more I like my dog. उसने सोचा, शायद इसे पढ़ कर मां का मड ठीक हो जाएगा। एक साथ जाते हए वे अक्सर ऐसे ही किया करते थे।

“मां, वो देखो बंपर स्टिकर…” शान ने आगे वाली कार की ओर इशारा किया।

“कितना सुंदर बेबी है।” राजिन्द्र की भरी आंखें छलक उठी।

“बेबी कहां है मम्म! वह तो हैप्पी फेस है। मगर मैं तो दूसरे स्टिकर की बात कर रहा हूं।”

राजिन्द्र कुछ न बोली, बस सिसकी ली।

“क्या हुआ मम्म …! बताओ तो आप क्यों रो रही हैं?” शान ने मिन्नत करते हुए पूछा।

“तुम्हें मालूम नहीं क्या…।”

“प्लीज मम्म!” शान परेशान हो गया।

मां कुछ न बोली। शान ने फिर मां से रोने का कारण पूछा।

“तुम शादी क्यों नहीं कर लेते?” राजिन्द्र ने उल्टा उसी से सवाल किया।

“मम्म, फिर वही बात। तुमने भी तो शादी की थी, तुम्हें क्या मिला?”

“मेरे किस्मत ऐसी थी, मगर तुम्हारे डैड को तो सारा कुछ मिल गया। तुम भी लड़के हो। मैं औरत हूं, मेरी बात और है।”

“डैडी की बात मत करो। तुम ने दूसरी शादी क्यों नहीं की?”

“मैं शादी कर लेती, तो तुम्हें कौन संभालता? बेगाने कभी बाप नहीं बनते? ऐसे मत करो, तुम शादी कर लो। मैं तुम्हारे बच्चों को खिलाया करूंगी। घर में रौनक हो जाएगी। तुम तो सारा दिन कंप्यूटर पर बैठे रहते हो। मैं क्या दीवारों से बातें किया करूं? अभी तो दिन काम में निकल जाता है, जब बूढी हो जाऊंगी…तब..?”

“फ्रिक मत करो मम्म! मैं तुम्हारी पूरी देखभाल करूंगा।”

“क्या मेरी देखभाल करोगे, मेरी एक बात तो पूरी नहीं कर रहे तुम।”

“मां, तुम समझती क्यों नहीं, विवाह जरूरी नहीं। मेरे अंदर किसी के लिए प्यार पैदा नहीं होता।”

“अगर प्यार पैदा नहीं होता तो वह राधिका कौन है?”

“शी इज जस्ट फ्रैंड मम्म!”

“जस्ट फ्रेंड के साथ ऐसा….।”

“वो और बात है, विवाह के लिए कमिटमैंट, ट्रस्ट, प्यार और भी बहुत कुछ जरूरी होता है। सिर्फ बच्चे पैदा करने की खातिर मैं विवाह नहीं करवाना चाहता।”

“अगर आंखें मूंद कर किसी से मैं शादी कर लूं, फिर मेरे जैसे ही बच्चे पैदा होंगे, जिनकी जिन्दगी डल होगी।” कह कर शान चुप हो गया। मां की सिसकी सुन, उसने रोडियो ऑन कर दिया, जिस पर हिन्दी गाना चल रहा था, ‘कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन…।’

“समबॉडी रिटर्न माई ओल्ड गुड डेज स्पैशली चाइल्डहुड। सभी अपने बचपन के दिन वापस चाहते हैं। सभी को ये दिन बहुत प्यारे होते हैं…।” रेडियो डी.जे. बोल रहा था।

“क्रैप..!” कह, शान ने रेडियो बंद कर दिया और ऐसी गहरी सांस ली, जो राजिन्द्र के भीतर उतर गई।

‘हाय, हाय, मैं मर जाऊ! ऐसी आह!” राजिन्द्र ने अपनी आंखें पोंछ ली। उसे याद आया, ‘पैदा होते ही, इसे आहे मिल गई।’ गुरवीर और उसे झगड़ते देख, शान बचपन में रोने लगा। गुरवीर ने उसे थप्पड़ जड़ दिया। शान की चीखें, उसकी कराहटें सुन, राजिन्द्र का सीना छलनी हो गया।

फिर उसने बैडरूम में कानों पर हाथ रखे, सहमा बैठा शान याद आया। घर के बाहर पुलिस की कार निकलते देख कर, वह उससे आकर लिपट गया। एक रात पहले पुलिस गुरवीर को राजिन्द्र पर हाथ उठाने के कारण उठा कर ले गई थी। उसके बाद जब भी वे आपस में लड़ते, शान आहे भरने लगे। उसकी ऐसी हालत देख कर, वह उसे अपने साथ लिपटा लेती और शान सिसकियां भरते, थक कर सो जाता। वह स्वयं भी निढाल हो आहें भरने लगती।

कार लाल बत्ती होने के कारण रुक गई। राजिन्द्र ने अपने हाथ शान के गेयर लीवर पर टिके हाथ पर रख दिया। उसके भीतर से एक आह निकली।

मां के हाथ की छुअन उसे भली लगी, ‘मां कितना ध्यान रखती है मेरा। मगर विवाह की जिद गलत है। मां की इस इच्छा को किस प्रकार से बदला जाए? पिछली कार का हार्न सुन कर उसने कार को आगे बढ़ा लिया। वह अभी भी सोच में डूबा था। उसे फिर वही बंपर स्टिकर नजर आया। उसने सोचा, ‘यह आदमी रॉड जैसा होगा।’ उसे उस दिन लंच-रूम की बातचीत याद आ गई।

जब आईवन ने रॉड से पूछा, “रॉड तुम कब सैटल होंगे?”

“सैटल से मतलब?” रॉड ने हैरानी से पूछा।

“अरे तुम एक से दो कब होंगे?”

“हम दो ही हैं, मैं और मेरा कुत्ता?”

आईवन जोर से हंसा, बोला, “कुत्ता तो ठीक है मगर कुत्ता तुम्हारा बच्चा या घरवाली नहीं बन सकता?”

“क्या घरवाली और बच्चे जरूरी होते हैं? आपको कोई प्यार करना वाला चाहिए। वह मेरे पास है।”

“तुम मूर्ख हो। तुम्हें जिन्दगी के अर्थ मालूम नहीं।” आईवन ने बुर्जुर्गी दिखाई।

“तुम मुझे मूर्ख कह रहे हो। पहले विवाह करो, फिर बच्चे पैदा करो, उन्हें पढ़ाओ-लिखाओ, बड़े हो जाएं तो यह डर रहता है कि किसी गलत संगत में न पड़ जाएं। आखिर में वे तुम्हें पहचानते भी नहीं। कुत्ता तुम्हें हमेशा प्यार करेगा। कोई फ्रिक ना फाका नहीं…।” रॉड ने दलील दी।

“यह तो खुदगर्जी की निशानी है। जानवर बच्चों की जगह नहीं ले सकते।” आईवन ने कहा।

“मगर तुम्हारा अकेलापन तो दूर कर सकते है।” रेय ने कहा, जो उन दोनों की बातें बहुत ध्यान से सुन रहा था।

“सोचो! खुदगर्ज आदमी कैसे अच्छा पिता हो सकता है?” रॉड ने कहा।

“तुम नहीं समझोगे…” कह कर आईवन काम में जा लगा।

‘यह आईवन भी अपनी बुर्जुगी दिखाने से बाज नहीं आता। एकदम मां जैसी बातें करता है। उस दिन कहने लगा, “शान, तुम कहीं अंदर-बाहर जाते नहीं हो। अपना खाली समय कैसे बिताते हो?”

“ज्यादातर समय इंटरनेट पर ही बीतता है।”

“लेकिन यह कोई क्रिएटिव काम नहीं। क्रिएटिव काम करने से ही आदमी की जिन्दगी में रस भरता है। तुम कहीं वॉलटियर काम किया करो। बहुत आनंद आता है, किसी का काम करके।’

“मगर मैं क्या करूं, जी नहीं करता, ना ही किसी से मिलने-जुलने का मन करता है। आज मम्म जबरदस्ती गुरुद्वारे ले आई। बेकार में पुरानी बातें याद आने लगी। अंदर बैठा रहा, बाहर लंगर हॉल में आता तो बलदेव अंकल की बातें सुननी पड़ती। यह मां भी…मर क्यों नहीं जाती…फिर कोई तंग करने वाला नहीं रहेगा…।’ अचानक उसका पैर ब्रेक पर जा लगा। ‘कितना खुदगर्ज हूं मैं….यह क्या सोच रहा हूं।’

अचानक ब्रेक के कारण राजिन्द्र को झटका लगा, उसने शान की ओर देखा। उसकी सूनी आंखों को देख कर उसे डर लगा।

डायवोर्स के मुकदमे समय मेरी आंखें भी ऐसी सूनी थी। उसे खुदकुशी करने के विचार बार-बार आते थे। परन्तु शान के ख्याल ने उसे जीने के लिए मजबूर कर दिया। इसकी जिम्मेवारी ने उसकी आंखों में जिन्दगी भर दी। शान को भी उसकी जरूरत थी। शायद वहम है उसका। सभी कुछ अपने आप हो जाता है। विवाह के बाद आदमी उड़ने लगता है। मेरा भी कहां धरती पर पैर लगता था। दिन-रात काम करते हुए भी मुझे कोई थकावट महसूस नहीं होती थी। कितना अच्छा लगता था। ‘एक बार इसका विवाह हो गया, फिर यह भी उड़ने लगेगा। थोड़ा सा दबाव डालूंगी, मान ही जाएगा।

“शान, तुम्हारी निगाह में कोई लड़की है तो बता दो। नहीं तो मैं अपनी मर्जी से तेरा विवाह कर दूंगी।” राजिन्द्र ने सख्त आवाज में कहा।

“मां…..।” शान ने मिन्नत की।

“मैं कुछ नहीं जानती, मेरा यह आखिरी फैसला है। मैं अब और अकेली नहीं रह सकती।”

“मां, तुम समझती क्यों नहीं….क्या करूं…।” गाड़ी को ड्राइवे में लगाते हुए उसका दिमाग सुन्न हो गया।

अपने बैडरूम का दरवाजा बंद कर. वह लेट गया। मां और आईवन उसके दिमाग में घूमने लगे। उसने सोचा, मां के लिए बर्थडे गिफ्ट भी लेकर आना है। क्या लाऊं? वह सोचने लगा। रॉड और रेय उसके सामने आ खड़े हुए। सोचते हुए, उसके होंठों पर मुस्कान आ गई। उसने उठ कर कंप्यूटर ऑन किया। इंटरनेट चलने से उसका मैसंजर चालू हो गया।

“ए सैक्सी, क्या हो रहा है?” उसकी नैट सहेली ने संदेश भेजा।

“कुछ खास नहीं” , उसने अनमने भाव से लिखा।

“कब मिलोगे?”

उसने सोचा, ‘यह भी राधिका की तरह मिलने के लिए कितनी उतावली है। मिलने पर राधिका की तरह ही कहेगी, नैट पर इतने बढ़िया सपने बुनते हो, वैसे कितने बोर हो।’ उसने लिख भेजा, ‘मैं नैट फ्रैंड रहना ही पसंद करता हूं।’

“तो फिर साइबर सैक्स करे।” दूसरी ओर से संदेश आया।

“सॉरी मैं बिजी हूं।” लिख कर उसने मैसंजर बंद कर दिया और सर्च करने लगा। फिर वह उठा और ‘मैं अभी आया मम्म!’ कह कर घर से बाहर निकल गया। जब वह वापस आया, उसके पास छोटा सा पिल्ला था। उसने उसे राजिन्द्र को थमाते हुए कहा, “लो मम्म! तुम्हारा बर्थडे गिफ्ट! उम्मीद है, तुम्हारा अकेलापन दूर करने के लिए यह तुम्हारा साथ देगा।”

“अब मैं कुत्ते-बिल्लियों के साथ ही खेला करूंगी? यही कसर रह गई थी? शाबाश है तुम्हें…” कह कर राजिन्द्र रोने लगी। पिल्ला उसके पैरों में पड़ा उसे सूंघ रहा था।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’

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