घर की लक्ष्मियां-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Ghar ki Lakshami

Kahani in Hindi: मैं लंदन जाने वाली फ्लाइट में आकर बैठ गई। अपना सीट बेल्ट लगा लिया और खिड़की से बाहर देखने लगी।
मन बहुत ही बेचैन हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे मैंने अपने पैरों से कुछ बंधन तोड़ दिए हैं और अब आसमान में उड़ने के लिए तैयार हूँ। प्लेन पर बैठे हुए कुछ ही पल बीते थे कि प्लेन के टेक ऑफ की सूचना पायलट ने दी “सभी यात्रिगण अपना सीट बेल्ट बांध लें।अब प्लेन टेक ऑफ करने वाला है।”
थोड़ी देर पर प्लेन गड़गड़ते हुए टेक ऑफ कर आसमान की ओर उड़ गया और अपने बड़े बड़े डैने फैला कर आसमान की सैर करने लगा। मैं खिड़की से नीचे देखी जा रही थी।नीचे से सब कुछ ओझल होता जा रहा था।
नदी,तालाब,घर-बार और उसके साथ मेरी सारी संघर्ष और दुखभरी कहानी भी।
मैंनेअपनी आंखें बंद कर ली और पीछे सीट पर अपना सिर टिका दिया।
अपनी आँखें बंद किए मैं पुरानी बातें याद करने लगी थी।
सारी कहानी चलचित्र की तरह मेरे दिमाग में दौड़ रही थीं।
मैंने अपनी आंखें बंद कर लिया और उन पुरानी बीती गलियों में पहुंच गई।
तब मैं सिर्फ 18 साल की ही थी। एक दिन मैं कॉलेज से लौटी तब मां ने मुझे बलैंया लेते हुए कहा
“मानसी, तुम्हारी शादी तुम्हारे बाबा ने तय कर दिया है।
इसी महीने तुम्हारी शादी है। अब कॉलेज वालेज सब भूल जाओ।
बस अपने रंग रूप पर ध्यान दो।
वे लोग बिना दान दहेज के शादी के लिए तैयार हो गए हैं। बस तेरे रंग रुप पर।”
“पर मां मेरी पढ़ाई!मेरा अंतिम वर्ष है।” मैंने दबे हुए स्वर में कहा तो मां मुझे झाड़ते हुए कहने लगी “बहुत पढ़ लिया तुमने और पढ़ाई की जरूरत ही नहीं है।
बस अब घर गृहस्थी संभालने की तैयारी करो। क्या करना है पढ़लिख कर।
इतना अच्छा रिश्ता घर चलकर आया है।”
“पर मां मैं तो ग्रेजुएट भी नहीं रहूंगी!” मैं रोआंसी हो उठी।
“कर लेना शादी के बाद ग्रेजुएशन और जितनी इच्छा हो उतना पढ़ लेना मगर अभी शादी के लिए तैयार हो जाओ।

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तुम्हारे पीछे तुम्हारी छोटी बहन भी तो है। सोचा करो। तुम्हें इतने दिन घर पर बैठा कर रखेंगे तो फिर उसकी शादी का नंबर कब आएगा?
इतना अच्छा घर बार-बार नसीब में नहीं होता!
नसीब तुम्हारा घर चल कर आया है उसकी इज्जत करो मानसी।”
देखते देखते शादी का दिन भी आ गया।
मैं आलोक की दुल्हन बनकर उसके घर आ गई और उनके घर गृहस्थी संभालने लगी।
सब कुछ सही चल रहा था। मेरे पैर भारी होने की खबर सुनकर मेरी सास मेरी बलैया लेते हुए कहा
“बस बहू इस घर को एक वारिस दे दो।”
वह हर समय मुझे अपनी हाथों में बैठाए रखती और मेरा हर तरह से खयाल रखती थी।
9 महीने बाद मैं ने घर के वारिस की जगह दो जुड़वा बच्चियों को जन्म दिया।
यह देखकर ही मेरी सास मायूस हो गई थीं।
अब उनकी आंखों में मैं खटकने लगी थी।
वह हमेशा ताने मारा करती थीं।
“कुछ तो दहेज में लाई नहीं है ऊपर से दो-दो बच्चियाँ पैदा कर दी। कौन पार लगाएगा।
इसके बाप के पास तो कुछ भी नहीं है वो क्या देगा? अपनी बेटी तो ऐसे सस्ते में निपटा दिया!”
मैं खून का घूंट पीकर रह जाती थी।
“मां आप ने ही तो दहेज की डिमांड नहीं की थी फिर अब मुझे इसके लिए ताने क्यों मिल रहे हैं?”
मैं मन ही मन घुटती रहती मगर मेरे मुंह से बोल नहीं फूटते थे।
ना जाने हमारे समाज की क्या विडंबना है बेटियों की मां इतनी कमजोर क्यों पड़ जाती है?
मेरी मां भी ऐसी ही थीं। अगर वह चाहतीं तो मुझे कम से कम ग्रेजुएशन की डिग्री तो लेने दे देती लेकिन उन्हें तो मुझे घर से विदा करने की ही हड़बड़ी थी।
जैसे कि शादी कर दिया तो सब कुछ मिल गया।
आज मेरे पास क्या है? एक डिग्री भी नहीं कि मैं आगे कुछ भी कर सकूं।
दो-दो जुड़वा बच्चियों को संभालते, घर के सारे काम और सबके मुंह बंद करते हुए कब आलोक मेरे से दूर होते गए मुझे पता ही नहीं चला।
यह मुझे तब पता चला जब किसी पड़ोसी ने मुझे बताया कि आलोक ने दूसरी शादी कर ली है।
बार-बार आलोक का ऑफिस टूर के बहाने बनाना और कई दिनों तक बाहर रहना अब मुझे समझ में आने लगा था।
मेरे पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई थी।
मैंने उन्हें अपने बच्चों की दुहाई देते हुए कहा
“आलोक यह सब क्या है?”
“ नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है मानसी!, यह सब सिर्फ बेकार की बातें हैं।
लिया, मेरी कुछ भी नहीं लगती बस ऑफिस की पार्टी में मैं उसे ले जाया करता हूं ताकि मेरा रेपुटेशन बढ़े।
तुम क्या हो? अंडरग्रैजुएट!
अपनी शक्ल देखो घर गृहस्थी के चक्कर में तुमने क्या कर लिया? सब कुछ मटिया मेट!”
मैं सिसक उठी।
“आलोक, यह घर गृहस्थी तो तुम्हारी है ना!
बच्चे तुम्हारे, घर तुम्हारा। मैं उन्हीं में तो उलझी रहती हूं तो मुझे अपने लिए समय ही नहीं मिल पाता!”
“ यह कोई बात हुई! तुम्हारे पास तो बहानों की कमी ही नहीं है।
कभी शर्ट ढूंढो तो अलमारी में शर्ट नहीं मिलता, कोई भी चीज सही जगह पर नहीं मिलती तो तुम घर क्या संभाल रही हो?” आलोक ने मुझ पर तंज कसते हुए कहा और अपने पैर पटकते हुए वहां से चले गए।
मैं अपनी अबोध बच्चियों को कुछ देर तक देखती रही वो नासमझ अपने हाथ पैर पटक पटक कर मेरा ध्यान आकर्षित करने की भरपूर कोशिश कर रही थीं।
ना चाहते हुए भी मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। उन्हें गले लगा कर में रो पड़ी।
दोनों बच्चियाँ खिलखिलाने लगीं।उन्हें अपने कलेजे से चिपकाए हुए मैंने उन्हें वचन दिया
“मेरी बच्चियों तुम्हारी आंखों में मैं आंसू नहीं आने दूंगी।
मैं यह साबित करुंगी कि मैं बेटियों की मां हूं ।मेरे लिए यह एक बहुत ही गर्व की बात है।
मैं समाज को एक आईना दिखाऊंगी।”
उसी दिन से मैं अपने आप को बदलने के लिए जुट गई।
मेरा ग्रेजुएशन अधूरा रह गया था। बड़ी मुश्किल से मैंने इग्नू से ग्रेजुएशन की डिग्री ली।
मुझे सिलाई करना आता था। मैंने सिलाई सेंटर खोला।
लोगों के कपड़े सिलती। लड़कियों को सिलाई की ट्रेनिंग देने लगी।
ऑनलाइन भी सिलाई की ट्रेनिंग दिया करती थी।
धीरे-धीरे मेरी मेहनत रंग लाने लगी।इस बात के भी मुझे ताने मिलते रहते थे।
मगर धीरे-धीरे वे लोग बोलना भी बंद कर दिए।एक शीत युद्ध हमेशा छाया रहता था।
आलोक ने मुझे यह कभी नहीं कहा कि तुम घर से चली जाओ।
तुम्हारे लिए इस घर में कोई जगह नहीं है क्योंकि उनके माता-पिता और घर को देखने के लिए एक फ्री की नौकरानी चाहिए भी थी।
मैं भी अपनी जिम्मेदारियां अच्छी तरह समझती थी।
मैं अपनी बच्चियों के सिर से उनके पिता का साया हटाना भी नहीं चाहती थी। इसलिए सब कुछ देखसमझ कर मैंने जहर का घूंट पीकर अपने आप को नव निर्मित किया और लग गई अपनी बेटियों का भविष्य बनाने के लिए।
बेटियां मां का हृदय होती हैं। मां की बात समझ जाती हैं।
मेरी दोनों बच्चियां रुचि और शुचि मेरी बात मानती भी थी और समझती भी थीं।
मेरे दिल का दर्द उनसे छुपा हुआ नहीं था। वह दोनों जी भर कर मेहनत करती और क्लास में अव्वल आने की कोशिश करती भी थीं।
धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग लाई उन्हें स्कूल ने स्कॉलरशिप देना शुरू किया।
यह सफर स्कूल से राज्य स्तर तक और फिर जब भारत सरकार की ओर से दोनों को मेधावी छात्रों के लिए सम्मानित किया गया तब एक खाई जो मैंने बच्चियों को पैदा कर बनाई थी वह एकाएक पट गई ।
मेरे सास और ससुराल वाले मुझे और मेरी बच्चियों को खुशी खुशी स्वीकारने लगे थे।
मगर मैं अब पीछे मुड़ने के लिए तैयार नहीं थी।
अपने दोनों बच्चियों पर मैंने बहुत मेहनत की थी, जिसके कारण ही दोनों ने एक साथ ऑल इंडिया मेडिकल कॉलेज से मेडिकल एंट्रेंस निकाल लिया था।
मेडिकल कॉलेज की लाखों की फीस उनके अपने स्कॉलरशिप से ही जा रहा था।
आलोक अब ज्यादातर अपनी दूसरी पत्नी के साथ ही रहते थे तो सास का स्वभाव मेरी प्रति थोड़ा नम्र हो गया था ।
धीरे-धीरे मेरी दोनों बच्चियों ने मेडिकल कॉलेज की पढ़ाई खत्म कर ली थी।
अच्छे रिजल्ट के कारण उन्हें स्पेशल डिग्री के लिए विदेश भेजा गया।
वहां के सबसे अच्छे मेडिकल संस्थान ने उन्हें अपने यहां 3 साल के अनुबंध में नौकरी भी दे दिया।
दोनों मुझे कई महीनो से जोर दे रही थीं।
“ मां आप यहां आइए। एक बार तो आइए!”
आखिरकार उसने मेरा वीजा भी बनवा दिया और टिकट भी खरीदकर मुझे दे दिया।
प्लेन हवा में उड़ रहा था और मैं निश्चिंत सी सो रही थी।
तभी विमान परिचारिका ने मुझे हल्के से हिलाते हुए मुझे डिनर के लिए कहा।
मैं अपनी आंखें खोली और मुस्कुराते हुए डिनर का पैकेट ले लिया और उसे धन्यवाद दिया।
मैंने मन ही मन अपनी मां से कहा
“मां जो गलती आपने किया, मैं उनसे सीख कर मैं आगे बढ़ी।
आप समाज के खोखले ढांचे से डर गई और मैं उन्हीं ढांचों को गिराकर आगे बढ़ गई।
आज मैं गर्व से कह सकती हूं कि मैं भी बेटियों की मां हूं।”