मोहब्बत भी इबादत है-गृहलक्ष्मी की कविता
Mohabbat bhi Ibadat Hain

Poem in Hindi: मोहब्बत भी इबादत है
उसकी नजरों ने छू लिया
पहली दफा जब उसे देखा था
वो ख्वाब है या हक़ीक़त
उस रात इस उल्झन में डूबा था ,
तकते रहे उसकी राहें ये पन्ने भी
डलती हूई शामों को उससे मिलने का इंतज़ार था
हर मौसम ज़िन्दगी का सुहाना हो गया
इन रातों को भी उससे मिलने का खुमार था ,
शाम जलने लगी उसके नूर से
खूबसूरती का मंज़र जन्नत से कम नहीं था
वो पल शायद ही मैं लिख पाता
उसे सजाने के लिए इस शायर के पास कोई रंग नहीं था ,
उसके हर पहलू में खोया रहूँ
उसकी हर एक अदा में मुझे सुकून मिलता है
उससे मिलकर ये जाना मैंने
कि हक़ीक़त में चाँद कितना खूबसूरत लगता है ,
उसका मुस्कुराना मेरे दिल को राहत देता है
ज़िन्दगी जीने का जरिया देता है

बेवजह ही अब मुस्कुराता रहता हूँ
हर पल उसके ख्याल में बिताना मुनासिब लगता है
मेरी मोहब्बत की आशीमा का मुझे खुद अंदाज़ा नहीं
उससे इश्क़ करना भी अब इबादत लगता है
खिल चुकी है कलियाँ अब मेरे घर के आँगन की
उस हमसफर के साथ अब हर सफर सुहाना लगता है |

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