फुटपाथ पर किताबें बिखरी पड़ी थीं, अपने समय के चर्चित चित्रकार भाऊ समर्थ कभी किसी किताब को उठाते, कभी किसी और को। फिर उन्होंने किताब उठाई। भाव-ताव किया और तीन रुपए में खरीद ली। वेणु गोपाल उनके साथ थे। भाऊ की ‘पसंद’ देखकर वे चौंक गए। निहायत ही घटिया किताब थी। भाऊ लगातार बोले जा रहे थे। तभी हैरानी में वेणुगोपाल ने देखा, भाऊ ने किताब के चार टुकड़े कर दिए।
फिर आठ। फिर चिंदी-चिंदी करके सड़क किनारे के नाले में डाल दी, फिर खुद ही मुस्कराते हुए वेणु गोपाल से बोले, ‘एक गलत किताब को खत्म करना भी उतना ही महत्वपूर्ण काम है, जितना एक सही किताब को बचाना और पढ़ना किसी बच्चे विभाग के लिए यह किताब जहर का काम कर सकती थी। मैं सैकड़ों-हजारों को खत्म नहीं कर सकता, एक को कर सकता था, सो कर दिया।’
ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं–Anmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)
