Sushant Singh in a Movie Scene
Sushant Singh in a Movie Scene

Summary : सुशांत के एक सीन ने सत्या का मिजाज ही बदल दिया

सुशांत सिंह को सत्या के वक्त कोई नहीं जानता था, वे जूनियर कलाकार की जिंदगी जी रहे थे।

Sushant Singh Pajama Incident: राम गोपाल वर्मा की 1998 की फिल्म सत्या भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक अहम पड़ाव साबित हुई थी। इस फिल्म ने हिंदी फिल्मों में कहानी कहने का तरीका बदल दिया और आगे चलकर बनने वाली कई गैंगस्टर फिल्मों की नींव रखी। इस रिलीज के बाद तो 2000 के दशक में अंडरवर्ल्ड पर काफी सिनेमा देखने को मिला। राम गोपाल वर्मा ने ही कंपनी, डी और ऐसी ही कई फिल्में बनाईं। उन्हीं की बनाई सत्या में खास रोल निभाने वाले एक्टर सुशांत सिंह ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा है कि उन्होंने इस फिल्म की शूटिंग के दौरान क्या अनुभव किए और कैसे उनके एक सीन ने पूरी फिल्म की भाषा और शैली को ही बदल दिया।

सुशांत ने कहा कि सत्या के सेट पर उनका पहला दिन था और आधे दिन तक बस मेकअप ट्रायल चल रहा था, क्योंकि मेकअप आर्टिस्ट यह तय कर रहे थे कि चेहरे पर बने जख्म का निशान कहाँ लगाया जाए। उस दौरान वे फर्श पर, पौधों के पास, ईंटों पर बैठे रहे। किसी ने उन्हें कुर्सी तक ऑफर नहीं की गई। वे बिल्कुल नए थे, कोई उन्हें पहचानता भी नहीं था। वे एक छोटे-से गुंडे का रोल निभा रहे थे। सौरभ शुक्ला और अनुराग कश्यप इस फिल्म के लेखक थे। दोनों ने उन्हें समझाया कि यह किरदार एक मामूली गुंडा है जिसने कभी अपनी जिंदगी में चाकू तक नहीं देखा।

पहली ही सीन के दौरान जब राम गोपाल वर्मा ने ‘एक्शन’ कहा तो सुशांत ने सीन करना शुरू कर दिया लेकिन उन्होंने ‘कट’ नहीं बोला। एक्टिंग क्लास में सुशांत ने सीखा था कि जब तक ‘कट’ न कहा जाए, तब तक किरदार में ही बने रहना चाहिए। इसलिए वे लगातार परफॉर्म करते रहे। आखिरकार जब ‘कट’ कहा गया तो आरजीवी उनके काम से खुश थे, लेकिन बाद में उन्होंने सुशांत को डांटा भी।

Sushant Singh In SAVDHAN INDIA
Sushant Singh In SAVDHAN INDIA

सुशांत ने बताया कि पहले टेक में वे थोड़ा ज्यादा ही एक्टिंग कर गए और गिरने की वजह से उनका पायजामा फट गया। अब समस्या यह थी कि अगले टेक के लिए दूसरा पायजामा कहां से लाएं। तब उनके असिस्टेंट तौफीक भाई ने गुस्से में गाली दी और बोले, “किसने बोला था गिरने को? अब दूसरा पायजामा कहां से लाऊं?” यह सुनकर सुशांत हंस पड़े।

​​​​​​​बाद में राम गोपाल वर्मा ने अपनी किताब ‘गन्स एंड थाईज’ में इसी घटना का जिक्र किया। सुशांत ने कहा “आरजीवी ने अपनी किताब में लिखा कि चूंकि मैंने ‘कट’ नहीं कहा और एक्टर सीन करता रहा, तो मुझे यह देखने का मौका मिला कि ‘कट’ के बाद और ‘एक्शन’ से पहले क्या-क्या हो सकता है। यही बात सत्या की बुनियाद बनी।”

सिनेमा के दीवानों को 90 और 2000 के दशक के इस महान फिल्मकार को अगर समझना है तो उनकी इस किताब को जरूर पढ़ना चाहिए। इस किताब की खास बात यह है कि रामू कहीं यह जताने की कोशिश नहीं करते कि वे कितने महान हैं, वे तो यह बताते हैं कि बेहद सिंपल तरीके से वो फिल्में बनाते थे। उन्होंने ईमानदारी से यह भी बताया है कि कौन-सी फिल्म किस विदेशी फिल्म से प्रभावित थी।

ढाई दशक से पत्रकारिता में हैं। दैनिक भास्कर, नई दुनिया और जागरण में कई वर्षों तक काम किया। हर हफ्ते 'पहले दिन पहले शो' का अगर कोई रिकॉर्ड होता तो शायद इनके नाम होता। 2001 से अभी तक यह क्रम जारी है और विभिन्न प्लेटफॉर्म के लिए फिल्म समीक्षा...