भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
Fog Story: कोहरे के बीच निकलती ट्रेन की गूंज स्टेशन तक सुनाई दे रही थी। दो पहाड़ों के बीच संकरी पटरी से गुजरती ट्रेन अब सिक्किम के रवंगला स्टेशन के करीब थी। रवंगला, तीस्ता वादी और रंगीत वादी के बीच मेनाम पहाड़ी के तलहटी में बसा एक गांव था। सुबह के सात बजने वाले थे। रोज की तरह एशिन रेलवे स्टेशन पर अपने किताबों के स्टॉल पर बैठी थी। उसे स्टेशन पर व्याप्त ऊर्जा बड़ा सुकून देती थी। स्टेशन पर अपनों की प्रतीक्षा में बेसब्र आंखें, आती ट्रेन को देख चेहरे पर आने वाली उमंग और फिर अपनों से मिलने के बाद, आंखों तक फैली मुस्कान उसके आंखों में भी झिलमिलाती थी। वहीं दूसरी और विदा लेते समय उनकी आंखो में आए गरम आंसू उसके मन को पिघला देते थे। कुछ महीनों पहले उसके माता-पिता की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। तब वह मात्र आठ साल की थी। तभी से उसकी भावनाएं जड़-सी हो गई थीं। सारे रिश्तेदारों ने धीरे-धीरे मुंह मोड़ लिया था बस दर के चाचा थे. जिन्होंने एशिन को अपने पास रखने की पहल की थी। एशिन स्कूल जाती, सुबह और शाम स्टेशन पर किताब का स्टॉल संभालती, वहीं बैठकर अपनी पढ़ाई भी कर लेती। छोटे-मोटे काम में चाची का हाथ बंटाती। स्कूल उसका तराई में था, जहां वह एक पगडंडी के रास्ते पैदल ही जाती थी। यह वही रास्ता था जहां से उसके पिता उसे साइकिल पर बिठाकर स्कूल छोड़ने जाते थे। कभी वह पगडंडी के दोनों तरफ खिले पहाड़ी फूलों को इकट्ठा कर साइकिल को फूलों से सजा देती। हर गर्मी में यहां तरह-तरह के फूल खिलते थे। यहां पर वह अक्सर अपनी मां के साथ आया करती थी। पर इस वर्ष बसंत नाराज था शायद। जाने क्यों अभी तक वादी में फूल नहीं खिले थे? इस समय तक तो फूल खिलने प्रारम्भ हो जाते थे। सारी वादी खुशबू और रंग से भर जाती थी। रास्ते में वह वादी के पास रुक जाती और फूलों के खिलने का इंतजार करती।
वादी के बीच से बहती नदी के किनारे बैठ कर सरज को ढलता देखती। बर्फ से ढकी आसमान छूती कंचनजंघा पर्वत श्रृंखला को घंटों निहारती। जैसे उस रास्ते से उसके माता-पिता आसमान से उतर कर फिर लौट आने वाले हों। एशिन के हृदय में खुशियों का झरना सूख गया था। उसे उदास देखकर चाचा-चाची भी परेशान हो जाते थे।
चाची उसे बहुत स्नेह करती और उसकी हर जरूरत का ध्यान रखती। उनका बेटा तेनजिन जो मिनी से चार साल बड़ा था और बेटी तेवी जो उससे दो साल बड़ी थी उसे खुश रखने का प्रयत्न करते थे, पर एशिन उस दु:ख से उबर ही नहीं पा रही थी।
एक दिन स्कूल से वापस लौटी तब चाची ने बताया कि, “कुछ दिन के लिए उन्हें अपने गांव जाना है, उनकी मां की तबीयत ठीक नहीं हैं।” जाने की तैयारी शुरू हो गई, उनके साथ उनके बच्चे भी जा रहे थे। स्टेशन पर जब ट्रेन विदा ले रही थी, तब एशिन को एक खालीपन का एहसास हो रहा था। चाचाजी और एशिन स्टेशन से घर लौटे तो घर में पसरी खामोशी से उसका मन जाने कैसा हो गया था। चाचाजी ने उससे कहा, “चलो बेटा स्कूल जाने की तैयारी करो, तुम्हारी चाची टिफिन तैयार करके गई हैं।” वैसे तो एशिन रोज ही बुझी-सी रहती थी, पर आज कुछ अलग ही उदासी छाई थी। स्कूल जाते समय उसकी बहन तेवि भी साथ होती थी। वह उसका ध्यान रखती। दिनभर के किस्से सांझा करती, भाई तेनजिन अपनी साइकिल पर उनके बस्ते लेकर चलता और एशिन को हंसाने का प्रयत्न करता। पर उसके चेहरे पर बस एक फीकी मुस्कान आ जाती। एशिन को अब अकेले स्कूल जाना बोझिल लगने लगा था। आजकल ना वो वादी में खिलते फूल खोजने रुकती और ना ही सूरज को नदी के आगोश में जाते देखने के लिए ठहरती। बस उसे जल्दी घर पहुंचना होता था। हो सकता है, चाची और भाई बहन घर आ गए हों, इसी उम्मीद के साथ वह हर रोज जल्दी घर पहुंचने का प्रयत्न करती। आज जब रोज की तरह वह घर पहुंची, तब चाचाजी उसका इंतजार कर रहे थे। उसने रसोई में झांका तो देखा आज उन्होंने एशिन के लिए थूपका और सेल रोटी बनाई थी।
एशिन का मन रुआंसा हो उठा, उसके पिताजी भी ठीक उसी तरह उसका मनपसंद खाना बनाकर स्कूल से लौटने का इंतजार करते थे। आज उसके उदास मन का पाषाण पिघलने लगा था। चाचाजी ने कहा, “चलो एशिन खाना खाते हैं फिर मैं काम पर जाऊंगा। और हां, आज शाम तो तुम्हारी चाची भी लौट रही है। तुम तो स्टेशन पर अपने स्टॉल पर ही रहोगी, मैं भी पहुंच जाऊंगा।” इतना सुनकर एशिन के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। उसने जल्दी से होम वर्क किया। ताला लगाकर स्टेशन की तरफ निकल गई। बार-बार उसकी नजर घड़ी की तरफ जा रही थी। आज तो घड़ी की सूइयां इतनी सुस्त थी कि आगे बढ़ने का नाम ही नहीं ले रही थी। जैसे ट्रेन के आने की अनाउंसमेंट हुई। एशिन की प्रतीक्षा में बेसब्र आंखें आती टेन को देख चमक उठी। टेन के रुकते ही. डिब्बों में झांककर अपने भाई-बहन को देखने के लिए व्याकुल हो उठीं। उनको देखकर आंखों तक फैली मुस्कान और चाची के हाथ का अपने माथे पर कुनकुना स्पर्श पाकर उसकी आंखे झिलमिलाई और फिर धुंधला गई। चाची से लिपट कर खूब रोई। भाई-बहनों से भी इतना लंबा इंतजार करवाने के लिए झूठ-मूठ की नाराजगी जताई। चाचाजी भी पहुंच ही गए थे। एशिन के इस स्नेह की बारिश में सभी का मन भीग गया था। आज एशिन अकेले नहीं, पूरे परिवार के साथ अपने घर लौट रही थी। कोहरा छंट रहा था, सिंदूरी किरणें वादी से विदा ले रही थी। वादी में फूल खिलना प्रारंभ हो गए थे और एशिन के मन में भी बसंत की आमद हो गई थी।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
