स्कूल की आधी छुट्टी की घंटी बजते ही बच्चों का एक विशाल समूह ऐसे बाहर लपका, मानो अचानक किसी बाड़े का गेट खुला हो। पता नहीं यह बच्चे ऐसे क्यूं भागते हैं, मानो किसी जेल से छूटे हों। शायद बच्चों के स्वभाव में ही गति होती है। इसी भीड़ में मीनू और गीता बड़े हौले हौले स्कूल की पिछली दीवार की ओर बढ़ रही थी, ताकि कोई उन्हें देख न ले। बड़ी सतर्क निगाहों से चारों तरफ देखती हुई  वे एक बड़े से पत्थर के पास आ गयी और उस पर चढ़ कर दीवार की दूसरी तरफ एक एक करके कूद गयीं। 

आधी छुट्टी ख़त्म होने पर पांचवे पीरियड की घंटी बज गयी पर मीनू और गीता का अब तक कोई पता न था। अंग्रेजी की अध्यापिका गुप्ता मैडम भी कक्षा में आ गयी और सभी बच्चों की उपस्थिति लेने लगी।  मीनू और गीता का नंबर आने पर जब वे नहीं बोली तो मैडम ने उनकी खाली सीट पर नज़र दौड़ाई। दोनों के बैग सीट पर रखे थे, पर वे कक्षा में नहीं थी।

उन्होंने कक्षा के  बच्चों से दोनों के बारे में पूछा पर किसी को कुछ पता न था। गुप्ता मैडम ने एक बच्चे को कक्षा के बाहर  जा कर देख आने के लिए कहा, पर उनका कहीं अता- पता न था। गेट पर चौकीदार से भी पूछा पर उसने भी किसी बच्चे को बाहर जाते नहीं देखा था।

अब तो किसी दुर्घटना की आशंका से सब घबरा गए। गुप्ता मैडम प्रधानाचार्या जी  के कक्ष में उन्हें सूचित करने के लिए चली गयी। प्रधानाचार्य बहुत ही शालीन एवं अनुभवी महिला थी। वे बच्चों से बहुत स्नेह रखती थी। उन्होंने कक्षा अध्यापिका से उपस्थिति रजिस्टर लेकर आने को कहा। रजिस्टर में से बच्चों के फोन नंबर देख कर उनके अविभावकों को तुरंत स्कूल आने के लिए कहा। 

दोनों के मातापिता घबराए से थोड़ी देर में ही स्कूल आ गए। सारी बात बता कर उन्हें बच्चों के बैग दिखाए। बैग में उन दोनों की स्कूल की वर्दी तह करके रखी हुई थी। यह देख कर तो उनके पैरों के नीचे से ज़मीन  निकल गयी। इस समय तक स्कूल की छुट्टी का समय भी हो चुका था।  

मीनू की मां तो रोय ही जा रही थी और सारा दोष स्कूल का बता रही थी। बार बार समझाने पर भी वह समझने को तैयार ही नहीं थी। चौकीदार को भी बुला कर पूछताछ कर ली गयी थी। पुलिस में शिकायत लिखवाने की सोच ही रहे थे कि एक बच्चा हांफता हुआ आया और बोला की मीनू और गीता कक्षा में आ गयी हैं। यह सुन कर सब सकते में आ गए। 

गुप्ता मैडम उन बच्चों को साथ ले प्रधानाचार्य जी के कक्ष की ओर ही आ रहीं थी। मीनू और गीता अपने माता पिता को प्रधानाचार्य जी  के कक्ष में देख कर बहुत घबरा गईं  और रोने लगी और बार बार माफ़ी मांगने लगी।  मीनू और गीता दोनों ने ही जींस और शर्ट पहन रखी थी। 

दोनों के माता पिता यह देख कर हैरान थे।  दोनों के माता पिता शर्म के मारे सर झुकाए खड़े थे मानो उनके  मुंह में जुबान ही न हो। आज अपने बच्चों की इस हरकत ने उन्हें कहीं का न छोड़ा था। जैसे तैसे अपना पेट काट कर इन बच्चों को वे स्कूल भेजते थे ।  मीनू की मां ने तो वहीँ उसे मारना भी शुरू कर दिया।

मैडम ने उन्हें बड़े प्यार से कहा कि सच सच बताओ, तुम कहां गईं थी। इस पर उन्होंने धीरे धीरे बताना शुरू किया कि वे घर से स्कूल की वर्दी के नीचे दूसरे कपडे पहन कर आयी थी और आधी छुट्टी के समय टॉयलेट में जाकर कपड़े बदल लिए थे। फिर वे पीछे की दीवार फांद कर स्कूल से बाहर चली गयी थी। उसके बाद वे दोनों अपने दोस्तों के साथ माल में घूमने चली गयी थी। उन्होंने सोचा था कि इतने बच्चों में किसी का ध्यान उनकी तरफ नहीं जायेगा और वे छुट्टी से पहले ही स्कूल वापस आ जायेंगी। 

मैडम ने बच्चों को बाहर जाने के लिए कहा और दोनों के माता पिता को समझाना शुरू किया। बच्चे  इस उम्र में अक्सर दुनिया की चकाचौंध से बहक जाते हैं।  हमें उन्हें प्यार से समझाना होगा।  गुस्से से वे और ज्यादा बिगड़ जाते हैं। बच्चों  को हमें अधिक समय देने की आवश्यकता है, उनके साथ बात कर उनके दिल की बात को समझें और उन्हें भले बुरे के बारे में समझाएं।

दोनों के मां बाप भी अब सहज हो रहे थे। एक बहुत बड़ी दुर्घटना होते होते बची थी। मैडम ने मीनू और गीता को कमरे में बुलाया और अपने गलती के लिए सबसे माफ़ी मांगने के लिए कहा। मीनू की मां तो मैडम के पैरों में ही गिर गयी और माफ़ी मांगने लगी। सभी की आंखें नम हो रही थी। आज कोई बहुत बड़ी दुर्घटना होते होते बची थी। 

वे बच्चे अगर गलत हाथों में पड़ जाते तो क्या होता? कई ऐसे गिरोह आजकल हैं जो बच्चों को बहला फुसला कर ले जाते हैं और फिर गलत काम करते हैं।  भीख भी मंगवाते हैं, भूखा रखते हैं और मारते भी हैं। आज की भाग-दौड़ की दुनिया में बच्चे मनोरंजंन के नाम पर किसी भी हद तक जा सकते हैं।

बच्चों को चाहिए कि अपने बड़ों से छुपा कर कोई भी काम न करें। ज़रूरत है परिवारों में आपसी समझ और विश्वास की। मीनू और गीता को अपनी गलती का पश्चाताप हो रहा था। उन्होंने अपने माता पिता व मैडम से क्षमा मांगी और चुपचाप प्रधानाचार्या के कार्यालय  से बाहर निकल गईं । 

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