हर 10 में से 7 महिला को 50 की उम्र के बाद घुटनों का ऑस्टियो- आर्थराइटिस हो ही जाता है। ऐसा हम नहीं डॉक्टर और रिसर्च बताते हैं। इस समस्या से बचने के लिए जरूरी है कि आप अपनी लाइफस्टाइल और डाइट में बदलाव लाएं और समय रहते ही सचेत हो जाएं। घुटनों से जुड़ी समस्या बुजुर्गों में एक बेहद आम बात है। घुटनों में क्रॉनिक दर्द डिसेबिलिटी और रोजाना की जिंदगी में एक्टिविटीज करने में समस्या लेकर आता है। हममें से अधिकतर लोग यह जानते हैं कि घुटने का जोड़ ही हमारे शरीर के अधिकतर वजन को सहन करता है। इसलिए स्पोर्ट्स या रोजाना की एक्टिविटीज में शरीर के इसी हिस्से पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है। घुटनों के जोड़ के ऑस्टियो- आर्थराइटिस होने का सबसे ज्यादा खतरा महिलाओं को रहता है।
महिलाओं में ऑस्टियो- आर्थराइटिस होने के कारण

मोटापा, एक्सरसाइज की कमी, खराब मसल मास और पर्याप्त पोषण न मिलने से हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। इससे महिलाओं में ऑस्टियो- आर्थराइटिस होने का जोखिम भी बढ़ जाता है। मेनोपॉज के बाद महिलाओं का वजन तेजी से बढ़ता है जिससे घुटने सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। एशियन पॉपुलेशन में ऑस्टियो- आर्थराइटिस काफी देखने को मिलता है, जिसकी एक वजह अनुवांशिक भी है।
महिलाओं में ऑस्टियो- आर्थराइटिस ज्यादा क्यों?

इस बीमारी के बारे में जानकारी की कमी और डॉक्टर से सलाह लेनी मे देरी करने के कारण यह रोग जड़ पकड़ लेता है। बाद में इनमें से लगभग 60 से 70 प्रतिशत महिलाएं अपने घुटनों के एडवांस ऑस्टियो- आर्थराइटिस के साथ डॉक्टर के पास जाती हैं। साथ ही कई महिलाएं फिजिकल एक्टिविटी न करने की वजह से भी इस बीमारी की शिकार हो जाती हैं।
ऑस्टियो- आर्थराइटिस से बचाव के लिए लाइफस्टाइल में बदलाव

हेल्दी वेट बनाए रखना, नियमित तौर पर एक्सरसाइज करना, चोट से बचना, अपने ब्लड शुगर लेवल को मैनेज करके इस बीमारी से बच सकती हैं।
ऑस्टियो- आर्थराइटिस से बचने के लिए आपकी डाइट

दूध के तौर पर सही मात्रा में कैल्शियम, अंडे, हरी पत्तेदार सब्जियों और ताजे फलों के सेवन के साथ धूप में बैठना (विटामिन डी के लिए) बहुत मदद करता है।
ऑस्टियो- आर्थराइटिस का इलाज

अगर ऑस्टियो- आर्थराइटिस का शुरुआती दौर है, तो इसे हाइलूरॉनिक एसिड के इंट्रा- आर्टिकुलर इंजेक्शन और जोड़ को ल्यूब्रिकेट करने के लिए फिजियो थेरेपी और दवाइयों से मैनेज किया जा सकता है। एडवांस्ड ऑस्टियो- आर्थराइटिस को आंशिक या टोटल नी रिप्लेसमेंट की जरूरत पड़ती है। टोटल नी रिप्लेसमेंट में घिसी और खराब हड्डियों को अलॉय से रिप्लेस किया जाता है और पॉलि एथीलीन स्पेसर को बीच में रखा जाता है।
इस प्रक्रिया में रोगी को छोटे से चीरे की वजह से खून का रिसाव कम होता है। ऐसे में मरीज सर्जरी के पहले दिन ही चलने लग जाता है। इसमें टांके को हटाने की कोई जरूरत नहीं पड़ती। यह सर्जरी जीवन भर चल सकती है।
(फरीदाबाद के एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइन्सेज के सीनियर कन्सल्टेन्ट और ऑर्थोपेडिक्स के हेड डॉ. मृणाल शर्मा से बातचीत पर आधारित)
