Lactose Intolerance: केस स्टडी- 4 साल का अमन दूध नहीं पी पाता था। दूध या दही खाने के एक-आध घंटे के बाद उसके पेट में दर्द, ऐंठन होने लगती थी, उसे दस्त लग जाते थे या उल्टियां आने लगती थी, स्किन में जलन होने लगती थी, पूरे शरीर पर छोटे-छोटे लाल दाने उभरना, सांस लेने में दिक्कत होने लगती थी। उसके पेरेंट्स अमन को उसके बाल रोग विशेषज्ञ के पास लेकर गए जिन्होंने उसेे मिल्क एलर्जी का अंदेशा होने पर आहार विशेषज्ञ डाॅक्टर के पास भेज दिया। आहार विशेषज्ञ डाॅक्टर उसकी स्किन का निरीक्षण किया और उसे ब्लड टेस्ट कराने के लिए कहा। जिससे पता चला कि अमन को मिल्क एलर्जी ही है। उसके पेरेंट्स को सख्त हिदायत दी कि वे अमन को गाय, भैंस या किसी भी तरह का पशुजन्य दूध और दूसरे डेयरी प्रोडक्ट न दें। इसके बजाय केवल आलमंड, सोया या कोकोनट मिल्क और इनसे बने प्रोडक्ट दें ताकि उसे किसी तरह की कमी न हो। हालांकि शुरू में अमन को ये मिल्क पसंद नहीं आए, लेकिन धीरे-धीरे वो इनका आदी हो गया और अब वह हैल्दी लाइफ बिता रहा है।
अमूमन हमारे समुचित विकास और अच्छे स्वास्थ्य के लिए दूध अमृत तुल्य है। वैज्ञानिकों ने तो पौष्टिक तत्वों से भरपूर दूध को संतुलित और संपूर्ण आहार का दर्जा भी दिया है। लेकिन कभी-कभी हमारे शरीर के इम्यून सिस्टम में गड़बड़ी या पैदाइशी प्रकृति होने के कारण यही दूध पच नहीं पाता और परेशानी का सबब बन जाता है। यहां तक कि नित्य प्रति होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को देखते हुए दूध का सेवन पूर्णतया बंद भी करना पड़ता है। मेडिकल टर्म में इस स्थिति को मिल्क एलर्जी या लैक्टोज इंटॉलरेंस डिजीज कहते हैं। लैक्टोज इंटॉलरेंस डिजीज किसी भी उम्र में हो सकती है। यहां तक कि बहुत छोटे बच्चों में भी यह एलर्जी देखी जा सकती है। बड़ों में पेट की गड़बड़ी या किसी सर्जरी के बाद मिल्क एलर्जी हो सकती है।
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क्या है लैक्टोज इंटॉलरेंस

मिल्क एलर्जी वास्तव में आॅटो इम्यून डिस्आर्डर है जिसे लैक्टोज इंटॉलरेंस डिजीज भी कहा जाता है। यह आमतौर पर पशुजन्य दूध से होती है जिसमें लैक्टोज शूगर और अल्फा-एस 1-कैसिइन प्रोटीन मौजूद होता है। पाचन तंत्र में लैक्टेज एंजाइम की कमी होने के कारण दूध में मौजूद शूगर और प्रोटीन को शरीर पचा नहीं पाता। यह प्रोटीन इम्युनोग्लोबुलिन ई (आईजीई) एंटीबाॅडी प्रोटीन का हिस्सा हैं जो हमारी छोटी आंत में अवशोषित होने के बजाय उसे नुकसान पहुंचाते हैं। अवशोषित न हो पाने के कारण दूध छोटी आंत से बड़ी आंत में जमा होने लगता है। इम्यून सिस्टम को लगता है कि दूध का प्रोटीन शरीर के लिए हानिकारक है जिसकी वजह से सिस्टम डेयरी मिल्क या डेयरी दुग्ध उत्पाद लेने के बाद प्रतिक्रिया करने लगता है। एसिड और गैस बनने लगती है जिसका असर पूरे शरीर पर देखने को मिलता है।
लैक्टोज इंटॉलरेंस के प्रकार

लैक्टोज इंटॉलरेंस आमतौर पर दो तरह का होता है-
प्राइमरी लैक्टोज इंटॉलरेंस: जो कुछ समय के लिए ही होता है। यानी दूध पीने के बाद व्यक्ति को दस्त काफी दिन तक रहते हैं। इससे व्यक्ति के पेट की लाइनिंग फट जाती है। इसमें प्रोबायोटिक्स दिए जाते हैं, दूध का सेवन करने के लिए मना किया जाता है। नाॅर्मल होने पर दुबारा शुरू किया जा सकता है।
सैकेंडरी लैक्टोज इंटॉलरेंस: जिसमें प्रभावित मरीज पूरी जिंदगी पशुजन्य दूध या दुग्ध उत्पाद नहीं ले पाता।
क्या है लक्षण
- शरीर पर रैशेज पड़ना।
- सफेद रंग के बड़े-बड़े चकत्ते पड़ना।
- पेट फूलना, दर्द होना।
- उल्टी, दस्त होना।
- मल में खून आना।
कैसे होता है डायग्नोज
दूध पीने या दुग्ध उत्पाद खाने के बाद व्यक्ति में इस तरह के लक्षण दिखाई दें और एकाध दिन में कंट्रोल न हो पाएं, तो उन्हें तुरंत डाॅक्टर को संपर्क करना चाहिए। डाॅक्टर आईजीई एंटीबाॅडी टेस्ट करके पता लगाया जाता है। इसके लिए ब्लड टेस्ट और स्किन प्रिक टेस्ट किए जाते हैं। छोटे बच्चों में लैक्टोज इंटॉलरेंस का पता लगाने के लिए स्टूल टेस्ट भी किया जाता है। स्टूल में पीएच और रिड्यूसिंग सब्सटेंस की जांच होती है।
क्या है उपचार

हालांकि इसका कोई नियत मेडिकल ट्रीटमेंट नहीं है, एलर्जी से छुटकारा पाने के लिए पीड़ित व्यक्ति को अपने खान-पान में एहतियात बरतनी पड़ती हैं। कई बार यह मिल्क एलर्जी जल्दी ठीक हो जाती है, तो कई मामलों में यह जिंदगी भर बनी रहती है।
अगर व्यक्ति को दूध पीने के बाद ये समस्याएं होती हैं, तो उन्हें पशुजन्य दूध और दुग्ध उत्पाद पूरे तौर पर छोड़ने पड़ते हैं। यहां तक कि चाॅकलेट, बिस्कुट, बेकरी प्रोडक्ट, फास्ट फूड भी अवायड करने पड़ते हैं क्योंकि इनमें दूध का इस्तेमाल किया जाता है। जरूरी है कि बाजार से चीजें खरीदते समय प्रोडक्ट के लेबल चैक करने चाहिए।
क्या है मिल्क सब्सीट्यूट्स
लैक्टोज इंटॉलरेंस डिजीज से पीड़ित व्यक्ति के लिए सोया, आलमंड, कोकोनेट जैसे सीड्स से बने मिल्क का सेवन बेस्ट आॅप्शन है। पौष्टिक तत्वों से भरपूर ये मिल्क शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, सुपाच्य भी होते हैं। बाजार में तो ये मिलते ही हैं, आप खुद भी आसानी से तैयार कर सकते हैं। इन्हें पानी में भिगोकर पानी के साथ मिक्सी में पीस लें और छान लें। इनसे आप दही, पनीर, चाय-काॅफी, खीर या दूसरे व्यंजन भी आसानी से बना सकते हैं।
इनके अलावा आप लेक्टोबेसिलस बैक्टीरिया से बने दही, पनीर, मक्खन जैसे आर्गेनिक प्रोबाॅयोटिक प्रोडक्ट्स ले सकते हैं। दूध का सेवन न कर पाने की स्थिति में शरीर में कैल्शियम की कमी को पूरा करने के लिए मरीज को कैल्शियम और विटामिन डी रिच आहार ज्यादा से ज्यादा देना जरूरी है जैसे- हरी पत्तेदार सब्जियां, नारियल पानी, सीड्स, ड्राई फ्रूूट्स, अंडा, मछली। बहुत छोटे बच्चों को उन्हें ब्रेस्ट मिल्क के अलावा आर्गेनिक प्रोबाॅयोटिक मिल्क पाउडर और उनसे बने व्यंजन दे सकते हैं।
(डाॅ रचना कटारिया, आहार विशेषज्ञ, दिल्ली)
