Dada dadi ki kahani : एक बत्तख अपने अंडों के ऊपर कई दिनों से बैठी हुई थी। अंडों को सेने के लिए हिले-डुले बिना बैठना पड़ता था। इसलिए वह बैठे-बैठे थक गई थी। लेकिन अपने प्यारे-प्यारे बच्चों को देखने के लिए वह कुछ भी कर सकती थी। इसलिए धैर्यपूर्वक बैठी हुई थी।
तभी उसे कुछ आवाज़ सुनाई दी, ‘कर्र र …. ‘ की आवाज़ के साथ उसका एक अंडा टूटा। बत्तख खुशी से नाचने लगी। एक सुंदर बच्चा बाहर आया। फिर दूसरा अंडा टूटा और दूसरा बच्चा बाहर आया, फिर तीसरा, फिर चौथा। बत्तख ने अपने बच्चों को प्यार से देखा। चारों बच्चे बहुत सुंदर थे। वह बोली, ‘चलो बच्चो, हमें अपने घर जाना है।’
तभी उसने देखा कि एक अंडा अभी तक खुला ही नहीं है। यह अंडा उसके बाकी सब अंडों से अलग दिखाई देता था। थोड़ा बड़ा भी था आकार में।
‘यह मेरे बाकी अंडों जैसा तो नहीं दिखाई देता।’ उसने मन में सोचा।
तभी ‘कर्र … र’ की आवाज़ के साथ वह आख़िरी अंडा भी टूटा और उसमें से भी एक छोटे से बच्चे ने सिर बाहर निकाला। बत्तख खुश हो रही थी कि अभी एक और प्यारा बच्चा बाहर निकलेगा। लेकिन ये बच्चा जब बाहर निकला तो बत्तख थोड़ी-सी निराश हो गई। यह बच्चा उसके बाकी बच्चों जैसा सफ़ेद और सुंदर नहीं था। देखने में भी यह थोड़ा बड़ा था।
लेकिन बत्तख को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। उसके मन में अपने पाँचों बच्चों के लिए बराबर प्यार था।
अपने पाँचों छोटे-छोटे बच्चों को लेकर वह उस फार्म हाउस में वापिस पहुँची, जहाँ उसका घर था। फार्म हाउस में सब उसका इंतज़ार कर रहे थे। बत्तख और उसके बच्चों को आता देखकर सब खुश हो गए।
बत्तख के चारों सुंदर बच्चों को सबने खूब प्यार किया। लेकिन उस पाँचवें बच्चों को सब कुरूप कहकर चिढ़ाने लगे। उस कुरूप बच्चे को कोई न तो प्यार करता था, न ही अपने साथ खेलने देता था। जैसे-जैसे वह बच्चा बड़ा होने लगा, उसे लगने लगा कि उसे कोई भी प्यार नहीं करता, क्योंकि वह बहुत बदसूरत है। एक दिन तो उसी के भाई ने उसके माथे पर ज़ोर से चोंच मारी। बहुत दर्द हुआ उसे। उसके माथे पर बिंदी जैसा निशान बन गया।
दुखी होकर उसने निश्चय किया कि वह घर छोड़कर चला जाएगा। वह चुपचाप चलता-चलता फार्म हाउस के पीछे वाली झील के किनारे आ गया। वहाँ कुछ और पक्षी रहते थे। उन्होंने बत्तख के कुरूप बच्चे का स्वागत किया। कुरूप बच्चा वहाँ रहने लगा।
शुरू-शुरू में उसको अकेले रहने में परेशानी हुई। लेकिन फिर धीरे-धीरे वह सीख गया। एक दिन उस झील में कुछ बहुत ही सुंदर पक्षी उड़कर आए। वे एकदम चमकदार सफ़ेद रंग के थे। लंबी गर्दन थी उनकी। पीले रंग की चोंच और काली आँखों वाले ये पक्षी अपने लंबे-लंबे और सफेद पंख फैलाकर उड़ सकते थे। ये हंस थे, जो बत्तखों के राजा माने जाते थे।
बच्चे ने उन्हें देखा तो मन-ही-मन सोचने लगा, ‘काश कि भगवान ने मुझे भी उन जैसा बनाया होता। लेकिन मैं इतना कुरूप हूँ कि चाहे जो भी कर लूँ, लेकिन इतना सुंदर कभी भी नहीं बन सकता।’ अपनी कुरूपता के बारे में सोचकर ही वह उदास हो जाता था। लेकिन वह जानता था कि वह कुछ नहीं कर सकता था। हंसों को देखकर उसने भी अपने पंख फैलाकर उड़ना चाहा, लेकिन वह उड़ नहीं पाया।
फिर सर्दियाँ आ गईं। झील का पानी ठंड से जमने लगा। सब पशु-पक्षी अपने घरों में जाकर छिप गए। लेकिन उस छोटे बच्चे का तो कोई घर था ही नहीं। उसको उस झील के ठंडे पानी में ही रहना पड़ता था। बड़ी मुश्किल से वह अपने चारों ओर के पानी को जमने से न रोक पाता था। इसके लिए उसे लगातार अपने पंख चलाते रहने पड़ते थे। जब थक जाता था तो थोड़ी देर सो जाता था। बड़ी मुश्किलों से सर्दियों का मौसम बीता।
फिर बसंत ऋतु आई।
चारों ओर हरियाली थी। फूल खिल रहे थे। पशु-पक्षी अपने घरों से निकल आए थे।
बत्तख के उस कुरूप बच्चे ने महसूस किया कि इन कुछ महीनों में वह भी काफी बड़ा हो गया है, उसकी गर्दन लंबी हो गई थी। उसके पंख भी बड़े-बड़े हो गए थे।
झील का पानी जब पिघलने लगा तो उसने अपनी परछाई पानी में देखी। उसने देखा कि वह काफ़ी कुछ उन सुंदर हंसों जैसा दिखाई दे रहा था, जो कभी-कभी वहाँ आते थे। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ।
‘मैं हमेशा उन हंसों के बारे में ही सोचता रहता हूँ न, इसीलिए मुझे वही दिखाई दे रहा है। लगता है मैं पागल हो गया हूँ। मुझ जैसा कुरूप बच्चा कभी सुंदर बन सकता है क्या?’ उसने मन में सोचा।
फिर उसने अपने पंख फैलाए और अपने-आपको हवा में उठाने की कोशिश की।
और ये क्या! उसने उसे कर दिखाया, वह ऊपर उठने लगा। धीरे-धीरे वह पेड़ों जितना ऊपर उठ गया। वह उड़ सकता था। उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
उसका मन हुआ कि जाकर एक बार अपनी माँ और भाई-बहनों को देखा जाए।
‘मैं उन्हें दूर से देखकर ही वापिस आ जाऊँगा।’ उसने सोचा। उड़कर वह फार्म हाउस के अंदर पहुँच गया। उसने देखा कि उसके भाई-बहन भी बड़े हो गए थे। तभी उसके एक भाई ने उसे देख लिया। यह वही भाई था, जिसने उसे अपनी चोंच मारी था। वह चिल्लाया, ‘यह देखो, कितना सुंदर पक्षी है। लगता है यह कोई हंस है!!’
उसके साथ सभी ने ऊपर की ओर देखा तो बस देखते ही रह गए। इतना सुंदर पक्षी उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था। अपनी तारीफ़ सुनकर कुरूप बच्चे को विश्वास नहीं हुआ। वह हिम्मत करके नीचे उतरा। सबने उसे घेर लिया।
सब उसे छू-छूकर देख रहे थे। उन्होंने राजहंसों के बारे में सुना ज़रूर था, लेकिन कभी देखा नहीं था। तभी उसके भाई ने उसके माथे पर चोट का वह निशान देखा। वह तुरंत समझ गया कि यह उनका खोया हुआ कुरूप भाई है। उसने सबको बताया, ‘अरे, ये तो अपना कुरूप भाई है, देखो …. ध्यान से देखो ….।’
सबकी आँखें खुली-की-खुली रह गईं। वह कुरूप बच्चा इतना सुंदर बन जाएगा, उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था।
माँ बत्तख दौड़कर आई और उसने अपने खोए हुए बच्चे को बहुत प्यार किया। उसे गर्व था कि वह एक सुंदर राजहंस की माँ है।
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