भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
रोज चिम्पांजी और उसकी पत्नी विनी निऑन वन में रहते थे। उनके घर के बाहर एक छोटा-सा बगीचा था, जिसमें आम, केले तथा आवोकॉडो के पेड़ थे। आम के पेड़ पर बड़े-बड़े मीठे और रसीले आम लगे हुए थे। केले के पेड़ों पर केलों के बड़े-बड़े गुच्छे भी…परन्तु अब दोनों बूढ़े और कमजोर हो रहे थे, इसलिए वे पेड़ों पर चढ़कर फल नहीं तोड़ पाते थे।
रोज ने आज अपनी मित्र रौनी बत्तख से कुछ अण्डे मांगे थे। साथ में वह कुछ मशरूम भी ढूंढ लाया था।
उसने विनी से कहा “प्यारी विनी, मुझे बहुत जोरों की भूख लगी है। ये लो ढेर सारे अंडे और मशरूम… तुम मेरे लिए आमलेट बना दो।
“ऑमलेट…” विनी चिल्लाई “रोज, तुम बहुत लालची होते जा रहे हो। ज्यों-ज्यों तुम्हारी उम्र बढ़ रही है, तुम शाक-फल-सब्जियां छोड़कर अण्डे खाने पर जोर दे रहे हो… तुम्हें समझना चाहिये रोज! यह हमारा भोजन नहीं है। …और फिर अभी पिछले महीने ही तो हमने आमलेट बनाया और खाया था। आज फिर से…!”
“तुम्हें पता है विनी, मैंने कल से कुछ नहीं खाया है। मुझे सचमुच बहुत भूख लगी है। खाने के लिए कुछ और है भी तो नहीं, इसलिए आज…” रोज ने विनी से फिर कहा तो विनी बड़बड़ाई “भूख तो मुझे भी बहुत लगी है…परन्तु हां रोज, जलावन वाली लकड़ी यानि ईंधन भी लगभग ख़त्म हो रहा है। मुझे भोजन पकाने के लिए उसकी आवश्यकता है। पहले जाकर तुम लकड़ी लेकर आओ।”
“नहीं विनी, मुझे सच में जोरों की भूख लगी है, तुम पहले मेरे लिए आमलेट बना दो। मैं कुछ खाकर ही लकड़ी लेने जाऊंगा।” रोज ने विरोध किया तो विनी ने मीठी आवाज में कहा- “रोज लकड़ी काफी कम है। तुम जाकर लकड़ी ले आओ, तब तक मैं ऑमलेट बनाकर तैयार रखूंगी।”
अनमना-सा रोज जंगल के अन्दर जाकर लकड़ी इकट्ठी करने लगा। वह भूखा तो था ही, उसे आलस भी आ रहा था। तभी बोबो भालू वहां आ गया। “अरे ओ चिम्पू दादा… आप क्या कर रहे हैं?” बोबो ने पूछा।
“हूं देख तो रहे हो कि ईंधन इकट्ठा कर रहा हूं। लकड़ी ले जाऊंगा, तो मेरी पत्नी मेरे लिए आमलेट पकाएगी।”
“अच्छा…! क्या चिम्पी दादी थोड़ा आमलेट मुझे भी देगी।”
“कौन विनी…? अ… शायद हां, अगर तुम कुछ लकड़ी जमा करने में मेरी मदद करोगे तो…” बूढ़े चिम्पांजी ने कुछ सोचकर, उसे लालच दिया।
“ठीक है रोज दादा, आप घर जाकर दादी को कहो कि वह मेरे लिए बहुत सारे आमलेट बनाकर रखे। मैं बहुत सारी लकड़ियां लेकर आता हूं।” बोबो ने कहा, तो अपनी जमा की हुई लकड़ियों का गट्ठा उठाकर रोज गुनगुनाता हुआ अपने झोंपड़े में लौट आया।
“बस इतनी-सी लकड़ियां…” विनी चिल्लाई तो रोज ने उसे बताया “अरे मेरी प्यारी पत्नी, तुम फिक्र मत करो और जरा सब्र रखो। वो असल में, आज जंगल में भालू-शावक बोबो मिल गया। उसने कहा है कि वह हमारे लिए बहुत सारी लकड़ियां लेकर आएगा। शायद इतनी कि जो पूरी बरसात तक चल जाएंगी। इसलिए मैं वापस चला आया।”
“पर हां, उसके लिए भी बहुत सारे आमलेट बना कर रखना। आकर वह भी खाएगा।” रसोईघर के सामने पड़े बड़े पत्थर पर बैठते हुए रोज ने विनी को चेताया।
“ओह ऐसा, हूं…” कहकर विनी ने ढेर सारे बड़े-बड़े आमलेट बनाकर एक बहुत बड़े बरतन में रख दिए, फिर कहने लगी- “सुनिए तो जरा, ये जो भालू होते हैं न, ये तो बहुत पेटू होते हैं। उन्हें खाने को जितना भी दे दो, उनके लिए हमेशा कम ही पड़ता है। अगर हमने सारे आमलेट उसके सामने रखे तो हो सकता है कि वह सारे के सारे आमलेट चट कर जाए। इसलिए चलो, उसके यहां आने से पहले हम अपने हिस्से के आमलेट खा लेते हैं।”
“हां, यह ठीक रहेगा… और वे आमलेट वाला बरतन बीच में रखकर खाने के लिए जमीन पर बैठ गए।”
“अरे विनी तुम धीरे-धीरे खाओ। ऐसे तो तुम सारे आमलेट खत्म कर डालोगी। हमें कुछ बोबो के लिए भी बचाने हैं।” रोज ने गप-गप करके आमलेट खाती विनी को टोका।
“आमलेट बहुत स्वादिष्ट बने हैं न रोज…
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
