चबूतरे पर खड़े बड़े ठाकुर दातुन कर रहे थे। सामने से वैदराज को लपकते हुए आता देख चौंक पड़े। ‘बात क्या है वैदराज?’ ‘गजब…गजब हो गया ठाकुर…नैनी सैन्ट्रल जेल, बम के धमाकों से तहस-नहस हो गया और….और आपका राज….जेल से निकल भागा….।’ अपना पराया नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक […]
Author Archives: कुशवाहा कान्त
अपना पराया भाग-33
जेल में एकाएक चुस्ती-सी नजर आने लगी। राज ने चौंककर अपनी तनहाई की कोठरी के जंगले की ओर देखा—देखकर उसकी भवों पर बल पड़ गए। जेलर के साथ, क्रांतिकारियों का जानी दुश्मन डी. काक फौजी चुस्ती से चला आ रहा था। ‘मिस्टर राज!’ अपना पराया नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर […]
अपना पराया भाग-32
ठाकुर ने दिल भर न कुछ खाया, न पिया। उनकी आंखों में न जाने कहां की करुणा साकार हो उठी थी। ठाकुर का पहाड़ सा शरीर एक दिन में ही मुरझा गया था। आंखों के चारों और झुर्रियां पड़ गईं थीं। वे बैठक में व्यग्रता से टहलते रहे। एक क्षण के लिए भी गद्दी पर […]
अपना पराया भाग-31
जोगीबीर की दरी का पहाड़ी भाग आज कई सौ सशस्त्र पुलिस के जवानों से भर गया है। अंग्रेज पुलिस-सुपरिण्टेंडेंट भी साथ हैं, डी. काक है उसका नाम! सफेद कपड़ा पहने हुए एक खुफिया भी है साथ। ‘किधर है, वह झोंपड़ी जिसमें वह फरार कैदी छिपा है?’ डी. काक ने पूछा उस खुफिया से। अपना पराया […]
अपना पराया भाग-30
दूसरे दिन प्रातःकाल विचित्र रोगी के रूप में राज ने वैदराज के घर में प्रवेश किया। ‘कई दिनों के बाद दिखाई पड़े, राज! कहां थे?’ वैदराज ने पूछा। ‘शहर चला गया था, आलोक से अकस्मात् मुलाकात हो गईं थी। ‘छोटे ठाकुर मिले थे—?’ अपना पराया नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर […]
अपना पराया भाग-29
भीखम ने बाहर से लौटकर पूछा—‘छोटे ठाकुर कहां गए, बिटिया?’ ‘सिनेमा गए हैं, काका!’ ‘भला सिनेमा का तीसरा शो देखना क्या अच्छा है? व्यर्थ में नींद खराब होती है।’ भीखम ने कहा। उसी समय किसी ने दरवाजा खटखटाया। अपना पराया नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- भाग-1 ‘मालूम होता है […]
अपना पराया भाग-28
भीखम और घटा अभी-अभी खाना खाकर लेटे ही थे कि दरवाजे पर खटखटाहट की आवाज आई। भीखम बोला—‘देख तो बिटिया कौन आया है इस आधी रात को?’ घटा ने आकर दरवाजा खोला। अपना पराया नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- भाग-1 हाथ के लालटेन के प्रकाश में आगन्तुक को देखते […]
अपना पराया भाग-27
दूसरे दिन तीन बजे आलोक बम्बई पहुंच गया। मित्र उसे देखकर बहुत प्रसन्न हुए, पर आलोक का कलेजा धड़क रहा था। नीनी से मिलने के लिए उसका मन आतुर हो रहा था। शाम का खाना खाकर सब लोग घूमने के लिए निकल पड़े। सिर, फिरोजशाह मेहता रोड पर, उस जगह पर आए, जहां करीम जी […]
अपना पराया भाग-26
यद्यपि आलोक की हार्दिक इच्छा घर जाने की न थी, फिर भी औरों की देखा-देखी उसने भी छुट्टी के लिए अर्जी दे दी। आश्चर्य! कि औरों की अर्जी नामंजूर हो गईं, परंतु आलोक को इक्कीस दिन की छुट्टी मिल गईं। फ़्री रेलवे पास भी मिल गया। अपना पराया नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए […]
अपना पराया भाग-25
आधी रात की नीरवता को एक उलूक की कर्कश आवाज ने भंग कर दिया। ठाकुर की हवेली के मुख्य-द्वार से कुछ दूरी पर छिपा हुआ राज सतर्क हो गया। इस समय उसके शरीर पर चुस्त कपड़े थे। सिर नंगा था, पर मुखाकृति का आधा भाग एक कपड़े के टुकड़े से ढका हुआ था, जिससे वह […]