नीता एक मध्यवर्गीय परिवार की बहू है, घर में पति नीलेश, सास-ससुर और अपने दो बच्चों के साथ मगन रहती, नीलेश एक सरकारी कार्यालय में अधिकारी हैं एवं अपने सामान्य से जीवन से बेहद संतुष्ट हैं। यूं तो नीता को भी किसी से कोई शिकायत नहीं बस कभी-कभी पति नीलेश का अपने प्रति उदासीन रवैया उसके मन को कचोटता है।
दरअसल नीता को शुरु से ही लिखने का शौक था। स्कूल-कॉलेज की पत्रिकाओं में उसके लेख व कविताएँ छपती थीं, पर विवाह के पश्चात जब नीता ने नीलेश को अपनी इस प्रतिभा के बारे में बताया तो उन्होंने नीता को कोई प्रोत्साहन नहीं दिया।“घर में इतना काम होता है। काम से फ्री होकर आराम किया करो, क्या लिखने-विखने में टाइम खराब करोगी।“ नीता का मन बुझ गया और उसकी उभरती प्रतिभा गृहस्थी के बोझ तले दब गई।
बच्चों की गर्मियों की छुट्टियां हुई और नीता को कुछ फुरसत मिली तो उसने एक स्थानीय पत्र में अपना एक लेख भेज दिया। जो छप गया और परिचितों से प्रशंसा भी मिली। प्रशंसा पाकर नीता की सोई प्रतिभी जाग उठी।और उसके लेख और कहानियां निरंतर पत्र पत्रिकाओं में छपने लगी। अब जब परिचित मिलते तो उसके लेखों और कहानियों कीप्रशंसा होती। उसके पति के सामने भी उसके लेखों का जिक्र होता परन्तु नीलेश कभी कुछ नहीं कहते। नीता को यह अहसास चुभता पर नीलेश की साहित्य में रुचि नहीं यह सोचकर मन को समझा लेती।
एक दिन जब नीता-नीलेश के घर उनकी 15वीं विवाह वर्षगांठ के अवसर पर मेहमान एकत्रित थे। जिनमें नीलेख के कार्यालय के मित्र, उनके परिचित व नीता के कुछ रिश्तेदार सपरिवार उपस्थित थे, अचानक नीता के लेखों व कहानियों की बात चली तो नीलेश के मित्र कहने लगे,“नीता जी बहुत बढ़िया लिखती हैं, बढ़िया खाना बनाती हैं व जिस तरह से घर संभालती हैं, बहुत ही सुघड़ बहू भी है, यानी नीता जी का तो बहुत कुछ अच्छा है।
नीलेश एकदम बोले,“मेरी पत्नी इतनी अच्छी हैं और क्या अच्छा चाहिए मुझे?”
इतने सरल शब्दों में अपनी इतनी तारीफ सुनकर नीता का हृदय द्रवित हो उठा। नीलेश की सरल सी स्वीकारोक्ति ने मानो उसे भरी सभा में पुरस्कृत कर दिया और उनके द्वारा उसकी प्रतिभा का सम्मान न करने की कसक उसके हृदय से हमेशा के लिए निकल गयी।
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