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Indian Air Force Day

Summary: सपनों से आसमान तक: पद्मा बंदोपाध्याय की अनोखी उड़ान

डॉ. पदमा बंधोपाघ्याय की कहानी हमे बताती है कि अगर सपनों को पूरा करने का जुनून और मेहनत हो, तो समाज और परिस्थितियों की कोई भी बाधा रास्ता नहीं रोक सकती।

Padma Bandopadhyay: भारतीय वायुसेना की स्थापना 8 अक्टूबर 1932 को हुई थी। यही कारण है कि हर साल 8 अक्टूबर का दिन इंडियन एयरफोर्स डे के तौर पर सेलिब्रेट किया जाता है। ऐसे में इस मौके पर हम आपको इंडियन एयरफोर्स से जुड़ी एक ऐसी महिला के बारे में बता रहे हैं जिन्हें देश की पहली महिला एयर वाइस मार्शल बनने का गौरव हासिल है। यह महिला हैं डॉक्टर पद्मा बंदोपाध्याय जिन्होंने अपने दौर की लड़कियों से आगे कुछ अलग सपने देखे और उन्हें पूरा करने की एक जिद ठान ली।

आजादी से पहले जन्म लेने वाली पद्मा बंदोपाध्याय के दौर की लड़कियां अव्वल तो पढ़ती ही नहीं थीं और अगर वे पढ़ती भी थीं तो आर्ट्स ही उनकी चॉइस और उनका ऑप्शन होता था। लेकिन बचपन से ही पढ़ने में मेधावी पद्मा ने आर्ट्स की जगह साइंस को चुना। तो क्या हुआ कि दिल्ली के गोल मार्केट में रहने वाली पद्मा को इसके लिए दूर जाना पड़ा क्योंकि घर के पास वाले स्कूल में यह ऑप्शन नहीं था।

बचपन से ही बनना चाहती थीं डॉक्टर

वो बचपन से ही डॉक्टर बनना चाहती थीं क्योंकि उन्होंने अपनी मां को बहुत बीमार देखा था। इसके अलावा उनके पड़ोस में भारत की पहली महिला कार्डियालॉजिस्ट डॉ. एस पद्मावती रहती थीं। अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि वे पद्मावती की पर्सनेलिटी से बहुत प्रभावित थीं। बचपन में उन्हें इस बात की भी बहुत खुशी होती थी कि डॉक्टर पद्मावती और उनका नाम मिलता जुलता है।

लेकिन सिर्फ सपने देखने से ही कुछ नहीं होता, जब आप कुछ अलग करते हों तो दुनिया में कोई आपका साथ नहीं देता। पद्मा के साथ भी ऐसा ही हुआ। जब वो प्री मेडिकल के लिए कॉलेज में एडमिशन लेना चाहती थीं तो कम उम्र होने की वजह से उन्हें एडमिशन नहीं मिल रहा था। उनके पिता जानते थे कि बेटी के सपने क्या हैं। वो बहुत से कॉलेजों में गए और विनती कि उनकी बेटी को एडमिशन दे दिया जाए वो मैनेज कर लेगी। आखिर दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से उन्होंने साइंस में अपना प्रीमेडिकल किया और फिर सपनों को मंजिल मिलती चली गई।

चुना वायुसेना का विकल्प

किरोड़ीमल से प्री मेडिकल पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने 1962 में पुणे में आर्म्ड फोर्स मेडिकल कॉलेज में आवेदन किया। लेकिन इसके दूसरे बैच में उन्होंने एडमिशन लिया। इसकी वजह थी कि उनके पेरेंट्स घर से इतनी दूर कॉलेज में पढने के के लिए भेजने के पक्ष में नहीं थे। अगले साल उन्होंने अपने माता-पिता को मना लिया। 1968 में एएफएमसी में अपना कोर्स पूरा करने के बाद उन्होंने वायु सेना में सेवा करने का विकल्प चुना। इसके बाद उन्हें एयर फोर्स हॉस्पिटल, बैंगलोर में इंटर्नशिप करने के लिए कहा गया, जहां उनकी मुलाकात फ्लाइट लेफ्टिनेंट सतीनाथ बंदोपाध्याय (एक प्रशासनिक अधिकारी) से हुई, जो बाद में उनके पति बने।

आप को तैयार रहना होता है

अपने एक इंटरव्यू में वो बताती हैं कि मैंने जब वायुसेना को जॉइन किया था तो आसानी नहीं थी। मैंने बहुत बाधाओं का सामना किया। इस सर्विस में रोमांच है लेकिन यह सर्विस आपसे बहुत समर्पण मांगती है। आपको इसके लिए तैयार भी रहना होता है। उन्होंने चार दशक तक इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं दी हैं। अपनी सेवाओं के लिए उन्हें कई पुरुस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। इसमें पद्मश्री भी शामिल है।

अपनी इन उपलब्धियों के इतर डाॅ. पद्मा भारत के एयरोस्पेस मेडिकल सोसायटी की पहली महिला अधिकारी हैं। वे नॉर्थ पोल में वैज्ञानिक अनुसंधान करने वाली पहली भारतीय महिला हैं। उनकी एक और उपलब्धि यह है कि वह भी रक्षा सेवा स्टाफ कॉलेज कोर्स पूरा करने वाली पहली महिला अधिकारी हैं। फिलहाल वे ग्रेटर नोएडा में रिटायर लाइफ जी रही हैं। लेकिन समाज सेवा करने में वो आगे हैं। वे गर्ल एजुकेशन पर काम कर रही हैं। वे एक एनजीओ से जुड़ी हैं।