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bhootnath by devkinandan khatri

जमानिया में इस बात की धूम मची हुई थी कि दारोगा साहब सरे बाजार चौमुहानी पर बेहोश पाये गये, उनका मुँह काला था और दाहिना कान कटा हुआ था, गले में जूतों का हार था तथा बदन पर भी कई जगह तलवार के जख्म लगे हुए थे।

इस खबर से उनके दोस्त डर गये और दुश्मनों के चेहरों पर हँसी दिखाई दे रही थी। आदमियों के झुंड-के-झुंड उनकी अवस्था देखने के लिए चले जा रहे थे और जो देखता था वही खुश होता था। प्राय: सौ में नब्बे यही कहते थे कि ‘बहुत अच्छा हुआ, ऐसों की ऐसी ही सजा होनी चाहिए’!

भूतनाथ नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- भाग-1

यहाँ के राजा साहब सीधे-सादे रहमदिल और धर्मात्मा थे सही मगर बिलकुल ही बेपेंदी के लोटा थे। उनके आत्मीय मित्र और संबंधी लोग समय पड़ने पर जो कुछ उन्हें समझा देते थे वे उसी पर विश्वास कर लेते थे मगर जब कोई उसके विपरीत समझा देता तो वह पहिला खयाल उनके दिल से निकल जाता, अपनी राय कुछ भी कायम नहीं कर सकते थे, और इस सबब से भी उनकी रिआया में एक तरह की बेचैनी रहा करती थी और दारोगा की खूब चल बनी थी।

वह महाराज के नाक का बाल हो रहा था और महाराज समझते थे कि हमारा राज्य इसी दारोगा की बदौलत रौनक पर है। महाराज आसक्ति और आराम-पसन्द बहुत ज्यादा थे और दारोगा उनकी इस आदत को बढ़ाने के लिए हमेशा कोशिश किया करता था।

होश में आकर दारोगा ने तो अपना चेहरा साफ किया और न गले में से जूते का हार निकाला, उसी सूरत और हालत में सीधे महाराज की तरफ चला। खबर पाकर उसके कई नौकर-सिपाही भी वहाँ आ गये थे जिनकी जुबनी यह सुन कर कि महाराज का डेरा खासबाग में गया है वह भी खासबाग ही की तरफ रवाना हुआ।

जमानिया बाजार की चौमुहानी पर पहुँचा देने के पहिले दारोगा को भैया राजा होश में ले आए और आईने के जरिए से उसे बता दिया कि तेरी सूरत कैसी की गई है और यह भी कह दिया था कि इसी सूरत में तू जमानिया बाजार की चौमुहानी पर छोड़ा जाएगा जिसमें तमाम रिआया तेरी इस बेहूदी हालत को देखे, इसके बाद मैं बाई साहब के सामने पहुँचकर उसी जगह तुझसे बदला लूँगा! इसके बाद दारोगा को बहोश करके बाजार की चौमुहानी पर पहुँचा दिया गया था।

होश में आने के साथ ही दारोगा को भैया राजा की बात याद आ गई और वह बिना कुछ जाँच किये सीधे महाराज की तरफ रवाना हो गया, खासबाग के दरवाजे तक तो उसके साथ सैकड़ों आदमियों की भीड़ गई मगर आगे न जा सकी क्योंकि पहरे वाले किसी गैर की बिना आज्ञा के अन्दर नहीं जाने देते थे। दारोगा को किसी ने नहीं रोका और वह सीधा महाराज के पास चला गया।

इस समय राजा साहब बाग के दूसरे दर्जे के नजरबाग में बैठे मुँह धो रहे थे और तीन-चार मुसाहब उनके इर्द-गिर्द बैठे तमाम शहर की झूठी-सच्ची खबरें सुना रहे थे। यकायक दारोगा उनके सामने जा पहुँचा और उनके पैरों पर गिर कर जोर-जोर रोने लगा। राजा साहब उसकी विचित्र सूरत देखकर हैरान हो गये और क्रोध में होकर बोले, “यह तुम्हारी क्या दशा है? किसने तुम्हारी यह सूरत बनाई?”

दारोगा : (गले से जूतों की माला निकालकर) यह सब आपके भाई साहब भैया राजा की बदौलत है, उन्होंने ही मेरी यह दुर्दशा की है।

राजा : भैया राजा कहाँ हैं,? ईश्वर उन्हें चिरायु करे। मैं तो उनके बिना अधमुआ हो रहा हूँ, अगर ईश्वर की कृपा से वे जीते-जागते हैं तो मेरे पास क्यों नहीं आते?

दारोगा : आपके सामने क्यों आवेंगे। वे आपसे बागी हो गये हैं और स्वयं जमानिया के राजा बनना चाहते हैं। अच्छा जो कुछ उनके जी में आवे करें, आप जानें, वे जानें, पर मेरी यह दुर्दशा क्यों हो रही है? केवल इसीलिए कि मैं आपका खैरख्वाह हूँ और आपके राज्य का कुछ बोझ मेरे ऊपर डाल रखा है, इसी से तो लोग डाह करते हैं। खैर जो कुछ होना था हो गया,

अब आप जानिए और आपका राज्य जाने, अपना काम देखिए, मैं इस बेइज्जती की नौकरी से इस्तीफा देता हूँ, मैं साधु और फकीरों की तरह जिंदगी बिताने वाला, सिर्फ आपकी मुहब्बत में फंसकर बार-बार इस तरह की बेहुर्मती बर्दाश्त कर रहा हूँ। घर-गृहस्ती को छोड़कर भी मुझे आराम नसीब नहीं।

राजा : खैर कुछ कहो भी तो सही क्या मामला है? भैया राजा तुम्हें कहाँ मिले और तुम्हारी ऐसी दशा उन्होंने क्यों की? आखिर इसका कुछ सबब भी तो होगा?

दारोगा : सबब तो मैं आपसे कह ही चुका कि वे जमानिया का राज्य लिया चाहते हैं और मेरे जीते जी उनकी यह आशा पूरी नहीं हो सकती।

राजा : उनकी यह आशा क्यों नहीं पूरी हो सकती? बड़ी खुशी से मैं उन्हें यह राज्य देने के लिए तैयार हूँ। यद्यपि इस राज्य का मालिक मेरा लड़का मौजूद है मगर वह मेरी इच्छा के विरुद्ध कोई कार्रवाई न करेगा। यदि मैं भैया राजा को यहाँ की गद्दी दे दूंगा तो गोपाल भी कुछ न बोलेगा।

दारोगा : तो आप भी यह करके देख लीजिए! जिसमें आपकी जान सलामत रहे मैं भी उसी में खुश हूँ, मगर मेरी जान क्यों आफत में डाली जाय और मेरे साथ ऐसा बुरा सलूक क्यों हो? अपने हाथ से जब आप कुँवर जी का हक मारने के लिए तैयार हैं तो दूसरे को बोलने की क्या गरज पड़ी है?

मेरा हाल जो आप सुनना चाहते हैं तो सुनिए मैं बयान करता हूँ। परसों भैया राजा के भेजे हुए दो आदमी मेरे पास आये और एकान्त में मुलाकात करके इधर-उधर की बातें करने के बाद बोले कि ‘भैया राजा ने आपको बुलाया है, वे आपसे कुछ बातें किया चाहते हैं।’

मैं यह सुनकर प्रसन्न हुआ कि ईश्वर की कृपा से भैया राजा जीते हैं क्योंकि मुझको और आपको भी उनके मरने का विश्वास-सा हो रहा था, अस्तु मैंने सोचा अब विलंब करना ठीक नहीं है, जहाँ तक जल्द हो सके उनसे मिलना और समझा-बुझाकर उन्हें आपके पास ले आना चाहिए खैर उन आदमियों के इच्छानुसार संध्या हो जाने पर मैंने तीन घोड़े मँगवाए, एक पर आप सवार हुआ और दो पर उन दोनों को सवार कराके उनके पीछे-पीछे चल निकला।

यहाँ से सात कोस की दूरी पर जो ‘सुन्दर घाटी’ नाम का आपका शिकारगाह है उसी में भैया राजा को देख कर बहुत ही खुशी हुआ और उनके पैरों पर गिर पड़ा। उन्होंने मुझे उठाकर गले लगा लिया और अपने बगल में बैठाकर बातचीत करने लगे।

उस समय दस-बारह आदमी नंगी तलवार लिए उनके पास मौजूद थे। मुख्तसर यह कि मैंने उनके यकायक गायब हो जाने का कारण पूछा, उनकी जुदाई में आपका जो कुछ हाल हो रहा है उसे कहकर बहुत कुछ समझाया-बुझाया और यहाँ आने के लिए जोर दिया, मगर मेरी बातों का उन पर कुछ असर न हुआ क्योंकि उनके दिल में राजा बनने का शौक उमड़ा था,

अस्तु मेरी बात को काट कर वे मुझी को समझाने और लालच में डालने लगे। मुझे तरह-तरह का सब्जबाग दिखाकर बोले कि ‘तुम राजा साहब और गोपालसिंह को मार कर मुझे जमानिया का राजा बनाओ, जो कुछ तुम होगे मैं तुम्हें दूंगा और जन्मभर तुम्हारा गुलाम बना रहूँगा, इत्यादि।’ बातें तो बहुत लंबी-चौड़ी हुई मगर मैं आपसे संक्षेप में बयान करता हूँ।

मैंने उन्हें फिर भी बहुत धर्म-अधर्म की बातें समझाकर कहा कि आप घर चले चलिए, महाराज बड़ी खुशी से आपको गद्दी देने के लिए तैयार होंगे और अगर वे ऐसा न करेंगे तो मैं आपसे वादा करता हूँ कि जिस तरह बनेगा मैं आपको राजा बनाऊँगा।

सब कुछ मैंने कहा और समझाया मगर उनके दिल में एक न बैठी, बोले कि ‘उन दोनों के जीते रहते मैं निष्कंटक राज्य न कर सकूँगा, हमेशा खुटका बना रहेगा, इसलिए उन दोनों को मार डालना उत्तम है’ इत्यादि बातें सुनते-सुनते मेरा जी ऊब गया और मैंने रंज हो उन्हें साफ जवाब दे दिया और कह दिया कि यह सब काम मेरे किये न होगा, मैं अपने मालिक के साथ नमकहरामी न करूँगा।

मुझसे जवाब पाकर उन्हें क्रोध चढ़ आया और उन्होंने जो कुछ मेरे साथ किया उसका नमूना यही है जो कि आपने देखा। बहुत कुछ गाली-गुफ्तार के बाद मैं जबर्दस्ती बेहोश कर दिया गया और इस दर्जे को पहुँचाया गया।

दारोगा की बातें सुनकर राजा साहब को क्रोध चढ़ आया और भाई की मुहब्बत को एकदम भूलकर मारे क्रोध से काँपने लगे। एक चोबदार को कुँवर गोपालसिंह को बुला लाने की आज्ञा देकर दारोगा से बोला, “मैं नहीं जानता था कि भैया राजा के पेट में ऐसा जहर भरा हुआ है! मैं उन्हें बहुत ही नेक और सधा समझता था!”

दारोगा : खयाल तो ऐसा ही था मगर परसों जो कुछ मैंने उनकी जबान से सुना वह इस योग्य न था कि मेरे जैसा आदमी बर्दाश्त कर सके। छि: ऐ सूधे भाई से और ऐसी संगदिली!!”

राजा : ऐसे भाई का मुँह देखना न चाहिए! अरे मैं तो खुद उन्हें राज्य देने के लिए तैयार था, फिर ऐसी बदनीयती क्यों? बेचारे गोपालसिंह ने उनका क्या बिगाड़ा था!

दारोगा : कुछ न पूछिए, उनकी बातें सुनकर तो मेरे होश उड़ गये, मैंने जो कुछ कहा वह बहुत ही मुख्तसर में है, कहीं उनकी जुबान से निकली हुई सभी बातें आपसे कहूँ तो आपके दुश्मनों की तबीयत ही खराब हो जाय।

मैं आपको रंज पहुँचाया नहीं चाहता, पर उन्होंने मुझे इस बात की भी धमकी दी कि मैं भैया के पास पहुँचकर अपने सामने तेरी दुर्गति कराऊँगा और तुझे बेईमान साबित करके जेलखाने की गंदी कोठरी में जन्मभर के लिए भेजवाऊँगा। अब देखिए परमात्मा क्या दिखाता है!

राजा : परमात्मा जो कुछ करेगा अच्छा ही करेगा। वह मेरे सामने आवें तो।

इसी तरह की बातें कह-कही कर दारोगा राजा साहब के गुस्से को बढ़ाता रहा, यहाँ तक कि कुँवर गोपालसिंह भी आ पहुँचे और दारोगा की अवस्था देख कर आश्चर्य करने लगे तथा अपने पिता को क्रोध में भरे देखकर बहुत ही बेचैन हुए। प्रणाम करने के बाद हाथ जोड़ कर खड़े हो गये और हुक्म का इंतजार करने लगे। राजा साहब ने मुहब्बत की निगाह से कुँवर साहब की तरफ देखा और अपने पास वाली कुर्सी पर बैठने का इशारा किया।

कुँवरसिंह : (कुर्सी पर बैठ कर दारोगा से जो अभी तक जमीन पर बैठ कर आँसू गिरा रहा था) यह क्या मामला है? आप ऐसी सूरत में क्यों दिखाई देते हैं?

राजा : तुम्हारे चाचा साहब ने इनकी यह दुर्दशा कर डाली है।

कुँवरसिंह : (आश्चर्य से) सो क्या! क्या चाचाजी की कुछ खबर मिली है?

राजा : हाँ, वे ईश्वर की कृपा से कुशलपूर्वक हैं मगर हमारे और तुम्हारे दुश्मन हो रहे हैं।

कुँवरसिंह : ऐसा क्यों? हम लोगों ने तो उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ा! वे तो मुझ पर बड़ी कृपा रखते हैं और आपसे भी उन्हें अतीव स्नेह है!

राजा : वह सब दिखौवा मामला था, नहीं तो इस बेचारे की ऐसी दुर्दशा वह न करते। इन्हें अपनी राय में मिलाना चाहते थे मगर जब इन्होंने हमारा पक्ष न छोड़ा तब इनके साथ ऐसा बर्ताव किया गया। यही सुनने के लिए तो हमने तुमको बुलाया है। (दारोगा की तरफ देखकर) हाँ, एक दफे वे सब बातें फिर बयान कर जाओ जिसमें गोपाल को भी मालूम हो जाय कि इनके चाचा साहब इन पर कैसे मेहरबान हैं।

राजा साहब की आज्ञा पाकर दारोगा ने पुन: वह किस्सा बयान किया जिसे पहिले सुना चुका था। उसे सुनकर कुँवर साहब हैरान हो गये, मगर उनके दिल में यह बात बैठी नहीं इसलिए दारोगा तथा अपने पिता को कुछ जवाब न दिया, केवल यही सोचते रह गये कि यह किस्सा कहाँ तक सच होगा? यदि चाचा साहब मिलें तो बातों का मुकाबला करके कोई राय कायम की जाय।

राजा : (कुँवर से) कहो चुप क्यों हो? जो कुछ हाल था तुमने सुन ही लिया।

कुँवरसिंह : जी हाँ सुना मगर यह भी मालूम हुआ कि चाचाजी स्वयं आने वाले हैं। यदि वे आ गये तो उनकी बातें सुनने पर अपनी राय कायम कर सकूँगा।

राजा : बाबाजी जो कुछ कहते हैं उसमें रत्ती बराबर झूठ नहीं होगा!

कुँवर : संभव है।

राजा साहब ने अपने हाथ से दारोगा को जमीन पर से उठाया, उसके आँसू पोंछे और अपन सामने ही सफाई करने का हुक्म दिया, उन दिनों यह नियम था कि जब राजा साहब का डेरा खासबाग में जाता था तब दारोगा को भी उसी बाग के नियत स्थान में रहना पड़ता था।

अस्तु राजा साहब ने उसे दिलासा देकर और समझा-बुझाकर उसके डेरे में भेजा और स्वयं स्नान इत्यादि की फिक्र में पड़े। कुँवर गोपालसिंह वहाँ से उठकर महल में गये और अपनी माता से मिलकर दारोगा का सब हाल तथा जो कुछ किस्सा उसने अपनी दुर्दशा का कहा था वह भी बयान किया।

जवाब में रानी साहिबा ने कहा कि दारोगा ने भैया राजा के विषय में जो कुछ किस्सा कहा है वह सब झूठ है, असल में कसूर दारोगा ही का है, वह खुद भैया राजा को मारने की फिक्र में पड़ा हुआ है।

इतना कह रानी साहेबा ने वह सब हाल जो बहुरानी की जुबानी सुना था कुँवर गोपालसिंह से बयान किया जिसे सुनकर वे बहुत ही हैरान हुए, यद्यपि मुँह से कुछ न बोले मगर दिल में बड़े गौर के साथ सोचने लगे कि असल में भेद क्या है और बात कौन-सी सच है।

भोजन इत्यादि से छुट्टी पाकर कुँवर गोपालसिंह पुन: अपने पिता के पास गए और देर तक वहाँ बैठकर बातचीत करने बाद हाथ जोड़ कर बोले, “इधर बहुत दिनों से इन्द्रदेव जी से मुलाकात नहीं हुई, वे भी यहाँ न आए, न-मालूम क्या सबब है, उनसे मिलने को दिल चाहता है, आज्ञा हो तो एक दिन के लिए उनके पास जाऊँ।”

महाराज ने यह कह इन्द्रदेव के पास जाने की इजाजत दी कि ‘जाओ मगर होशियार रहना। क्योंकि तुम्हारा चाचा तुम्हारे खून का प्यासा हो रहा है, ऐसा न हो कि कहीं रास्ते में मिले और तुम्हें धोखा दे। अपने साथ आदमी और सवार काफी तौर पर ले जाना।’

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