रात का समय है और दारोगा अपने खासबाग1 वाले मकान में एकांत कमरे में बैठा हुआ जैपाल से बातें कर रहा है।
दारोगा : न मालूम क्या समझकर भैया राजा ने मेरी जान छोड़ दी नहीं तो मैं बड़े ही बेमौके जा फँसा था! कार्रवाई तो मैंने बहुत अच्छी की थी मगर इस बात की खबर न थी कि भैया राजा के पास तिलिस्मी तलवार मौजूद है।
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जैपाल सिंह : खैर, जो कुछ होना था सो हो गया अब आपको बहुत सावधानी के साथ काम करना चाहिए, ताज्जुब नहीं कि भैया राजा अब खुद राजा साहब के पास आवें और आपका मुकाबला करें । यद्यपि मेरा तो खयाल यही है कि अब राजा साहब उनकी बातों पर कदापि विश्वास न करेंगे क्योंकि आपने उनको खूब ही दुरुस्त कर रखा है।
दारोगा : बेशक् अब राजा साहब उनका पक्ष न करेंगे, हाँ, गोपालसिंह का बंदोबस्त करना जरूरी है।
जैपाल सिंह : जबकि आप सोचते हैं कि भैया राजा और उनकी स्त्री को मार डालने के बाद रानी साहिबा और राजा साहब को भी मार डालेंगे तो गोपालसिंह को छोड़ने की क्या जरूरत है? उन्हें भी निपटाकर निष्कंटक राज्य कीजिए।
दारोगा : यह सोचना तुम्हारी भूल है। हमारी कमेटी के बड़े-बड़े रईस लोग जो अभी तक मेरी इज्जत करते हैं वे एकदम से मेरे दुश्मन हो जाएँगे और समझेंगे कि दारोगा ने राजा बनने की नीयत से यह कुमेटी रची थी। वे मुझे कदापि राजा न बनने देंगे और तमाम फौज भी मेरी दुश्मन बन जाएगी। ऐसी अवस्था में ताज्जुब नहीं कि कोई दूसरा राजा आकर जमानिया में दखल जमा ले और अगर ऐसा हुआ तो मैं बड़ी दुर्दशा से मारा जाऊँगा। मुझे राजा बनने में सुख नहीं है, मैं नाममात्र के लिए गोपालसिंह को राजा बनाऊँगा और खुद राज्य करूँगा। जब गोपालसिंह की शादी हेलासिंह की लड़की से हो जाएगी तब बेशक् गोपालसिंह मारे जाए तो कोई हर्ज नहीं। उस समय उनकी स्त्री को रानी बनाऊँगा और उसे ऐयाशी पर उतारू करके आप आनन्द करूँगा। फिर मेरा मुकाबला करने वाला कोई भी न होगा।
जैपाल सिंह : बात तो आपने बड़े दूर की सोची! मेरा खयाल इन सब बारीकियों की तरफ नहीं गया था। बेशक् आपकी बुद्धि तेज है और आप नीति को खूब समझते हैं।
दारोगा : अब तो गोपालसिंह को खुशामद से या जिस तरह बनेगा अपने ऊपर प्रसन्न करूँगा और तब देखूँगा कि किस्मत क्या दिखाती है। सबसे बड़ा काम तो यह है कि उनकी शादी हेलासिंह की लड़की से हो जाए।
जैपाल सिंह : बेशक्-बेशक्! ईश्वर चाहेगा तो आपका काम बखूबी हो जाएगा। मगर राजा साहब के जीते-जी यह बात नहीं होने की।
दारोगा : मगर दयाराम वाला खुटका मेरे दिल को बहुत ही बेचैन किये हुए है। न-मालूम उसे कौन छुड़ा ले गया और अब वह कहाँ है। यह और भी ताज्जुब है कि वह अभी तक प्रकट नहीं हुआ। जब वह प्रकट होगा तो मुझे बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा और उस समय इन्द्रदेव भी मेरा दुश्मन बन जाएगा।
जैपाल सिंह : बेशक् दयाराम का गायब हो जाना बहुत ही बुरा हुआ। मेरा तो खयाल है कि खुद गदाधरसिंह उसे छुड़ा ले गया। जमना, सरस्वती, इन्दुमति और प्रभाकर सिंह का भी कुछ हाल मालूम नहीं हुआ, वे सब भी तो आपकी फिक्र में होंगे।
दारोगा : बेशक् उनके लिए भी मैं तरद्दुद में हूँ, हाँ, अगर गदाधरसिंह ने मेरा साथ दिया तो मैं उन सभी की तरफ से शायद बेफिक्र हो जाऊँगा।
जैपाल सिंह : गदाधरसिंह का तो खुद ही उन लोगों की बदौलत नाक में दम हो रहा है।
दारोगा : सही है, मगर फिर भी जब वह उन लोगों की फिक्र में है तो कुछ करके ही छोड़ेगा।
जैपाल सिंह : अगर वह ऐसा करे भी तो उसमें आपकी क्या भलाई हो सकती है जबकि वह स्वयं आपसे रंज है? इधर वाला मामला बहुत ही बुरा हो गया, भैया राजा के साथ-ही-साथ आप गदाधरसिंह पर भी वार कर बैठे सो अच्छा नहीं किया।
दारोगा : अगर मेरा वार खाली न जाता और भैया राजा तथा गदाधरसिंह मारे जाते तो तुम ऐसा न कहते बल्कि मेरी तारीफ करते, अब जब मामला बिगड़ गया है तो जो चाहे कहो, फिर भी मुझे इस बात से दिलजमई है कि गदाधरसिंह लालची है, दौलत के आगे वह धर्म, ईमान और इज्जत वगैरह कुछ नहीं समझता।
जैपाल सिंह : गदाधरसिंह को कब्जे में करने के लिए यह तकरीब बहुत अच्छी होगी कि आप उसके बागी ऐयारों और शागिर्दों को अपना पक्षपाती बनावें।
दारोगा : बात बहुत अच्छी है मगर मैं उन लोगों को खोजूँ क्योंकर! उन सभों का मिलना ही तो बड़ा कठिन है।
जैपाल सिंह : उनमें से एकआदमी मुझे मिला था और मैंने उससे आपके विषय में बातचीत भी की, अगर आप कहें तो मैं इस बारे में उद्योग करूँ।
दारोगा : जरूर कोशिश करनी चाहिए, खर्च करने के लिए मैं हर तरह से तैयार हूँ। बात यह है कि या तो गदाधरसिंह हमारे कब्जे में आ जाए और या फिर दुनिया से उठा दिया जाय। (ऊँची साँस लेकर) अफसोस! दयाराम का हमारे कब्जे से निकल जाना बहुत बुरा हुआ, नहीं तो गदाधरसिंह मेरे तलवे चाटा करता और जो कुछ मैं कहता वह झख मार के करता। तुम कहते हो कि दयाराम को गदाधरसिंह छुड़ा ले गया मगर मेरा दिल इस बात को कबूल नहीं करता। जब दयाराम के विषय में बातचीत करने के लिए वह मेरे पास आया था उसके पहिले ही कोई मेरी सूरत बनकर दयाराम को छुड़ा ले गया था, जैसाकि भूतनाथ ने भी मुझसे कहा था, और मैंने भूतनाथ से बहाना किया था कि वह दूसरा ही कैदी था।
जैपाल सिंह : हो सकता है, तो अगर गदाधरसिंह नहीं तो भैया राजा का यह काम होगा क्योंकि वे जमना और सरस्वती की दिलोजान से मदद कर रहे हैं।
दारोगा : संभव है कि भैया राजा ही ने ऐसा किया हो। अफसोस, यह कई दफे मेरे पंजे में आकर निकल गया है। अच्छा बकरे की माँ कब तक खैर मनावेगी। अबकी दफे तो भैया राजा को तिलिस्मी तलवार ने बचा लिया, जख्म लगते ही मैंने पहिचान लिया कि फलानी तलवार होगी, मैं बहुत जल्द उसे महाराज ने माँग लूंगा।।

जैपाल सिंह : आप तिलिस्म के दारोगा ठहरे, आपके पास तो जरूर ऐसी तलवार होनी चाहिए। बल्कि मेरे पास भी होनी चाहिए क्योंकि मैं आपका मित्र हूँ।
दारोगा : अच्छा अब मैं उस काम की फिक्र करता हूँ जिसके लिए तुमने राय कही थी। तुम जाकर अपना रथ तैयार कराओ और खुद हाँकते हुए खासबाग के पिछले दरवाजे की तरफ जाकर मेरा इंतजार करो। ईश्वर चाहेगा तो आज ही मेरा वह काम हो जाएगा फिर दूसरे की फिक्र करूँगा।
जैपाल सिंह : बहुत अच्छा मैं जाता हूँ।

