बहुत दिनों से नन्ही गोगो मम्मी से खीर बनाने के लिए कह रही थी, “मम्मी-मम्मी, खीर बनाओ मीठी-मीठी। उसमें किशमिश भी डालना और हाँ, गरी भी।”
आखिर एक दिन मम्मी खुद जाकर भोलाराम हलवाई से खूब सारा दूध लाईं और खीर पकाने रख दी।
जितनी देर खीर बनती रही, नन्ही गोगो मम्मी के आसपास मँडराती रही और अकुला-अकुलाकर पूछती रही, “मम्मी, खीर बनी? अभी कितनी देर और लगेगी मम्मी? खीर बनने में इतनी देर क्यों लगती है मम्मी? अच्छा, किशमिश मैं अपने हाथ से डालूँगी। और गरी भी…!”
होते-होते आखिर खीर तैयार हुई तो फिर वह गोगो को सबसे पहले क्यों न दी जाती!
मगर खीर थी गरम-गरम। कहीं गोगो का मुँह न जल जाए! सोचकर मम्मी ने एक बड़े-से कटोरे में थोड़ी खीर डाल दी, ताकि ठंडी हो जाए और गोगो आराम से खा ले।
गोगो बोली, “मम्मी-मम्मी, आप चम्मच देना तो भूल गईं!” मम्मी ने चम्मच दी तो गोगो बोली, “मम्मी, एक और दो।”
जैसे ही मम्मी ने दूसरी चम्मच दी, गोगो ने झट कटोरा उठाया और गायब। मम्मी और कामों में उलझी थीं। उन्हें पता ही नहीं चला, गोगो ने खीर खाई या नही! और खीर का कटोरा लेकर गोगो गई कहाँ?
जब घर में सब खाने बैठे तो पापा ने पूछा, “अरे, गोगो कहाँ गई? दिखाई नहीं पड़ रही।”
मम्मी अब तक भूली हुई थीं। अब फिर याद आ गया कि गोगो ने कटोरे में खीर डलवाई थी। साथ में दो चम्मचें भी ली थीं, जाने किसलिए! और फिर अब गई कहाँ?
मम्मी ने घर के चारों कमरों में बार-बार घूमकर देख लिया। पलंग के नीचे भी देखा और सोफा सरकाकर भी। मगर गोगो कहीं हो, तब तो नजर आए। उन्होंने पीछे वाले आँगन में देखा, आगे वाले लॉन में भी। अरे-अरे, गोगो कहाँ गई?
थोड़ी देर बाद मम्मी को खयाल आया, कभी-कभी गोगो ऊपर पड़छत्ती वाले कमरे में भी चली जाती है और खिलौनों से खेलती है। कहीं वहीं तो नहीं गई?
मम्मी तेज-तेज चलते हुए पड़छत्ती पर गईं तो सचमुच गोगो की आवाज सुनाई दी। वह प्यार से कह रही थी, “अरे टेडीबियर, मेरे प्यारे दोस्त, खीर क्यों नहीं खा रहे हो? मैंने मम्मी से कितना कह-कहकर तुम्हारे लिए बनवाई है। लो खाओ! अच्छा, तुम नहीं खाते तो मैं खिला देती हूँ।”
मम्मी थोड़ा आगे गईं, तो नन्ही गोगो नजर आ गई, जो अपने लाल वाले टेडीबियर से खेल भी रही थी और प्यार-प्यार से खीर भी खिला रही थी। कुछ खीर टेडीबियर के मुँह पर लगी थी तो कुछ फर्श पर।
यही हाल गोगो का था। उसके पूरे मुँह पर खीर ही खीर पुती हुई थी।
“ओ शरारती लड़की, बुद्धू कहीं की!” मम्मी को गुस्सा तो बहुत आया। मगर उनकी धीमे-धीमे हँसी भी छूट रही थी।
उन्होंने गोगो को उठाया, उसका टेडीबियर दूसरे हाथ में पकड़ा और खीर का कटोरा भी। नीचे आकर गोगो के पापा से बोलीं, “देख लो अपनी लाडली को! महीने भर से खीर बनाने की जिद कर रही थी। अब खीर बनाई है तो इसके खाने का तरीका भी देख लो। जितनी इसने नहीं खाई, उससे ज्यादा इसके टेडीबियर पर लगी है और फर्श पर बिखरी है।”
पापा ने गोगो को पुचकारकर गोदी में बिठाया और अपने हाथों से उसे खीर खिलाई। गोगो खीर खाती रही और बातें करती रही, “अरे पापा, मेरा टेडीबियर जानते हो, कितना अच्छा है! जब मैं इसे खीर खिला रही थी तो बार-बार कहता था, ‘थैंक्यू गोगो, थैंक्यू!’ और खीर बहुत ही स्वाद बनी थी। कह रहा था, “अपनी मम्मी को मेरी ओर से थैंक्स देना।”
“अच्छा!” कहकर पापा हँसे तो देर तक हँसते ही रहे। बोले, “अच्छा, अब समझ में आया कि खीर खाने के लिए तू ऊपर पड़छत्ती पर क्यों गई थी?”
इतने में बाहर से घूमकर पूँछ उठाए पोपू भी आ गया, जो बड़े अजीब ढंग से कान फड़फड़ा रहा था। वह गोगो से नाराज था। बुरी तरह नाराज। इसलिए कि गोगो टेडीबियर को खीर खिलाते वक्त उसे बिल्कुल भूल ही गई थी।
ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Bachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)
