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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

‘सुबह से ही इतनी तेज बारिश हो रही है, लगता नहीं कि आज धूप खुलेगी दीदी’ खिड़की के पर्दे को पीछे खिसकाते हुए रजनी ने प्रियवंदा से कहा। प्रियवंदा एक सम्राट परिवार की कुशल बहू तथा गृहणी है। रजनी प्रियवंदा के घरेलू कामकाज में हाथ बटाती है।

‘हम्म सही कह रही है रजनी’ -कहते हुए प्रियवंदा जो कि पति राजेश्वर की शर्ट का बटन टांक रही थी, शर्ट एक ओर रखकर, चश्मा उतारते हुए रजनी की ओर देख कर मुस्कुराती है।

‘लेकिन ये तो बताओ अगर सावन में भी बारिश नहीं होगी तो आखिर कब होगी?’

‘हाँ, दीदी ये तो आपने सच ही कहा कि सावन में बारिश नहीं होगी तो भला कब होगी’ सावन की बारिस पर तो कितने ही गीत गाए जाते हैं। वो क्या कहते हैं उनको माल्हार’- रजनी चुलबुले अंदाज में प्रियवंदा से पूछती है।

“अरे नहीं पगली मल्हार” -प्रियवंदा, रजनी की और मुस्कुरा कर देखती हुई खिड़की के पास आकर खड़ी हो जाती है और बारिश को निहारने लगती है। तभी एकाएक बादल की तेज गड़गड़ाहट होने लगती और बादल मानो काले रंग की चादर से पूरे शहर को ढक देते हैं और मूसलाधार बारिश शुरू हो जाती है। ये अंधेरा प्रियवंदा के मन को भी कहीं दूर गहराई में ले जाता है। जहाँ वह एक अधेड़ उम्र की महिला नहीं बल्कि एक यौवना है। छरहरा बदन, गोरा रंग, काली लंबी चोटी, मुख पर ऐसा आकर्षण कि कामदेव भी देखें तो राह भूल जाएं। प्रियवंदा कॉलेज से अपनी सहेलियों के साथ निकलती है। तभी उसके पास एक मोटर बाइक आकर रूकती है। ‘प्रिया’ – पीछे से बाइक सवार की आवाज आती।

‘ओ अशोक तुम’,

‘हाँ मैं, देखो भीग जाओगी बारिश आने वाली है, चलो मैं छोड़ देता हूँ तुमको’ -हेलमेट उतारते हुए अशोक कहता है। अशोक प्रियवंदा के कॉलेज में ही सीनियर स्टूडेंट है। और दोनों की काफी अच्छी दोस्ती है। अशोक प्रियवंदा का बैग उसके हाथ से ले लेता है। प्रियवंदा अशोक के साथ बाइक पर बैठ जाती है। बाइक और बारिश दोनों तेज रफ्तार से आगे बढ़ने लगती हैं।

‘अरे अशोक हमें राइट टर्न लेना था। मेरे घर का रास्ता तो पीछे छूट गया’

‘हाँ हाँ पता है। घर जाकर क्या करोगी। मां, बाबूजी के लिए पकौड़े बनाओगी?’ हंसते हुए अशोक पूछता है।

‘अरे नहीं तुम्हें तो पता है न मुझे ये घर-गृहस्थी के काम बिल्कुल पसंद नहीं, मैं तो सिर्फ कंपनी ही चला सकती हूँ। मुझे मैनेजिंग डायरेक्टर ही बनना है’ -प्रियवंदा थोड़े रूखे से स्वर में अशोक को कहती है।

‘अच्छा बाबा! ठीक है अब चुपचाप बैठी रहो, अभी हम घर नहीं जा रहे’

‘घर नहीं जा रहे… मतलब तो कहाँ जा रहे हैं इस बारिश में?’

‘बारिश में घर में सिर्फ बुजुर्ग घर पर बैठते हैं समझे! और तुम अभी इतनी बुड्डी तो नहीं हो, जहाँ तक मुझे पता है।’ -अशोक प्रियवंदा को चिढ़ाकर हँसता है।

‘मैं नहीं तुम बुजुर्ग हो, मैं तो तुम्हारी चिंता कर रही हूँ, पगले कहीं तुम बीमार न हो जाओ’ -प्रियवंदा भी अशोक को चिढ़ाने का कोई अवसर नहीं जाने देती। तभी अशोक हाईवे पर एक चाय की दुकान पर बाइक रोकता है। अशोक और प्रियवंदा बाइक से उतर कर चाय की दुकान पर जाते हैं।

‘तुम्हारे दिमाग में भी पता नहीं क्या-क्या आईडिया आते रहते हैं।’

‘हाँ तो क्या गलत आते हैं। देखो तो जरा सड़क के दोनों तरफ हरियाली ही हरियाली है और तेज बारिश में ऐसे नजारे में चाय की चुस्कियां लेना कितना रोमांटिक है’ – अशोक मुस्कुराता है।

‘हम्म बड़ा रोमांटिक है, सर से पांव तक भीग गए हो’ – प्रियवंदा अशोक के बालों का पानी झटकती है। अशोक प्रियवंदा के चेहरे की तरफ गौर से देखता है और थोड़ा पास आता है। प्रियवंदा खुद को संभालते हुए थोड़ा सहम कर पीछे होती है। अशोक अपना चेहरा प्रियवंदा के चेहरे के एकदम नजदीक लाकर प्रियवंदा की असहजता को भांपते हुए नाटकीय ढंग में कहता है- ‘अरे तुम भहंगी हो क्या? तुम्हारी आंखें अरे बाप रे मैंने आज ही देखी’ प्रियवंदा गुस्से में मुँह बनाकर तुम्हें मैं भहंगी लगती हूँ अभी बताती हूँ।’

‘सॉरी-सॉरी… नहीं हो भहंगी, तुम तो मृगनयनी हो। हिरनी की चाल वाली हो, कोयल-सी आवाज, मतलब सारे जानवर वाले गुण हैं – हा हा हा हा हा अशोक की हंसी गूंजती है। जैसे चारों और कोई गीत बज रहा हो और प्रियवंदा रूठकर आगे जाने लगती है। अशोक भी दौड़ कर उसके पीछे जाता है, वह मुड़कर अशोक के गले लग जाती है। अशोक भी प्रिया को पूरे समर्पण से गले लगाता है। अगले ही पल दोनों असहजता से अलग होते हुए प्रियवंदा कहती है- ‘चलो अब घर चलें बारिश भी रुक गई है और समय भी काफी हो गया है’।

‘दीदी क्या हुआ, क्या सोच रही हो दीदी’- कहती हुई रजनी प्रियवंदा को झकझोरती है।

‘कुछ नहीं रजनी सोच रही हूँ अलका कॉलेज से आई नहीं,’

‘हाँ दीदी बारिश है न, बारिश की वजह से कहीं रुक गई होगी। आपकी बेटी भी आप ही की ही तरह बारिश में भीगने से घबराती है। बारिश रुकने पर आ जाएगी।’

‘हाँ बारिश की वजह से ही देर हो गई होगी – कहकर प्रियवंदा पास पड़े सोफे पर बैठ गई और सोचने लगी। मैंने भी तो माँ से यही कहा था जब अशोक ने मुझे घर छोड़ा था। प्रियवंदा की माँ ने पूछा बेटा बहुत देर हो गई। ‘हाँ मम्मी बारिश तेज थी न’

‘हम्म अगर थोड़ा पहले आ जाती तो रमाकांत भाई साहब से मिल लेती और राजेश्वर से भी’

अच्छा माँ वो लोग घर आए थे क्या? सच में मिल ही नहीं पाई।’ माँ अपने घरेलू काम-काज करते हुए प्रियवंदा को बताती हैं कि उसके पिताजी ने उसका रिश्ता, रमाकांत के बेटे राजेश्वर के साथ तय कर दिया है।

‘क्या-मेरा रिश्ता तय कर दिया है’

‘हाँ – तो तू इतना चौंक क्यूं रही है। तू तो जानती ही है कि तेरे पिताजी को तो इसी दिन का इंतजार था कि कब राजेश्वर अपने पैरों पर खड़ा हो जाए और कब वो और रमाकांत भाई साहब, अपनी दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलें। तुम और राजेश्वर भी तो एक-दूसरे को पसंद करते हो। देख अब कोई नाटक मत करना, तेरी हाँ के बाद ही तेरे पिताजी ने रिश्ते की बात को आगे बढ़ाया है’- माँ ने अपनी स्पष्टता जाहिर करते हुए कहा।

हाँ… मैंने हाँ ही तो कहा पर सब इतनी जल्दी होगा मुझे पता न था।’ -सहमी हुई प्रियवंदा जवाब तो माँ को दे रही थी पर कुछ अपने आप से भी पूछ रही थी। हाँ मैंने ही तो कहा था ठीक है। ‘अगर आपको और बाबूजी को पसंद है तो मुझे भी पसंद है और राजेश्वर अच्छा लड़का है। लेकिन उस वक्त मैं अशोक को नहीं जानती थी।

मैं उस वक्त क्या कहती माँ को कि मेरा रिश्ता तय होने के बाद, मैं किसी को पसंद करने लगी हूँ।

प्रियवंदा का मन विचारों की अचानक तेज हलचल से परेशान हो उठता और अशोक ने भी कब कहा मुझे कि वो मुझसे प्यार करता है या मुझसे शादी करेगा। तो किस बिनाह पर रिश्ते की मना करूँ? पर क्या पता वो कहे, उसे एक बार पूछ लूं क्या, पर क्या पूंछू? और पिताजी, क्या वो मेरी इस भावना को समझेंगे या मुझसे खफा होंगे। उनका सपना तोड़ना सही होगा, क्या अपने सपने के लिए? हाँ मैं पिताजी का दिल नहीं तोड़ सकती। तभी दरवाजे की घंटी बजती है और प्रियवंदा की तन्द्रा भंग होती है।

‘अलका दीदी होंगी शायद’- कहकर रजनी दरवाजा खोलती है। ‘अरे अलका बेबी! आप तो पूरी भीग गई हो, जाओ कपड़े बदल लो वरना बीमार हो जाओगी’ कहकर रजनी रसोई में चली जाती है। अलका को देखकर प्रियवंदा मुस्कुराती है। ‘जाओ बेटा रजनी ठीक कह रही है। कपड़े बदल लो पहले

‘ओके मम्मा’ -कहकर अलका रूम में चली जाती है।

प्रियवंदा फिर अपने विचारों में लुप्त हो जाते हुए सोचती है कि जब अगले दिन मैंने अशोक को रिश्ते की बात बताई तो वो सुनकर मुस्कुराया और बाहर चला गया। उसके बाद कभी मुझसे दोबारा मिला ही नहीं। क्या वो कुछ कहना चाहता था या उसे कोई फर्क नहीं पड़ा था। क्या मैं उसके लिए सिर्फ एक दोस्त थी। कौन जाने इन सवालों के क्या जवाब हैं। पूछं भी तो किससे कि मैंने जो फैसला किया था क्या वो सही था। हाँ, सही ही होगा, आज सब कुछ तो है मेरे पास राजेश्वर जैसा पति जिसका शहर के रसूकों में नाम है। एक प्यारी-सी बेटी, एक अच्छा परिवार, क्या है जो मेरे पास नहीं है?, सब कुछ तो है। फिर ये बारिश क्यों खालीपन का एहसास कराती है मुझे। वैसे भी मुझे कब बारिश पसंद थी, मुझे तो पहले भी बारिश अच्छी नहीं लगती और आज भी नहीं लगती है।

प्रियवंदा की तन्द्रा एक बार फिर भंग होती है, जब तभी फोन की घंटी बजती है। प्रियवंदा फोन उठाती है।

हेलो- हाँ, प्रिया क्या कर रही हो? हाँ राजेश कुछ नहीं बोलो क्या बात है। सुनो आज मौसम बहुत अच्छा है। मैं अभी आधे घंटे में घर पहुँच रहा हूँ तुम जरा चाय और पकौड़े तैयार रखना ओके।?

‘हाँ ठीक है। आ जाओ मैं तैयार करती हूँ। तुम्हारे लिए चाय और पकौड़े’ -कहते हुए प्रियवंदा खिड़की की ओर देखती है फिर सारे खिड़की के दरवाजे बंद कर देती है। पर उसका मन न जाने क्यूँ आज भी उसी बारिश को याद कर रहा है।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’