एक बार मम्मी ने देखा, नन्ही गोगो अपने हाथों की उँगलियों से जमीन पर लकीरें खींच रही है और इतनी मगन है कि उसे किसी चीज का होश ही नहीं है।
“अरे-अरे गोगो, क्या हो रहा है? धूल में खेल रही हो। हाथ गंदे हो जाएँगे तो फिर…!” मम्मी बोलीं।
गोगो ने सुना तो एक पल के लिए उसकी चंचल उँगलियाँ ठहर गईं। थोड़ी देर वह रुकी रही, मानो पसोपेश में हो। और फिर उसकी उँगलियाँ उसी तरह चलने लगीं, जैसे उन्हें रुकना पसंद न हो।
गोगो के चेहरे पर खेल में विघ्न पड़ने वाली उदासी थी। देखकर मम्मी को बड़ा दुख हुआ। सोचने लगीं—अरे, क्यों मैंने नन्ही गोगो का दिल दुखाया?
पर साथ ही उनके मन में उत्सुकता भी थी। ‘भई, देखना तो चाहिए कि मिट्टी पर हाथ की उँगलियों से गोगो बना क्या रही है? कौन-सी पेंटिंग!’ मम्मी ने अपने आप से कहा।
उन्होंने चुपके से पीछे खड़े होकर देखा तो अनायास मुसकरा पड़ीं। गोगो जो पेंटिंग बना रही थी, उसमें उसने अपना बड़ा मजेदार कैरीकेचर बनाया था। और पीछे-पीछे पूँछ हिलाता उसका प्यारा पिल्ला पोपू। गोगो जहाँ अपने काले रंग के प्यारे पोपू के साथ खड़ी है, वहीं पर सामने एक टीला भी है, जिस पर एक बड़ा ऊँचा-सा छतनार पेड़ है। पेड़ के नीचे स्कूल लगा हुआ है और बच्चे पढ़ाई में मगन हैं। गोगो अपने प्यारे पिल्ले पोपू के साथ तेज कदम बढ़ाती हुई शायद इसी टीले वाले स्कूल की ओर बढ़ रही है।
सचमुच कमाल की थी वह पेंटिंग, जबकि गोगो के पास तो कागज और कलर भी नहीं थे। मम्मी हैरान रह गई थीं। उनके मुँह से अनायास निकला, “अरे वाह, मेरी प्यारी बेटी!”
मम्मी ने कुछ और गौर से गोगो की उस पेंटिंग को निहारा, तो स्कूल के बच्चों के चेहरे भी साफ नजर आने लगे। और उन्हें यह जानते देर न लगी कि टीले वाले स्कूल के बच्चे थोड़े नीचे झुके हुए पेंटिंग बना रहे हैं।
नन्ही गोगो की यह पेंटिंग देखकर मम्मी इतनी खुश हुईं कि उन्होंने प्यारी बेटी को गोद में उठाकर बार-बार उसकी बलैयाँ लीं।
गोगो की मम्मी ने उसी दिन गोगो को एक बड़ी ही खूबसूरत ड्राइंग की कॉपी और कैमल के रंग खरीदकर दिए। और कमाल की बात यह कि गोगो ने जो पेंटिंग उँगलियों से जमीन पर बनाई थी, वही अब कागज पर उभरने लगी। गोगो दिन भर पेंटिंग बनाने में जुटी रहती। मम्मी कहती, “बेटी, खाना तो खा लो। ऐसी क्या बात है! जाओ, शाम का टाइम है, अपनी सहेलियों के साथ जाकर खेलो।”
पर गोगो के दिमाग में तो पेंटिंग थी। पेंटिंग…सिर्फ पेंटिंग! उसके ब्रश को कतई चैन नहीं था और वह जल्दी से उस पेंटिंग को अपनी ड्राइंग की कॉपी पर उतार देना चाहती थी।
हालाँकि एक-दो पेंटिंग अच्छी बनी थीं, पर गोगो को बिल्कुल चैन नहीं था। वह तो वैसी ही पेंटिंग बनाना चाहती थी, जैसे उसके दिल में गड़ी हुई थी। और सचमुच जब पेंटिंग पूरी हुई और उसने मम्मी के आगे अपनी ड्राइंग की कॉपी लाकर रखी, तो मम्मी हैरान रह गईं। रीझकर बोली, “ओ री, ओ गोगो! यह पेंटिंग तूने बनाई है, तूने?”
सुनकर गोगो कुछ न बोली, बस मुसकरा दी। मम्मी ने एक बार फिर पेंटिंग पर गहरी-गहरी सी नजर डाली तो उन्हें नन्ही गोगो और उसके काले पिल्ले पोपू के चेहरे पर एक अजब-सा शरारती भाव नजर आया। टीले वाले स्कूल पर जो बच्चे पेंटिंग बना रहे थे, उनके चेहरे भी इस बार बिल्कुल साफ थे और उनकी आँखों में अनोखी चमक थी।
उसके बाद तो नन्ही गोगो अपनी कला में इतनी डूबी कि हर दिन नन्ही गोगो की एक नई पेंटिंग उभर आती। पेंटिंग पूरी होते ही गोगो उसे मम्मी और अपनी सहेलियों को दिखाने के लिए दौड़ पड़ती। उसके पीछे-पीछे पूँछ हिलाता पोपू दौड़ रहा होता।
मजे की बात यह है कि जब तक गोगो पेंटिंग बनाती रहती, पोपू एकदम शांत बैठा रहता। और पेंटिंग पूरी होने पर गोगो दौड़ती, पोपू को भी मानो पंख लग जाते।
लेकिन गड़बड़ बात यह थी कि नन्ही गोगो ड्राइंग की कॉपी में से पन्ना फाड़ने में जरा भी देर न लगाती। वह जो पेंटिंग पूरा करती, उसका पन्ना फाड़कर पहले मम्मी को दिखाती और फिर उछल-उछलकर अपनी सहेलियों को दिखाने के लिए चल पड़ती। बाद में वह पेंटिंग इधर-उधर छूट जाती।
एक अकेला पन्ना कभी अखबार की रद्दी में छिप जाता, तो कभी बिस्तर की चादर के नीचे। मम्मी को नजर आता तो वह उस मुड़े-तुड़े पन्ने को सीधा करके एक फाइल में लगा देतीं। और गोगो तो एक पेंटिंग पूरी होते ही उसे भूल जाती। फिर नई पेंटिंग बनाने में इतनी लीन हो जाती कि उसे कुछ होश ही न रहता।
हाँ, कभी-कभी उसे अपनी किसी पुरानी पेंटिंग की बेतहाशा याद आती तो वह बेचैन होकर मम्मी से कहती, “मम्मी-मम्मी, मैंने कंधे पर लाल रंग का बस्ता लटकाए, तेज-तेज कदमों से स्कूल जाते हुए शेर का चित्र बनाया था। मम्मी तुमने भी देखा था न! कितना अच्छा था वो! अब मालूम नहीं, वह कहाँ गया? तुम्हें कुछ मालूम है, मम्मी?”
इस पर मम्मी मुसकराकर कहतीं, “मैं क्या जानूँ बेटी! तू इतनी मेहनत से पेंटिंग बनाती है, तो फिर सँभालकर क्यों नहीं रखती?”
पर फिर गोगो को बहुत परेशान देखकर मम्मी थोड़ा ढूँढ़ने का बहाना करती और फिर अंदर वाली अलमारी में रखी नीली फाइल से निकालकर झटपट वह पेंटिंग लाकर गोगो को दे देतीं। फिर कहतीं, “गोगो, इसे सँभालकर रखना, वरना तेरा यह शेर फिर से गायब हो जाएगा।”
सुनकर नन्ही गोगो हँस देती। साथ ही मम्मी भी। क्योंकि गोगो भी यह जानती थी और मम्मी भी कि आखिर तो यह पेंटिंग फिर गुम हो जाएगी और मम्मी इसे इधर-उधर पड़ा देखेंगी तो झटपट सँभालकर रख लेंगी।
मम्मी कई बार डाँटतीं, “गोगो, तू अपनी ड्राइंग की कॉपी क्यों खराब करती है? पन्ने मत फाड़ा कर।” पर गोगो को कुछ समझ में न आता। बस, जो पेंटिंग पूरी होती, उसी का पन्ना फाड़कर दौड़ पड़ती और उसे सँभालने का जिम्मा मम्मी का!
मम्मी हँसकर अपने आपसे कहतीं, “चलो, कोई बात नहीं। मेरी नन्ही बिटिया गोगो कलाकार तो बन गई!”
और पोपू पूँछ हिलाकर कहता, “हाँ-हाँ-हाँ, सच्ची-मुच्ची!”
ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Bachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)
