kinnar ki dua
kinnar ki dua

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

जो कोई भी उसके पास से गुजरता उसकी ओर देखकर हँसता हुआ आगे बढ़ जाता। जेठ की भीषण गर्मी में शाल ओढ़े, रेलवे प्लेटफार्म की बेंच पर बैठी हुई वह कोई एक महिला थी। चूँकि शाल से उसने अपना मुँह ढका हुआ था इसलिए उसके खुले और लम्बे बालों से पता चल रहा था कि वह शायद कोई महिला ही है। लेकिन क्या पता वह एक पागल हो? इस चिलचिलाती हुई गर्मी में बदन पर एक पतला-सा कपड़ा भी काटने को दौड़ता है और उसने तो पूरी शाल ही ओढ़ रखी है।

पास ही एक महिला अपने पति और तीन बच्चों के साथ किसी रेलगाड़ी के आने की प्रतीक्षा में बैठी हुई थी। शायद अभी उस रेलगाड़ी के आने में अभी थोड़ा वक्त था। वह महिला अपने झोले में से टिफिन निकालकर अपने तीनों बच्चों और पति को खाने के लिए पुड़ी और सब्जी देने लगी। वो सभी बड़े चाव से खाने लगे।

‘माँ तुम भी खाओ’, उन बच्चों में से एक ने अपनी माँ से कहा।

‘नहीं बेटा पहले तुम लोग खा लो फिर मै खाऊँगी’, महिला ने उस बच्चे के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हए कहा। उस महिला का ध्यान शाल ओढ़े बेंच पर बैठी उस स्त्री की तरफ ही था।

‘उस तरफ क्या देख रही हो, सहसा उसके पति ने उसको टोका’।

महिला बोली, ‘इतनी भीषण गर्मी में वह शाल ओढ़कर क्यों बैठी है?’

पति हंसकर बोला, ‘तो तुम ही जाकर उससे क्यों नहीं पूछ लेती कि वो ऐसे क्यों बैठी है?’

फिर उसका पति बोला, ‘होगी वो कोई पागल। रेलवे स्टेशन पर तो तमाम ऐसे पागल घूमते-फिरते रहते हैं।’

महिला उठकर जाने लगी तो उसके पति ने टोका, ‘कहाँ जा रही हो?’

वह बोली, ‘उसी पागल के पास जा रही हूँ’ और इतना कहकर वह उसकी ओर चल पड़ी।

‘क्या हुआ बहिन, इतनी गर्मी में तुम शाल ओढ़ कर क्यों बैठी हो?’

अचानक किसी को अपने पास पाकर उसने शाल में से अपना चेहरा बाहर निकाला। महिला उसको देखकर अचम्भित रह गयी। शाल ओढ़े बैठी उस महिला ने कोई जवाब नहीं दिया। वह एक स्त्री नहीं किन्नर थी और शायद इस वजह से ही वह कुछ बोली नहीं। किन्नर ने शायद यह सोचा कि ये औरत उसको देखकर खुद-ब-खुद वापिस चली जाएगी। उस किन्नर की बड़ी-बड़ी आँखे उस समय एकदम लाल हो रखी थी और चेहरे का रंग फीका पड़ा हुआ था। महिला ने उस किन्नर के सिर पर हाथ रखा तो महसूस किया कि उसका बदन तो आग की तरह जल रहा है।

महिला उस किन्नर से बोली, ‘बहिन तुमको तो बहुत तेज बुखार है।’

किन्नर फिर भी कुछ नहीं बोली। वह उस महिला को बस एकटक निहारती जा रही थी। मानो कि जैसे किसी ने उसकी पीड़ा को समझा और उसकी वेदना को महसूस किया। किन्नर जानती थी कि यह महिला उत्सुकतापूर्वक उसके पास आयी है और अपनी जिज्ञासा को शांत कर वो वापिस चली जाएगी। यह सोचकर किन्नर ने फिर से अपना चेहरा शाल के अंदर छुपा लिया। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानो वह किन्नर उस शाल के अंदर अपनी पीड़ा को छुपाये ही रखना चाहती थी, क्योंकि वह जानती थी कि समाज के अंदर उसकी हैसियत क्या है? एक किन्नर की मदद कोई क्यों करेगा?

महिला अपने पति के पास लौट कर आयी और उसको सारी बात बतायी। फिर उसने अपने पति से आग्रह किया कि वह स्टेशन से बाहर जाकर किसी मेडिकल स्टोर से उसके लिए दवा और कुछ खाने के लिए ले आये। उसका पति अपनी पत्नी की बात मानकर दवा की तलाश में स्टेशन से बाहर की ओर चल पड़ा। थोड़ी देर के पश्चात वह दवा, अनार का जूस और बिस्किट लिए वापिस आया और अपनी पत्नी को दे दिया। महिला ये सब लेकर उस किन्नर की ओर फिर से चल पड़ी। उसके तीनों छोटे-छोटे बच्चे भी अपनी माँ के पीछे-पीछे चल पड़े। महिला ने किन्नर को पहले अनार का जूस पिलाया। फिर उसको खाने के लिए बिस्किट दी।

महिला ने उस किन्नर से पूछा कि क्या वह खाना खाएगी?’

किन्नर ने भोजन करने की कोई इच्छा नहीं जताई।

महिला ने फिर दवा की एक टिकिया निकाली और बुखार में तपती उस किन्नर के हाथों में देकर बोली ‘बहिन खा लो इसको, थोड़ी देर में तुमको आराम हो जायेगा। और ये बची हुई टिकिया रख लो रात में खा लेना।’

किन्नर की आँखों से आंसुओं की धार बहने लगीं।

महिला बोली रोती क्यों हो बहिन? तुम परेशान न हो थोड़ी देर में तुमको आराम मिलने लगेगा और तुम जल्द ठीक हो जाओगी। उस किन्नर को दिलासा देते हुए वह महिला उससे बोली।

किन्नर ने शाल से अपने आसुओं को पोछते हुए उस महिला से कहा, ‘लोग हमको देखकर मुँह फेर लेते हैं और दूर से ही रास्ता बदल लेते हैं। हमारा समाज तुम्हारे समाज से एकदम अलग है। तुम्हारे समाज के लोग मेरे जैसे लोगों के पास आने से भी कतराते हैं। ‘मैं जन्म से ही अछूत हूँ और फिर भी तुमने मेरे लिए इतना ये सब किया।’

महिला बोली, ‘अरे बहिन, मैंने कुछ नहीं किया। बस आपको इस हालत में देखकर मैं अपना मुँह कैसे फेर लेती। और बहिन जन्म से कोई छूत-अछूत नहीं होता, ये तो बस मन के भ्रम हैं।’ भगवान किसी में भेद नहीं करता। यह तो इंसानों के बनाये और बांटे हुए नियम हैं’, महिला ने किन्नर से कहा।

महिला के तीनों बच्चे भी अपने इस अनजाने रिश्तेदार के पास खड़े मुस्कुरा रहे थे। मानो अपनी माँ को उस किन्नर की सेवा करते देख उनका कोमल हृदय भी अति प्रसन्न हो रहा था। किन्नर ने अपने पर्स से एक सोने की चेन और कुछ पैसे निकाले और उस महिला को देने लगी।

महिला बोली, ‘अरे बहिन ये क्या कर रही?’ मुझको आपसे ये सब कुछ भी नहीं चाहिए। बस अपना आशीर्वाद मुझे दो’।

किन्नर के काफी प्रयत्न करने के बाद भी उस महिला ने उससे कुछ नहीं लिया।

तभी उस महिला के पति ने आवाज लगायी, ‘जल्दी आओ ट्रेन आने वाली है।’

किन्नर उस महिला के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली ‘जाओ बेटी तुम हमेशा खुश रहो, तुमको कभी कोई दु:ख न आए, तेरी झोली हमेशा खुशियों से भरी रहे।’

विदा लेने के वक्त दोनों की आँखें नम थी। उस वक्त ऐसा दृश्य लग रहा था कि जैसे वो किन्नर अपनी बेटी को स्टेशन पर विदा करने आयी हो। क्षण भर में ट्रेन आ गयी।

आखिरी बार महिला ने उस किन्नर को देखते हुए अपने हाथ जोड़े और जाते हुए उससे बोली रात में दवा खा लेना, और अपना ख्याल रखना।’

मानो कोई बेटी अपनी माँ को याद दिला रही हो कि, क्या करना है उसको। ट्रेन में बैठकर उस महिला के तीनों बच्चे रेलगाड़ी की खिड़की से अपनी शाल को तह लगाते किन्नर को टाटा कर रहे थे। थोड़ी ही देर में ट्रेन चल दी।

किन्नर उन सब को ट्रेन के साथ अपनी आँखों से दूर जाते हुए निहार रही थी और उन सभी को दिल से दुआएं दे रही थी।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’